भाजपा के लिए मुसीबत बन रही मणिपुर की जातीय हिंसा
मणिपुर में बढ़ती जातीय हिंसा भाजपा के लिए चिंता का विषय बन गई है। एनपीपी के समर्थन वापस लेने के बाद, पार्टी विधायकों को जनता के बीच जाकर विश्वास बहाली के लिए कहा गया है। विपक्ष संसद में भाजपा पर...
ब्यूरो :: भाजपा के लिए मुसीबत बन रही मणिपुर की जातीय हिंसा - विधायकों से लोगों के बीच जाकर विश्वास बहाली करने को कहा गया
- एनपीपी के समर्थन वापसी को अच्छा संकेत नहीं मान रही है पार्टी
- आगामी संसद सत्र में भाजपा पर हमलावर रहेगा विपक्ष
रामनारायण श्रीवास्तव
नई दिल्ली। मणिपुर में बढ़ती हिंसा को लेकर भाजपा में भी राजनीतिक दृष्टि से सक्रियता बढ़ गई है। राज्य विधानसभा में भाजपा के पास खुद का स्पष्ट बहुमत है, लेकिन एनडीए की सहयोगी एनपीपी के समर्थन वापसी के बाद अब राजनीतिक हालात बदलने लगे हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन भाजपा मणिपुर हिंसा का हल निकालने के लिए राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण फैसला ले सकती है। इस बीच भाजपा विधायकों को जनता के बीच जाकर विश्वास बहाली के लिए काम करने को कहा गया है।
मणिपुर में एक बार फिर से हिंसा बढ़ने लगी है। यह भाजपा नेतृत्व के लिए चिंता का सबब बन रही है। मणिपुर को लेकर विपक्ष पहले से ही केंद्र सरकार पर हमलावर है। इसके फिर से बढ़ने के बाद ज्यादा आक्रामक हो गया है। संसद का सत्र 25 नवंबर से शुरू हो रहा है और उसमें यह एक बड़ा मुद्दा रहेगा। ऐसे में भाजपा नेतृत्व मणिपुर हिंसा को काबू करने और वहां पर शांति व सद्भाव बहाल करने के लिए सैन्य बलों को बढ़ाने के साथ अन्य फैसले लेने की भी तैयारी में है।
सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि यह संवेदनशील मामला है। जनप्रतिनिधियों को जनता के बीच संपर्क कर उनका विश्वास हासिल करना चाहिए, क्योंकि सैन्य बलों से समाधान निकाल पाना संभव नहीं है। हालांकि, अधिकांश विधायक अपने क्षेत्र में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश यात्रा से लौटने के बाद कुछ अहम फैसला ले सकती है।
सभी उपायों पर विचार कर रही पार्टी
भाजपा राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के विकल्प के अलावा अन्य सभी उपायों पर भी विचार कर रही है। हालांकि, एनपीपी के समर्थन वापसी के बाद पार्टी का एक वर्ग राज्य में स्थिति को काबू करने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाए जाने का भी समर्थक है। इससे दोनों समुदायों को समझाने और उनके बीच तनाव कम करने का समय मिल सकता है, लेकिन पार्टी नेतृत्व इसे ज्यादा महत्व नहीं दे रहा। चूंकि भाजपा की अपनी बहुमत वाली सरकार है और राष्ट्रपति शासन लगाए जाने से उसकी प्रतिष्ठा पर भी आंच आएगी। भाजपा के भीतर भी कई विधायक मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के विरोध में अपना मत व्यक्त कर चुके हैं। वे नेतृत्व बदलने की मांग को लेकर दिल्ली भी आ चुके हैं, इसके बावजूद भाजपा नेतृत्व पार्टी के भीतर एकजुटता बनाए रखने में सफल रहा है। लिहाजा, मुख्यमंत्री बीरेन सिंह बरकरार हैं। भाजपा के एक प्रमुख नेता ने कहा है कि नेतृत्व में बदलाव से पार्टी एक नई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहती है। ऐसे में दोनों समुदायों को साधना और मुश्किल होगा। क्योंकि नया मुख्यमंत्री किस समुदाय से बनाया जाए यह एक और बड़ी समस्या होगी।
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