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दिल्ली दंगा 2020: हत्या से जुड़े दो मामलों में अदालत ने 12 आरोपियों को किया बरी

- कड़कड़डूमा अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी किया नई

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 31 March 2025 05:12 PM
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दिल्ली दंगा 2020: हत्या से जुड़े दो मामलों में अदालत ने 12 आरोपियों को किया बरी

- कड़कड़डूमा अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी किया नई दिल्ली, कार्यालय संवाददाता। कड़कड़डूमा अदालत ने फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के दौरान हत्या से जुड़े दो मामलों में सबूत के अभाव में 12 आरोपियों को बरी कर दिया है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला की अदालत ने भूरे अली और आमिर अली की हत्या के मामले में लोकेश कुमार सहित सभी 12 आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि व्हाट्सएप ग्रुप में आदान-प्रदान किए गए संदेश अपराध में आरोपी की संलिप्तता को स्थापित नहीं कर रहे हैं।

अदालत ने कहा कि इस तरह की पोस्ट केवल ग्रुप के दूसरे सदस्यों की नजर में नायक बनने के इरादे से डाली जा सकती है। व्हाट्सएप पर बातचीत के आधार पर आरोपी को दोषी साबित नहीं किया जा सकता। अदालत ने संदेशों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिना किसी ठोस सबूत के ऐसी बातचीत का उपयोग उचित संदेश से परे अपराध को साबित करने के लिए नहीं किया जा सकता है।

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इन 12 आरोपियों को किया गया बरी

अदालत ने ठोस सबूत के आभाव में लोकेश सोलंकी के अलावे पंकज शर्मा, अंकित चौधरी, प्रिंस, जतिन शर्मा उर्फ ​​रोहित, हिमांशु ठाकुर, विवेक पांचाल उर्फ ​​नंदू, ऋषभ चौधरी उर्फ ​​तापस, सुमित चौधरी उर्फ ​​बादशाह, टिंकू अरोड़ा, संदीप उर्फ ​​मोगली और साहिल उर्फ ​​बाबू को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

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मामले में दायर हुए थे कई आरोपपत्र

बता दें कि ये हत्याएं 25 फरवरी 2020 की दोपहर से लेकर 26 फरवरी 2020 की आधी रात के बीच हुई थीं। मृतकों के शव एक हफ्ते बाद नाले में मिले थे। दिल्ली पुलिस ने कई आरोप पत्र दायर किए थे, जिसमें अपराधों को 'कट्टर हिंदू एकता' नामक एक व्हाट्सएप ग्रुप से जोड़ा गया था। इसमें सदस्यों ने कथित तौर पर एक विभिन्न धार्मिक समुदायों के सदस्यों को निशाना बनाने के लिए बलों को जुटाने और हथियार खरीदने से संबंधित जानकारी थी।

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व्हाट्सएप ग्रुप के हिस्सा थे आरोपी

सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने अदालत को बताया था कि आरोपी व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा थे। अधिकारियों ने बताया था कि पुलिस ने आरोपियों का पता उनके आइपी एड्रेस के जरिए लगाया। इससे पता चला था कि संचार के लिए उपयोग किए गए अधिकांश सिम कार्ड जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल करके हासिल किए थे। इस मामले में सबसे पहले लोकेश सोलंकी को गिरफ्तार किया गया था, उससे पूछताछ के आधार पर बाकी लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

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