एलएसी पर जमीनी स्थिति बहाल करने को लेकर व्यापक सहमति बनी: राजनाथ सिंह
- रक्षा मंत्री बोले- पारंपरिक क्षेत्रों में गश्त और मवेशियों को चराने की अनुमति पर
नई दिल्ली, एजेंसी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा कि भारत और चीन के बीच वार्ता के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जमीनी स्थिति बहाल करने के लिए व्यापक सहमति बन गई है। इसमें पारंपरिक क्षेत्रों में गश्त और मवेशियों को चराने की अनुमति देना भी शामिल है। रक्षा मंत्री ने ‘चाणक्य डिफेंस डायलॉग 2024 में दोनों देशों के बीच हुए समझौते को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम बताया, जो वैश्विक मंच पर रक्षा वार्ता के महत्व को रेखांकित करता है। राजनाथ ने कहा कि भारत और चीन एलएसी के साथ कुछ क्षेत्रों में मतभेदों को सुलझाने के लिए सैन्य और कूटनीतिक दोनों स्तरों पर बातचीत कर रहे हैं। वार्ता के बाद, समान और पारस्परिक सुरक्षा के सिद्धांत के आधार पर जमीनी स्थिति को बहाल करने के लिए व्यापक सहमति बन गई है। रक्षा मंत्री ने कहा कि यह निरंतर बातचीत की बदौलत संभव हुआ, क्योंकि देर-सवेर समाधान निकलने की उम्मीद थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर आयोजित बैठक में पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन समझौते का बुधवार को समर्थन किया और विभिन्न द्विपक्षीय वार्ता तंत्र को बहाल करने के निर्देश जारी किए थे।
सुरक्षा में कई कारक शामिलः
राजनाथ ने कहा कि सुरक्षा एक व्यापक और बहुआयामी अवधारणा है। इसमें आंतरिक स्थिरता, आर्थिक लचीलापन और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा सहित कई अन्य कारक शामिल हैं। ये सभी एक राष्ट्र के समग्र सुरक्षा ढांचे के लिए जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि सुरक्षा को अक्सर सीमा सुरक्षा से जोड़कर देखा जाता है। जब हम सुरक्षा के बारे में विचार करते हैं, तो हमारे मस्तिष्क में सीमा पर तैनात सैनिकों, आसमान में गश्त करने वाले विमानों और समुद्र की रखवाली करने वाले नौसेना के जहाजों की छवि आती है। हालांकि, सुरक्षा की अवधारणा सीमा सुरक्षा से कहीं आगे है।
स्वदेशी हथियारों से अर्थव्यवस्था मजबूत होतीः
राजनाथ ने कहा कि देश में हथियारों और रक्षा उपकरणों का निर्माण सुरक्षा ढांचे के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करता है। अगर अतीत में रक्षा क्षेत्र को विकास के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता दी गई होती और इसका व्यापक अध्ययन होता, तो भारत रक्षा क्षेत्र में काफी पहले ही आत्मनिर्भरता हासिल कर सकता था।
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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्रमुख लक्ष्य
रक्षा मंत्री ने कहा कि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्रमुख राष्ट्रीय लक्ष्य है, लेकिन इसका मतलब वैश्विक समुदाय से अलग होकर काम करना नहीं है। इसके बजाय, जब हम आत्मनिर्भरता के अपने लक्ष्य के लिए कोशिश करते हैं, तो एक न्यायसंगत और समावेशी व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए समर्पित रहते हैं। उन्होंने कहा कि भारत एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण अंतरराष्ट्रीय प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए सभी देशों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध है।
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