sINDoor की ताकत...पाकिस्तान का चीनी एयर डिफेंस सिस्टम ध्वस्त
sINDoor की ताकत...पाकिस्तान का चीनी एयर डिफेंस सिस्टम ध्वस्त (नोट : हैडिंग में IND

sINDoor की ताकत...पाकिस्तान का चीनी एयर डिफेंस सिस्टम ध्वस्त (नोट : हैडिंग में IND को लाल कर सकते हैं।) हैडिंग विकल्प भारत ने पाकिस्तान के चीनी एयर डिफेंस सिस्टम को किया ध्वस्त ---------------------------------------------- ऑपरेशन सिंदूर वाले पेज पर ले सकते हैं। एजेंसी, नई दिल्ली भारत ने अपनी हवाई क्षमताओं के दम पर पाकिस्तान के चाइनीज तकनीक पर आधारित एयर डिफेंस सिस्टम को तबाह कर दिया है। LY-80, HQ-9, और FD-2000 जैसी मिसाइल प्रणालियां जिन पर पाकिस्तान अपनी रक्षा का भरोसा करता था, भारतीय हमलों के सामने पूरी तरह विफल रहा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, HQ-9 को चीन ने रूस के S-300 सिस्टम और अमेरिका के पेट्रियट सिस्टम की टेक्नोलॉजी को मिलाकर बनाया था।
चीन ने दावा किया था कि इसकी मारक क्षमता 120–250 किलोमीटर तक होती है। हालांकि, इसकी रेंज इसके वजन पर निर्भर करता है और इसके कई वेरिएंट HQ-9A, HQ-9B, HQ-9BE हैं। रिपोर्ट बताती है कि चाइना दावा करता है कि ये एयर डिफेंस सिस्टम क्रूज मिसाइल, एयरक्राफ्ट और बैलिस्टिक मिसाइलों को पकड़ सकता है। लेकिन भारतीय मिसाइलों ने इस एयर डिफेंस सिस्टम को भेद दिया। पाकिस्तान ने 2021 के बाद से HQ-9B सिस्टम को अपनी एयर डिफेंस क्षमता को बढ़ाने के लिए शामिल किया था। पाकिस्तान ने भारत के राफेल, ब्रह्मोस और Su-30MKI जैसी क्षमताओं से मुकाबले के लिए यह सिस्टम खरीदा था। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर में हुई एयर स्ट्राइक के आगे ये सिस्टम फेल हो गया। इस एयर डिफेंस प्रणाली को भारत ने किया ध्वस्त HQ-9P/HQ-9BE : लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली थी। रेंज लगभग 100 से 200 किलोमीटर। पाकिस्तान ने इसे प्रभावी बताया लेकिन निम्न ऊंचाई पर उड़ने वाले या स्टील्थ (रडार से छिपने वाले) लक्ष्यों के खिलाफ यह नहीं चल पाया। LY-80 (HQ-16) : मध्यम दूरी की प्रणाली है यह। रेंज सिर्फ 40 से 70 किलोमीटर। यह भारतीय सेना की ब्रह्मोस जैसी हाई-स्पीड मिसाइलों के सामने असहाय है, क्योंकि यह सिस्टम तेज गति से आने वाले लक्ष्यों को ट्रैक और इंटरसेप्ट करने में पिछड़ता है। FD-2000 : लंबी दूरी की प्रणाली। रेंज HQ-9 के समकक्ष। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसकी कमजोरी है कि यह नीचे की ऊंचाई और तेज गति से उड़ने वाले लक्ष्यों को पकड़ने में कठिनाई होती है। JF-17 थंडर: पाकिस्तान की वायुसेना की रीढ़, लेकिन सीमित ताकत के साथ। लेकिन JF-17 का मौजूदा सिस्टम ‘टेरेन-हगिंग (पृथ्वी की सतह के बहुत करीब उड़ने वाली) मिसाइलों या स्टील्थ तकनीक वाले लक्ष्यों को पहचानने और निष्क्रिय करने में विफल रहा। पाकिस्तान की वायु रक्षा क्यों ध्वस्त हो गई? 1. तकनीकी कमजोरी - पाकिस्तान के पास HQ-9 और LY-80 जैसे वायु रक्षा सिस्टम मौजूद हैं, लेकिन ये तकनीक के लिहाज से पिछड़ चुके हैं। - एक्सपर्ट्स के मुताबिक, भारत के पास मौजूद S-400 और Barak-8 जैसी आधुनिक प्रणालियों की तुलना में ये सिस्टम स्टील्थ विमानों या सुपरसोनिक मिसाइलों को ट्रैक और इंटरसेप्ट करने में असमर्थ हैं। 2. कमजोर रडार बहावलपुर, कोटली, मुजफ्फराबाद, ये सभी रडार कवरेज से बाहर थे या हल्के सुरक्षा वाले क्षेत्रों में थे। भारतीय खुफिया एजेंसी के सटीक इनपुट के जरिए यहां पर कई आतंक के ठिकानों को भारतीय सेना ने तबाह किया है। भारत का डिफेंस सिस्टम भारत की सेना के पास अपने देश की रक्षा करने के लिए कई उमदा सिस्टम शामिल हैं, जिसमें राफेल और सुखोई-30 MKI का नाम सबसे पहले आता है। ब्रह्मोस दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसकी रफ्तार 2.8 मैक है, इससे बहुत आसानी से HQ-9 जैसे सिस्टम को भेदा जा सकता है। भारत के पास पिनाका रॉकेट सिस्टम और K-9 वज्र तोपें हैं, जिनका निशाना एकदम सटीक होता है। इसके अलावा, इस हमले में जिस प्रेसिजन स्ट्राइक वेपन सिस्टम (PSWS) का इस्तेमाल भारतीय वायुसेना ने किया है, वह दुश्मन के ठिकानों और प्रॉपर्टी पर सटीक निशाने लगाने के लिए बनाया गया है। हमला करने के लिए इसमें GPS, लेजर, रडार या इन्फ्रारेड गाइडेंस का यूज होता है। S-400 सिस्टम की खासियत एयर स्ट्राइक के बाद भारत ने S-400 सिस्टम को एक्टिव कर दिया है। ‘बाहुबली के नाम से जाना जाने वाला भारत का S-400 सिस्टम दुनिया के सबसे बेहतरीन हवाई रक्षा सिस्टमों में से एक है। S-400 जैसा की नाम से ही साफ होता है कि यह 400 किलोमीटर की रेंज में प्लेन, ड्रोन और मिसाइलों को तबाह करने की काबिलियत रखता है। यह सिस्टम एक समय में 80 टारगेट्स को ट्रैक और 36 पर एकसाथ निशाना साध सकता है। S-400, जिसे रूस द्वारा विकसित किया गया है, दुनिया की सबसे उन्नत सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणालियों में से एक है। भारत ने 2018 में रूस से 5.4 अरब डॉलर की लागत से पांच प्रणालियां खरीदी थीं।
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