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जनादेश महाराष्ट्र ::::: ब्यूरो::::महाराष्ट्र : परिवार के आगे विचारधारा को तरजीह

- सहयोगी दलों के साथ भाजपा की रणनीति रही कामयाब नई दिल्ली,

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 23 Nov 2024 05:47 PM
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- सहयोगी दलों के साथ भाजपा की रणनीति रही कामयाब नई दिल्ली, मदन जैड़ा

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं और भारतीय राजनीति में बदलावों की ओर भी संकेत करते हैं। शिवसेना और एनसीपी के विभाजन के बाद हो रहे पहले विधानसभा चुनाव पर सबकी नजरें लगी थीं। वहां जिस प्रकार असली दलों से अलग होकर बनी पार्टियों को शानदार सफलता मिली है, खासकर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना को, वह स्पष्ट संकेत है कि जनता ने परिवार से ज्यादा विचारधारा को तरजीह दी है।

चुनाव नतीजे शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे की भावी राजनीति को भी प्रभावित करेंगे। ये दिखाते हैं कि एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के बीच जीत का अंतर बहुत भारी है। शिंदे शिवसेना का 70 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रहे हैं। वहीं, उद्धव ठाकरे 30 फीसदी पर सिमट गए हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि विधानसभा चुनावों में जहां स्थानीय मुद्दे ज्यादा हावी रहते हैं, वहां भाजपा और शिवसेना जनता को यह समझाने में कामयाब रही कि उद्धव ठाकरे जिनके साथ खडे हैं, वे लोग बालासाहेब की विचारधारा के नही हैं। यानी शिदें ने भाजपा के साथ आकर सही किया।

हिंदुओं को एकजुट करने में सफल

महाराष्ट्र चुनाव में विचारधारा के मुद्दे को उभारने में ध्रुवीकरण वाले नारों की भी अहम भूमिका रही। इससे हिंदू मतदाता एकजुट हुए और सीधी चोट उद्धव ठाकरे की पार्टी को पहुंची। यही कारण है कि देश की राजनीति में पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होने वाला वोट इस बार विचारधारा के नाम पर चला गया। पारिवारिक दलों में इस प्रकार वोट बैंक के खिसकने का यह दुर्लभ उदाहरण है। इसके अलावा अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में शुरू की गई लड़की बहन जैसी लुभावनी योजनाओं, मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश भर में सक्रियता और भाजपा की आक्रामक चुनावी रणनीति का लाभ भी शिंदे को मिला।

अजित बने असली हकदार

मराठा क्षत्रप शरद पवार की राजनीति को भी इस चुनाव ने लगड़ा झटका दिया है। उम्र के अंतिम पड़ाव में वह पार्टी को बेटी सुप्रिया सुले को सौंपना चाहते थे, लेकिन भतीजे जो इसके स्वभाविक हकदार थे, उन्होंने बाजी मार ली। पूर्व में पवार ने भतीजे को मना भी लिया था, लेकिन अंतत एनसीपी विविभाजित हुई। लोकसभा चुनाव में लगा कि भतीजे का खेल खत्म हो गया है, लेकिन विधानसभा चुनाव नतीजों ने चाचा को जमीन पर ला दिया है। जनता का संदेश साफ है कि असली एनसीपी अजित पवार की है। हालांकि, अजित को भाजपा की चुनावी रणनीति का फायदा मिला। भाजपा के वोट उनकी पार्टी में स्थानांतरित हुए।

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