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मतपत्रों से चुनाव कराने का मुद्दा संयुक्त संसदीय समिति के दायरे में नहीं- कानून मंत्रालय

केंद्रीय विधि मंत्रालय ने संयुक्त संसदीय समिति को बताया है कि चुनाव में मतपत्रों का उपयोग नहीं किया जाएगा। मंत्रालय ने कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना अलोकतांत्रिक नहीं है। विधेयक संविधान...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 1 March 2025 07:57 PM
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मतपत्रों से चुनाव कराने का मुद्दा संयुक्त संसदीय समिति के दायरे में नहीं- कानून मंत्रालय

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने ‘एक देश, एक चुनाव से संबंधित दो विधेयकों की समीक्षा के गठित संयुक्त संसदीय समिति से कहा है कि मतपत्रों से चुनाव कराने का मुद्दा उसके दायरे से बाहर है। कानून मंत्रालय ने समिति से कहा है कि चुनाव में मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल किया जाए या मतपत्र का, यह वह विषय नहीं है जिसकी समिति जांच कर रही है। इसके अलावा, कानून मंत्रालय से समिति से कहा है कि देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना अलोकतांत्रिक नहीं है और इससे संघीय ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा।

दरअसल, देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने संबंधी विधेयकों संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक की जांच के लिए सरकार ने संसद की संयुक्त समिति का गठन किया था। संयुक्त संसदीय समिति के कुछ सदस्यों ने विधेयक चर्चा के दौरान चुनाव में मतदान के लिए मतपत्र प्रणाली पर वापस लौटने का सुझाव दिया था। इसके बाद संयुक्त संसदीय समिति ने कानून मंत्रालय को इसका बारे में लिखित जवाब देने को कहा था।

सूत्रों ने बताया कि विधि एवं न्याय मंत्रालय ने समिति द्वारा पूछे गए कुछ सवालों के जवाब तो दे दिए हैं, लेकिन कुछ अन्य सवालों को निर्वाचन आयोग को भेज दिया है। मंत्रालय ने समिति को यह भी बताया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराना अलोकतांत्रिक नहीं है और इससे संघीय ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचता है। सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय ने अपने जवाब में समिति से कहा है कि अतीत में भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे, लेकिन कुछ राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने सहित कई कारणों से यह चक्र टूट गया था।

कानून मंत्रालय ने समिति को बताया है कि देश में संविधान लागू किए जाने 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के पहले आम चुनाव 1951-52 में एक साथ हुए थे, यह परंपरा बाद के तीन आम चुनावों (1957, 1962 और 1967) में भी जारी रही। मंत्रालय ने कहा है कि हालांकि, कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण 1968 और 1969 में समकालिक चुनावों का यह चक्र टूट गया था। चौथी लोकसभा भी 1970 में समय से पहले भंग कर दी गई थी, जिसके बाद 1971 में नए चुनाव हुए। सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय ने मतदान के लिए बैलेट पेपर प्रणाली के इस्तेमाल के मुद्दे पर सदस्यों द्वारा दिए गए सुझाव पर कोई सीधा उत्तर नहीं दिया। सूत्रों ने कहा कि मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि मतदान के लिए मतपत्र प्रणाली के इस्तेमाल का सुझाव का मुद्दा संसदीय समिति के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। बताया गया कि कानून मंत्रालय ने अपने जवाब में इस बात को रेखांकित किया कि मतदान के लिए ईवीएम या मतपत्र का उपयोग करना, वह विषय नहीं है जिसकी समीक्षा संयुक्त समिति कर रही है। संविधान (129वां संशोधन) विधेयक में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के लिए कानूनी ढांचा तैयार करने का प्रावधान है। जबकि केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक एक साथ चुनाव कराने के उद्देश्य से दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर की विधानसभाओं के कार्यकाल को एक साथ करने का प्रावधान करता है। तीन केंद्र शासित प्रदेशों दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर में विधानसभाएं हैं। सरकार ने कई मौकों पर संसद को यह साफ कि किया है कि वह मतदान के लिए ईवीएम की जगह मतपत्र प्रणाली पर लौटने के पक्ष में नहीं है।

पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने देश में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी। समिति ने कहा था कि देश के विभिन्न हिस्सों में चुनावों के चल रहे चक्र के कारण, राजनीतिक दल, उनके नेता, विधायक और राज्य और केंद्र सरकारें अक्सर शासन को प्राथमिकता देने के बजाय आगामी चुनावों की तैयारी पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। केंद्र सरकार ने उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया था और इसे लागू करने के लिए संसद में दो विधयेक पेश किया था। विपक्षी दलों के विरोध के बाद सरकार ने इइ मुद्दे पर संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया था।

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