उत्तराखंड में बागेश्वर जिला के कांडा इलाके में बन रहे हैं जोशीमठ जैसे हालात, एनजीटी ने मांगा रिपोर्ट
प्रभात कुमार ने बताया कि उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कांडा इलाके में बड़े पैमाने पर खनन के चलते जोशीमठ जैसे हालात बन रहे हैं। एनजीटी ने इस मामले में केंद्र सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जवाब...
नई दिल्ली। प्रभात कुमार धड़ल्ले से बड़े पैमाने पर हो रहे खनन के चलते उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कांडा इलाके में भी जोशीमठ जैसे हालात बनने पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने संज्ञान लिया है। ट्रिब्यूनल ने इसे गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से जवाब मांगा है।
ट्रिब्यूनल ने यह आदेश, उस मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए दिया है, जिसमें कहा गया है कि उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में धड़ल्ले से हो रहे खनन के चलते कांडा इलाके में जोशीमठ जैसे हालात पैदा हो रहे हैं और लोगों के घरों, मंदिरों यहां तक की सड़कों पर भी दरारें पड़ने लगी है। एनजीटी प्रमुख जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. अफरोज अहमद की पीठ ने स्वत: संज्ञान लेने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए मामले में नोटिस जारी किया। पीठ ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, सीपीसीबी के अलावा उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीसीबी) और बाघेश्वर जिला के जिलाधिकारी को नोटिस जारी कर वास्तविक रिपोर्ट दाखिल कर जमीनी हकीकत से अवगत कराने का आदेश दिया है। इसके लिए सभी पक्षकारों को एक सप्ताह का वक्त दिया है। ट्रिब्यूनल ने एक मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए यह आदेश दिया है, जिसमें कहा गया है कि बड़े पैमाने पर हो रहे खनन के चलते बागेश्वर जिला के कांदा इलाके में जोशीमठ जैसे हालात बन रहे हैं और अब वहां स्थानीय लोगों किसी अन्य जगहों पर पुनर्वास की मांग कर रहे हैं।
एनजीटी ने जिस मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लिया है, उसमें कहा गया है कि उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में बड़े पैमाने पर खनन हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप कांडा क्षेत्र में जोशीमठ जैसी स्थिति पैदा हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक लोगों को घरों, मंदिरों, खेतों और सड़कों में दरारें आ गई हैं। एनजीटी ने खबरों के हवाले से अपने आदेश में कहा है कि शुरू में रोजगार पाने के लिए स्थानीय लोगों ने टाल्क माइनिंग का समर्थन किया था। लेकिन जैसे-जैसे भारी मशीनरी के साथ खनन तेज हुआ, नुकसान बढ़ता गया और ग्रामीणों को अब अपने घरों की सुरक्षा का डर सता रहा है। आरोप है कि लोगों ने प्रशासन से इसकी कई शिकायतों की, बावजूद इलाके में अब खनन पर रोक नहीं लग रहा है, जिसकी वजह से अब पूरा इलाका खतरे में पड़ गया है।
1000 साल पुराने कालिका मंदिर में भी आ गई है दरारें
एनजीटी के आदेश के मुताबिक खनन गतिविधियों के कारण 1,000 साल पुराना कालिका मंदिर भी खतरे में है। मंदिर परिसर में दरारें आ गई हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोगों का कहना है कि यह नुकसान 50 मीटर दूर एक स्थित एक चाक खदान को हुआ है। स्थानीय लोगों ने मंदिर के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का जोर देते हुए कहा कि यहां पर सदियों से पूजा और स्थानीय अर्थव्यवस्था में इसकी केंद्रीय भूमिका का महत्वपूर्ण है। लोगों का आरोप है कि कालिका मंदिर एक केंद्रीय धार्मिक स्थल रहा है, जिसकी स्थानीय अर्थव्यवस्था इस पर और इसके आगंतुकों पर निर्भर करती है। स्थानीय लोगों ने भक्तों के लिए छोटे-छोटे भोजनालय और दुकानें स्थापित की हैं, और मंदिर की बिगड़ती स्थिति सीधे उनकी आजीविका को प्रभावित करती है। रिपोर्ट के मुताबिक खेती और धार्मिक पर्यटन, इस इलाके में रहने वाले लोगों के आय के मुख्य स्रोत हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर हो रहे खनन के चलते यह खतरे में पड़ गया है।
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