Hindi Newsएनसीआर न्यूज़गुड़गांवPatients wandering for beds and medicines in civil hospital

नागरिक अस्पताल में बेड और दवाइयों के लिए भटक रहे मरीज

कोरोना के चलते अस्पतालों में व्यवस्थाएं पूरी तरह लड़खड़ा गई हैं। मरीजों को समय...

Newswrap हिन्दुस्तान, गुड़गांवMon, 3 May 2021 11:30 PM
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कोरोना के चलते अस्पतालों में व्यवस्थाएं पूरी तरह लड़खड़ा गई हैं। मरीजों को समय पर अस्पतालों में इलाज के लिए बेड तक नहीं मिल पा रहे हैं। वहीं दवाइयां भी अस्पताल में पूरी न मिलने से मरीजों का दर्द ठीक होने की बजाय और बढ़ रहा है। इन लड़खड़ाती व्यवस्थाओं से मरीज बेहाल नजर आ रहे हैँ। मरीजों के अनुसार अस्पतालों में एक बार जाने के बाद उनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है। दवा और इलाज के लिए उन्हें खुद या तीमारदारों को यहां वहां भागदौड़ करनी पड़ रही है।

तीन दिन से बेड मिलने की आस में फर्श पर करा रहे इलाज

सेक्टर-60 निवासी बुजुर्ग संजय को सांस लेने में दिक्कत है। वह इलाज के लिए एक मई को सेक्टर-10 नागरिक अस्पताल आए थे। यहां बेड खाली न होने पर डॉक्टरों ने उन्हें इमरजेंसी वार्ड के बाहर वेटिंग एरिया में बनी फर्श की स्लैब पर लिटा दिया था। उन्हें ऑक्सीजन कंसंट्रेटर से सांसें दी जा रही हैं। संजय के बेटे अमन ने बताया कि उनके पिता तीन दिन से अस्पताल में बेड मिलने की आस में फर्श पर ही बिना गद्दे और बिना चादर के लेटे हुए हैं। इस उम्र में सख्त फर्श पर लेट पाना उनके लिए काफी मुश्किल हो रहा है। तीन दिनों से वह सो भी नहीं पाए हैं, लेकिन उन्हें तीन दिन बाद भी अस्पताल में बेड नसीब नहीं हो पाया है। उन्होंने प्रशासन और अस्पताल प्रबंधन से बेड की व्यवस्था करने की गुहार लगाई है।

शीतला कॉलोनी निवासी उमेश को 28 अप्रैल की रात एक ऑटो ने टक्कर मार दी थी। उनके एक पैर की हड्डी टूट गई है। 29 अप्रैल को सेक्टर-10 नागरिक अस्पताल में उन्होंने डॉक्टर को दिखाया था। जांच के बाद डॉक्टर ने कुछ दवाइयां लिखी थी और उनके पैर पर प्लास्टर बांध दिया था। उमेश ने बताया कि डॉक्टर ने जो दवाइयां लिखी थी, उनमें से केवल एक ही नागरिक अस्पताल में मिली है। बाकी दवाइयां अस्पताल के स्टॉक में नहीं है। उन्होंने बताया कि वह दो दिनों से दर्द से परेशान हैं और लगातार अस्पताल आ रहे हैं, लेकिन न तो अस्पताल में कोई डॉक्टर देख रहा है और न पूरी दवाइयां मिल रही हैं। उन्होंने बताया कि वह पेंटर हैं। लॉकडाउन की वजह से काम भी नहीं मिला है। बाहर से दवाइयां लेने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं हैं।

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