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जामिया मिलिया इस्लामिया में गैर मुस्लिमों से होता है भेदभाव, धर्मांतरण का डाला जाता है दबाव; रिपोर्ट में क्या-क्या बातें

दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी (जेएमआई) में गैर-मुसलमानों के साथ न केवल भेदभाव होता है, बल्कि इस्लाम में धर्मांतरण के लिए दबाव भी डाला जाता है। इस बात का खुलासा रिटायर्ड जस्टिस एस.एन. ढींगरा की अगुवाई में बनी फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में किया गया है।

Praveen Sharma लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली। वार्ताSun, 17 Nov 2024 12:13 PM
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दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी (जेएमआई) में गैर-मुसलमानों के साथ न केवल भेदभाव होता है, बल्कि इस्लाम में धर्मांतरण के लिए दबाव भी डाला जाता है। इस बात का खुलासा रिटायर्ड जस्टिस एस.एन. ढींगरा की अगुवाई में बनी फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में किया गया है। कमेटी ने इस संबंध में गुरुवार को अपनी रिपोर्ट केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, शिक्षा मंत्रालय और दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के कार्यालय को सौंप दी है।

कमेटी की रिपोर्ट में क्या-क्या बातें

इस कमेटी के सदस्यों ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए बताया कि भेदभाव और इस्लाम धर्म अपनाने के लिए प्रताड़ना झेलने वाले लोगों की गुजारिश पर इस कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी ने जांच के दौरान पाया कि जामिया में गैर मुस्लिमों के साथ भेदभाव होता है और उन पर इस्लाम धर्म को अपनाने के लिए दबाव भी डाला जाता है।

इस दौरान जस्टिस ढींगरा ने बताया कि जांच के दौरान कमेटी के समक्ष लगभग हर गवाह ने जामिया में गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव और गैर-मुसलमानों के खिलाफ पक्षपात के बारे में गवाही दी, चाहे गैर-मुस्लिम विद्यार्थी हो या कोई फैकल्टी मेंबर हो। उन्होंने बताया कि इस काम में जामिया के मौजूदा मुस्लिम छात्र, पूर्व छात्र, प्रोफेसर और कर्मचारी सभी शामिल हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने कहा कि उनके द्वारा शुरू से ही पक्षपात महसूस किया गया था। वहीं, पीएचडी सेक्शन के मुस्लिम क्लर्क ने अपमानजनक टिप्पणी करते हुए कहा था कि वह किसी काम की नहीं है और कुछ हासिल नहीं कर पाएगी। क्लर्क (जो पीएचडी थीसिस का शीर्षक भी ठीक से नहीं पढ़ पाया था) उसने थीसिस की गुणवत्ता पर टिप्पणी करना शुरू कर दिया, क्योंकि वह मुस्लिम था और वह गैर-मुस्लिम थी।

वहीं, जामिया के एक अन्य गैर-मुस्लिम टीचिंग फैकल्टी ने गवाही दी कि गैर-मुस्लिम होने के कारण उसके अन्य मुस्लिम सहयोगियों द्वारा उसके साथ बहुत भेदभाव किया गया। अन्य मुस्लिम सहयोगियों को मिलने वाली सुविधाएं जैसे बैठने की जगह, केबिन, फर्नीचर आदि उन्हें यूनिवर्सिटी में शामिल होने के बाद लंबे समय तक नहीं दी गईं, जबकि उनके बाद शामिल हुए मुस्लिम फैकल्टी सदस्यों को सभी सुविधाएं दे दी गईं। वह एससी समुदाय से हैं।

एनजीओ ‘कॉल फॉर जस्टिस’ ने बनाई थी कमेटी

इस कमेटी का गठन ‘कॉल फॉर जस्टिस’ नामक एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा जामिया के संबंध में गैर-मुस्लिमों से भेदभाव, उत्पीड़न और उनके इस्लाम में धर्मांतरण के संबंध में जानकारी प्रदान के बाद किया गया था।

उल्लेखनीय है कि गत 4 अगस्त को अनुसूचित जाति और बाल्मीकि समाज के सदस्यों द्वारा एक कर्मचारी राम निवास के समर्थन में जंतर-मंतर पर एक प्रदर्शन किया गया था, जिन्हें गैर-मुस्लिम होने के कारण जामिया में परेशान किए जाने का आरोप लगाया गया था। ‘कॉल फॉर जस्टिस’ को जामिया में गैर-मुस्लिमों के उत्पीड़न/धर्मांतरण और गैर-मुस्लिमों के साथ भेदभाव के संबंध में कई अन्य लोगों से मौखिक और लिखित शिकायतें भी मिलीं। जामिया के खिलाफ आरोपों की प्रारंभिक जांच करने के बाद ‘कॉल फॉर जस्टिस’ ने आरोपों की विस्तृत जांच करने के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित करने का फैसला किया था।

कमेटी में कौन-कौन शामिल

इस कमेटी में जस्टिस (रिटायर्ड) ढींगरा, दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव, दिल्ली हाईकोर्ट के वकील राजीव कुमार तिवारी, दिल्ली सरकार के पूर्व सचिव एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी नरेंद्र कुमार (आईएएस), पूर्व सचिव दिल्ली सरकार (सदस्य), किरोड़ीमल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नदीम अहमद, दिल्ली हाईकोर्ट की अधिवक्ता पूर्णिमा शामिल हैं।

आरोपों पर क्या बोला जामिया मिलिया इस्लामिया प्रशासन

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी ने इन आरोपों पर एक बयान जारी किया है, जिसमें समावेशी माहौल को बढ़ावा देने और किसी भी प्रकार के भेदभाव की निंदा करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है। यूनिवर्सिटी ने माना कि पिछले प्रशासन ने ऐसी घटनाओं को गलत तरीके से संभाला होगा, लेकिन कुलपति प्रोफेसर मजहर आसिफ के नेतृत्व में एक समान माहौल बनाने के प्रयासों पर जोर दिया गया है।

प्रशासन ने निर्णय लेने और प्रशासनिक भूमिकाओं में हाशिए पर पड़े समूहों को शामिल करने की पहल पर प्रकाश डाला, जैसे कि गैर-मुस्लिम एससी समुदाय के सदस्यों को प्रमुख पदों पर नियुक्त करना। प्रो. आसिफ ने जाति, लिंग या धार्मिक भेदभाव के प्रति अपनी जीरो टॉलरेंस की नीति दोहराई।

धर्म परिवर्तन के आरोपों का जवाब देते हुए यूनिवर्सिटी ने ऐसे दावों की पुष्टि करने के लिए कोई भी सबूत होने से साफ इनकार किया। यूनिवर्सिटी ने कहा कि अगर कोई ठोस सबूत लेकर आता है तो हम सख्त कार्रवाई करेंगे। हम शिकायतों के प्रति संवेदनशील हैं और एक सुरक्षित और समावेशी कैंपस सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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