छोटे परमाणु संयंत्रों से सौ गीगावाट बिजली बनाएगा भारत
भारत छोटे परमाणु मॉड्यूलर संयंत्रों की मदद से 100 गीगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखता है। भारत और फ्रांस की परमाणु ऊर्जा एजेंसियां एसएमआर के विकास पर एक रोडमैप तैयार करेंगी। ये संयंत्र आसानी से कहीं...
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लक्ष्य - छोटे संयंत्रों से परियोजना लागत में 40 फीसदी तक की कमी संभव
- इन्हें कारखाने में तैयार कर कहीं भी स्थापित किया जा सकेगा
08 गीगावाट परमाणु ऊर्जा पैदा होती है मौजूदा समय में
मदन जैड़ा
नई दिल्ली। भारत छोटे परमाणु मॉड्यूलर संयंत्रों (एसएमआर) की मदद से सौ गीगावाट सालाना बिजली उत्पादन का लक्ष्य हासिल करेगा। इसके लिए भारत और फ्रांस की परमाणु ऊर्जा एजेंसियां एसएमआर के विकास और निर्माण को लेकर जल्द एक रोडमैप तैयार करेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की फ्रांस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच इस बाबत सहमति बनी है।
भारत ने आम बजट में परमाणु ऊर्जा मिशन के तहत 2047 तक 100 गीगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है। मौजूदा समय में महज आठ गीगावाट परमाणु ऊर्जा देश में पैदा होती है। परमाणु ऊर्जा विभाग के अनुसार, आमतौर पर 200 मेगावाट क्षमता तक के परमाणु संयंत्रों को छोटे संयंत्रों की श्रेणी में रखा जाता है। इसलिए पहले से ही देश में भारत स्मॉल रिएक्टर (बीएसआर) कार्यक्रम चल रहा है लेकिन स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर यानी एसएमआर इससे भिन्न हैं तथा ज्यादा लाभकारी हैं। दरअसल, मॉड्यूलर रिएक्टर को फैक्टरी में बनाया जा सकता है तथा उसके बाद उसे कहीं भी स्थापित किया जा सकता है। इन्हें स्थापित करने के लिए कम जगह की जरूरत होती है। इसमें समय भी कम लगता है। इससे परियोजना की लागत भी करीब 40 फीसदी तक घट जाती है। एक और फायदा यह है कि ये सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा बेहतर हैं तथा कम कार्बन उत्सर्जन करते हैं।
भारत और फ्रांस यदि एसएमआर बनाने में सफल रहते हैं तो यह भारत के 100 गीगावाट बिजली उत्पादन के लक्ष्य को आसानी से पूरा कर सकते हैं। क्योंकि देश के विभिन्न हिस्सों में छोटे परमाणु रिएक्टरों को आसानी से स्थापित किया जाएगा। उन स्थानों पर भी इन्हें लगाया जा सकता है जहां बिजली उत्पादन नहीं होता है। इससे स्थानीय स्तर पर उत्पादन और वितरण संभव होगा। इसके अलावा, ज्यादा बिजली खपत वाले कारखाने अपने परिसरों में भी इनकी स्थापना कर सकेंगे। क्योंकि, भविष्य में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों को भी एंट्री देने की तैयारी की जा रही है।
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मॉड्यूलर रिएक्टरों में लंबे समय में भरना होता है यूरेनियम
मॉड्यूलर रिएक्टरों में यूरेनियम लंबी अवधि के बाद भरना होता है। आमतौर पर दस साल में एक बार यूरेनियम डालना होता है जबकि मौजूदा परंपरागत रिएक्टरों में तीन-चार साल में ऐसा करना होता है। कुछ देशों ने ऐसे मॉड्यूलर रिएक्टर भी तैयार किए हैं, जिनमें एक बार यूरेनियम डालने पर वह 30 सालों तक चलते रहते हैं। बड़े मॉड्यूलर रिएक्टरों को एडवांस रिएक्टर यानी एएमआर कहा जाता है, जिनकी गर्मी का इस्तेमाल बिजली बनाने के अलावा अन्य औद्योगिक कार्य के लिए भी किया जा सकता है।
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