युद्ध का दायरा बढ़ा तो भारत में आम आदमी पर होगा असर
शोल्डर--- इजरायल-ईरान के बीच तनातनी और रूस-यूक्रेन संघर्ष के लंबा खिंचने से आर्थिक मोर्च पर
मध्य-पूर्व में इजरायल-हमास के बीच युद्ध को एक साल बीत चुका है। इसमें लेबनान भी कूद पड़ा है और इजरायल-ईरान के बीच तनातनी का माहौल है। उधर, रूस-यूक्रेन युद्ध को दो साल पूरे हो चुके हैं। चिंता इस बात की है कि दुनिया के दो हिस्सों में चल रहा संघर्ष तीसरे विश्वयुद्ध में न बदल जाए। इन्हीं चिंताओं के बीच आर्थिक रूप से कई बड़े उलटफेर वैश्विक अर्थव्यवस्था में होते दिखाई दे रहे हैं। अगर यह आशंका सच होती है तो भारत पर भी इसका असर पड़ सकता है। यहां नौकरीपेशा से लेकर आम आदमी को इसकी कीमत चुकानी होगी। हालांकि, केंद्र सरकार इस संकट से निपटने के लिए कई स्तरों पर पुख्ता इंतजार करने में लगी है। कच्चा तेल चढ़ा तो महंगाई में आएगा तेज उछाल
आम आदमी के लिहाज से देखा जाए तो युद्ध की स्थिति में महंगाई बढ़ेगी। मौजूदा वक्त में भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी कच्चा तेल रूस और मध्य-पूर्व स्थित खाड़ी देशों से खरीदता है। अगर युद्ध हुआ तो कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आएगा। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्टर्स ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के महानिदेशक एवं सीईओ डॉ. अजय सहाय कहते हैं कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 10 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ती है तो इससे भारत में आधा फीसदी तक महंगाई बढ़ जाती है। ईरान द्वारा इजरायल पर रॉकेट दागे जाने के बाद अक्टूबर के पहले सप्ताह में कच्चे तेल की कीमतें 74 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से पार पहुंची थी, जो फिलहाल 70 डॉलर प्रति बैरल के आसपास हैं। इसलिए युद्ध की स्थिति में कई स्तर पर नुकसान होगा, जो महंगाई के रूप में भारत में निचले तबके तक दिखाई देगा। खाड़ी देशों में तनाव के बीच भारत को कुछ दिनों तक काफी नुकसान उठाना पड़ा।
इन पर होगा असर
- पेट्रोल, डीजल, सीएनजी से लेकर घरों में इस्तेमाल होने वाली सिलेंडर एवं पीएनजी गैस की कीमतों में बढ़ोतरी होगी
- परिवहन लागत में भी बढ़ेगी, जिसका भार रोटी-कपड़े से लेकर मकान तक पड़ेगा
- विदेशों से आयात व निर्यात करना भी महंगा होगा।
- भारत दालें बड़ी मात्रा में आयात करता है, जो महंगा हो जाएगा।
- मोबाइल, इंजीनियरिंग गु्ड्स, फार्मा से लेकर कृषि से जुड़े उत्पादों का निर्यात भी महंगा होगा।
- इससे निर्यात क्षेत्र से जुड़े कारोबारियों से लेकर किसानों तक को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
नौकरीपेशा के लिए ऐसे बढ़ेगी चिंता
आर्थिक हालात बदले तो नौकरीपेशा लोगों को भी परेशानी होगी। उन्हें वेतन बढ़ोतरी से लेकर प्रमोशन पाने के लिए इंतजार करना पड़ सकता है। ऐसा माना जाता है कि युद्ध की स्थिति महंगाई बढ़ती है, जिससे बचने के लिए लोग अपने खर्चों में कटौती करते हैं। भविष्य को ध्यान में रखकर निवेश भी सुरक्षित जगह पर करते हैं। ऐसी स्थिति में रियल एस्टेट से लेकर बैंकिंग क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होगा। साथ में, ऑटो सेक्टर से लेकर सेवा क्षेत्र में भी व्यापक असर पड़ सकता है।
आर्थिक मोर्चे पर संकट के संकेत
- डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरावट आ रही है। एक डॉलर की कीमत 84 रुपये के पार निकल गई है।
- प्रमुख ब्याज दरों में कटौती टल सकती है, आरबीआई ने छह बार से रेपो दर को 6.5 फीसदी पर बरकरार रखा है
- अक्टूबर के महीने में शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गई है। सेंसेक्स अपने सर्वोच्च शिखर से छह हजार अंक टूटकर दो माह के निचले स्तर पर आ चुका है।
- विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय बाजारों से लगातार पैसा निकल रहे हैं। अक्तूबर में ही 90 हजार करोड़ से अधिक रकम निकाल चुके हैं।
- कई बड़ी कंपनियों के तिमाही नतीजे उम्मीद के अनुरूप नहीं रहे हैं, जो एक वित्तीय संकट की तरफ इशारा करते हैं।
- निवेशक शेयर बाजार से पैसा निकालकर सुरक्षित जगहों पर लगा रहे हैं। यही कारण है कि सोना 81000 रुपये प्रति 10 ग्राम के पार निकल गया है। चांदी ने भी एक लाख का स्तर छू लिया है
संकट से निपटने के लिए भारत की तैयारी
1. कच्चे तेल का प्रबंध
भारत में तेल की वर्तमान खपत 4.5 मिलियन बैरल प्रतिदिन की है। सरकारी कंपनियों के पास 64.5 दिन की मांग के अनुरुप कच्चे तेल व पेट्रोलियम उत्पाद के भंडार करने की क्षमता है। इसको बढ़ाकर 74 दिन किया गया है और सरकार 6.5 मिलियन मीट्रिक टन की अतिरिक्त भंडार क्षमता को विकसित करने पर काम कर रही। इसके विकसित होने पर 12 दिन का अतिरिक्त तेल भंडार उपलब्ध होगा। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार सदस्य देश के पास 90 दिन के बराबर तेल भंडार होना चाहिए। बदलते परिवेश में भारत करीब 60 फीसदी कच्चा तेल रूस से आयात कर रहा है। जबकि शेष खाड़ी देशों से आयात किया जा रहा है।
2. रिकॉर्ड स्तर पर मुद्रा भंडार
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 701 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर से पार पहुंचा है, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिहाज से काफी अहम है। विदेशी मुद्रा भंडार बीमा की तरह काम करता है, जिससे सामान्य परिस्थिति से लेकर संकट के समय में दूसरे देशों से कच्चे तेल से लेकर अन्य जरूरी सामान की खरीद करने में मदद मिलती है। आर्थिक रूप से देखा जाए तो विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा देश की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक वित्तीय बाजार के जोखिमों को कम कर देता है।
3. लाल सागर में हालात सुधरे
तमाम चिंताओं के बीच बीते सप्ताह केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि वैश्विक स्तर पर तनाव की स्थिति है लेकिन भारत के लिए चिंता की बात नहीं है। अब स्थिति सामान्य हो रही है। लाल सागर से मालवाहक वाहनों की आवाजाही शुरू हो गई है और भारत का निर्यात बढ़ रहा है।
4. नहीं बढ़ेंगे पेट्रोल-गैस के दाम
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने दो दिन पहले ही पेट्रोल व गैस की कीमतों में बढ़ोत्तरी को लेकर कहा कि भारत में पेट्रोलियम का पर्याप्त भंडार है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कच्चे तेल की कोई कमी नहीं है। इसलिए भारत में कीमतों में कोई इजाफा नहीं होगा।
अनिश्चितता काफी बढ़ी : विशेषज्ञ
जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर एवं अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं कि मौजूदा वक्त में अनिश्चितता काफी बढ़ गई है। वैश्विक स्तर पर जो माहौल बन रहा है, उससे तीसरे विश्व युद्ध का खतरा बढ़ रहा है। अगर ऐसी स्थिति आती है तो भारत की अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा असर दिखाई देगा। आज भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया के बाकी देशों पर काफी हद तक निर्भर है। इसलिए अगर युद्ध हुआ तो उससे महंगाई बढ़ेगी और मांग में भी कमी आएगी, जिससे संगठित क्षेत्र भी प्रभावित होगा। मोटे तौर पर कहें तो लोगों के लिए दाल-रोटी जहां महंगी होगी तो वहीं बेरोजगारी बढ़ेगी। कंपनियां अपने यहां छंटनी करेंगी। इसके साथ ही कई अन्य क्षेत्र इसके प्रभाव से वंचित नहीं रहेंगे।
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