जनादेश::: ब्यूरो :::भाजपा : महाराष्ट्र में महाविजय, झारखंड में झटका
भाजपा को महाराष्ट्र में महाविजय मिली, जबकि झारखंड में हार का सामना करना पड़ा। दोनों राज्यों में नेतृत्व और रणनीतिकारों के प्रबंधन में अंतर था। महाराष्ट्र में बेहतर सामाजिक समीकरण साधे गए, जबकि झारखंड...
- अलग-अलग नतीजों में अहम रहा राज्यों का नेतृत्व और रणनीतिकारों का प्रबंधन
नई दिल्ली, रामनारायण श्रीवास्तव
चुनाव दो राज्यों के थे और दोनों जगह जंग गठबंधनों में थी, लेकिन भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधव को जहां महाराष्ट्र में महाविजय मिली वहीं, झारखंड में झटका लगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी बड़े नेताओं ने दोनों राज्यों में जमकर प्रचार किया, लेकिन राज्यों के नेतृत्व और रणनीतिकारों के प्रबंधन कौशल में अंतर रहा। सामाजिक समीकरण साधने में भी जहां महाराष्ट्र में पार्टी ने बेहतर तालमेल दिखाया, वहीं झारखंड में आदिवासी और गैर आदिवासी समुदाय के बीच वह सही तारतम्य नहीं बिठा सकी। महाराष्ट्र की महाविजय ने झारखंड की हार के गम को कम किया है लेकिन, भाजपा नेतृत्व ने इसे गंभीरता से लिया है।
भाजपा के लिए महाराष्ट्र में झारखंड से ज्यादा बड़ी चुनौती थी। वहां पर लोकसभा चुनाव में उसे बड़ा झटका लगा था और विपक्ष में राज्य की राजनीति के चाणक्य शरद पवार और बाला साहब ठाकरे के विरासत वाले उद्धव ठाकरे के साथ कांग्रेस थी। ऐसे में भाजपा को अपने गठबंधन महायुति में आए शिवसेना और एनसीपी के टूटे धड़ों को साधना था, साथ ही उनकी सीटों की मांग और उम्मीदवारों को लेकर विवाद का समाधान भी करना था।
महाराष्ट्र में मिला कुशल प्रबंधन का लाभ
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पार्टी ने यहां पर मध्य प्रदेश की भारी जीत का सूत्रधार रही प्रभारियों की टीम के केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव को लगाया था। दोनों ने मीडिया में बयानों के बजाय सीटों के प्रबंधन को लेकर पार्टी और सहयोगियों के साथ सही तारतम्य बिठाने में जोर दिया। उन्होंने विपक्ष के हमलों का जबाब राज्य के नेताओं से दिलवाया। उनकी टीम ने पीछे रहकर अपना काम किया। इससे राज्य के नेताओं और कार्यकर्ताओं में विश्वास जगा और वह मोर्चे पर आगे भी रहे। चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक है तो सेफ है का नारा देकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी के नारे को लेकर विपक्षी हमलों की तीखी धार को भोथरा भी किया।
झारखंड में बड़े नाम भी नहीं समझ सके नब्ज
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झारखंड में भाजपा ने अपने दो दिग्गजों को रणनीतिक कमान सौंपी। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान बतौर चुनाव प्रभारी तैनात थे। दोनों ने जमकर मेहनत तो की, लेकिन विरोधियों पर हमलों की कमान भी वह खुद संभाले रहे। राज्य के नेताओं के मतभेदों को रोका जरूर, लेकिन मन नहीं मिला सके।
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी पड़ी भारी
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भाजपा रणनीतिकार यह नहीं समझ सके कि हेमंत सोरेन को जेल भेजने और उनके बाहर आने से आदिवासी समुदाय उनके साथ कितना एकजुट हुआ। आजसू को लेकर भी आकलन सही नहीं बैठा। दरअसल भाजपा का जोर संथाल में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को लेकर ज्यादा रहा। इसमें अन्य मुद्दे दब गए। चंपई सोरेन को साथ लाने का भी लाभ नहीं हुआ। हेमंत जनता को यह संदेश देने में सफल रहे कि उनको आदिवासी होने के चलते परेशान किया गया और भाजपा ने इस बहाने उनकी पार्टी को तोड़ा। हेमंत का लाभ झामुमो को तो मिला ही, इंडिया गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस और राजद भी सफल हुए।
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