Hindi NewsNcr NewsDelhi NewsCelebrated Writers Share Creative Experiences at Literary Festival 2025

साहित्योत्सव: भले कविता लिख रहे हों लेकिन कवि बनने में लग जाते हैं बरसों: गगन गिल

पुरस्कृत रचनाकारों ने साझे किए अपने रचनात्मक अनुभव सिनेमा और साहित्य के संबंधों के

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSun, 9 March 2025 06:26 PM
share Share
Follow Us on
साहित्योत्सव: भले कविता लिख रहे हों लेकिन कवि बनने में लग जाते हैं बरसों: गगन गिल

पुरस्कृत रचनाकारों ने साझे किए अपने रचनात्मक अनुभव सिनेमा और साहित्य के संबंधों के साथ ही अनेक विषयों पर हुई चर्चा

नई दिल्ली। प्रमुख संवाददाता

कवि को न कविता लिखना आसान है न कवि बने रहना। कविता भले बरसों से लिख रहे हो , कवि बनने में जीवन भर लग जाता है। उक्त बातें साहित्योत्सव के तीसरे दिन लेखक सम्मिलन में हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका गगल गिल ने कही। उन्होंने कविता को गूंगे कंठ की हरकत कहते हुए कहा की अपने चारों तरफ अन्याय और विमूढ़ कर देने वाली असहायता में कई बार कवि को उन शब्दों को ढूंढ कर भी लाना मुश्किल होता है जिससे वह उसका प्रतिकार कर सके। ज्ञात हो कि 2024 का हिंदी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार उनको प्रदान किया गया है।

साहित्योत्सव 2025 के तीसरे दिन रविवार को 22 सत्रों में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में पुरस्कृत रचनाकारों के साथ लेखक सम्मिलन, भारतीय ऐतिहासिक कथा साहित्य की सार्वभौमिकता और साझा मानव अनुभव, क्या जनसंचार माध्यम साहित्यिक कृतियों के प्रचार प्रसार का एक मात्र साधन है?, वैश्विक साहित्यिक परिदृश्य में भारतीय साहित्य, ओमचेरी एन. एन. पिल्लै जन्म शतवार्षिकी संगोष्ठी, आधुनिक भारतीय साहित्य में तीर्थाटन आदि विषयों पर चर्चा और युवा साहिती तथा बहुभाषी कविता और कहानी पाठ के कई सत्र हुए। प्रसिद्ध अंग्रेज़ी लेखक उपमन्यु चटर्जी ने संवत्सर व्याख्यान प्रस्तुत किया जिसका विषय था ध्यान देने योग्य कुछ बातें।

लेखक सम्मिलन में शनिवार को पुरस्कृत हुए रचनाकारों ने अपनी सृजन की रचना प्रक्रिया को पाठकों के साथ साझा किया। इन सभी के अनुभव बिल्कुल अलग और दिल को छूने वाले थे। लेकिन सामान्यतः सामाजिक भेदभाव ही वह पहली सीढ़ी थी जिसने सभी को लेखक बनने के लिए प्रेरित किया।

साहित्यिक फिल्में बनाना मुश्किल: नंदिता दास

स्याही से दृश्य तक: साहित्यिक कृतियां जिन्होंने सिनेमा को रोचक बनाया, विषय पर हुई एक परिचर्चा में अभिनेत्री नंदिता दास ने अपनी फिल्म मंटो के आधार पर कहा कि कई बार कोई ऐतिहासिक पात्र वर्तमान में बहुत प्रासंगिक होते हैं और उसके सहारे हम वर्तमान में भी बदलाव की बात कर सकते हैं। महाश्वेता देवी की कहानी पर कई फिल्में बना चुकी नंदिता दास ने कहा कि जहां जहां का मेन स्ट्रीम सिनेमा मजबूत है वहां सार्थक या साहित्यिक फिल्में बनाना मुश्किल होता है । हिंदी और तेलुगु सिनेमा ऐसा ही है। आगे उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं के साहित्य का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद न होने के कारण भी इस तरह की साहित्यिक फिल्में कम बन पाती हैं। वह लगातार अच्छी कहानी की तलाश में रहती हैं । अपनी अगली फिल्म के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि वह 20 साल पहले लिखी अपनी पहली कहानी पर फिल्म बनाने जा रही हैं जो की एक जोड़े की कहानी है।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।