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ED जांच की हो सकती है जरूरत; गौतम गंभीर वाले केस में अदालत

भारतीय क्रिकेट टीम के कोच और दिल्ली से भाजपा के पूर्व सांसद गौतम गंभीर की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। फ्लैट खरीदारों से कथित तौर पर धोखाधड़ी के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने दोबारा जांच का आदेश दिया है।

Sudhir Jha लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, पीटीआईFri, 1 Nov 2024 02:03 PM
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भारतीय क्रिकेट टीम के कोच और दिल्ली से भाजपा के पूर्व सांसद गौतम गंभीर की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। फ्लैट खरीदारों से कथित तौर पर धोखाधड़ी के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने दोबारा जांच का आदेश दिया है। अदालत ने उन्हें बरी किए जाने के आदेश को खारिज कर दिया है तो यह भी कहा है कि इस मामले में ईडी की जांच की जरूरत पड़ सकती है।

स्पेशल जज विशाल गोगने ने एक मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि गंभीर के खिलाफ आरोपों पर फैसला करने में दिमाग का उचित इस्तेमाल नहीं दिखता। उन्होंने अपने 29 अक्टूबर के आदेश में लिखा, 'आरोपों को देखते हुए गौतम गंभीर की भूमिका की आगे जांच जरूरी लगती है।' फ्लैट देने में असफल रहने के बाद घर खरीदारों ने तीन रियल स्टेट कंपनियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।

तीन कंपनियों रुद्र बिल्डवेल रियल्टी, एचआर इन्फ्रासिटी और यूएम आर्किटेक्चर्स ने 2011 में एक हाउजिंग प्रॉजेक्ट की शुरुआत की थी। गंभीर रुद्र के अडिशनल डायरेक्टर होने के साथ एंबेसेडर भी थे। जज ने कहा कि गंभीर इकलौते आरोपी हैं जिनका ब्रांड एंबेसेडर होने के नाते निवेशकों के साथ सीधा 'इंटरफेस (जुड़ाव) था और उन्हें बरी कर दिया गया है, लेकिन मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश में उनके रुद्र बिल्डवैल रियलिटी प्राइवेट लिमिटेड को छह करोड़ रुपये देने और कंपनी से 4.85 करोड़ रुपये लेने का कोई उल्लेख नहीं किया गया।

जज ने कहा, 'आरोपपत्र में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि क्या रुद्र द्वारा उन्हें वापस अदा की गई रकम में कोई सांठगांठ थी या संबंधित परियोजना में निवेशकों से प्राप्त धन से प्राप्त की गई थी। चूंकि आरोपों का मूल धोखाधड़ी के अपराध से संबंधित है, इसलिए यह आवश्यक था कि आरोपपत्र और आदेश में यह होना चाहिए कि क्या धोखाधड़ी की राशि का कोई हिस्सा गंभीर के हाथ आया था।'

अदालत ने पाया कि गंभीर ने ब्रांड एंबेसडर के रूप में अपनी भूमिका से परे कंपनी के साथ वित्तीय लेनदेन किया था और वह 29 जून, 2011 और 1 अक्टूबर, 2013 के बीच एक अतिरिक्त निदेशक थे, 'इस तरह, जब परियोजना का विज्ञापन किया गया था तब वह एक पदाधिकारी थे।' अदालत ने रेखांकित किया कि 'उन्हें पुनर्भुगतान का बड़ा हिस्सा' 1 अक्टूबर, 2013 को अतिरिक्त निदेशक के पद से इस्तीफा देने के बाद प्राप्त हुआ।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जज ने यह भी कहा कि चूंकि धोखाधड़ी प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट (पीएमएलए) के तहत एक अनुसूचित अपराध है, इसलिए मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच की आवश्यकता हो सकती है। चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत की ओर से 10 दिसंबर 2020 को दिए गए आदेश को चुनौती देते हुए तीन रिवीजन पिटीशन दायर की गई थी। इन पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ताजा आदेश दिया है।

केस की शुरुआत तब हुई जब घर खरीदारों ने पाया कि प्रॉजेक्ट में फ्लैट बुक किए जाने और पैसा देने के बाद कंस्ट्रक्शन में कोई प्रगति नहीं हो रही थी। बाद में उन्हें पता चला कि प्रॉजेक्ट को मंजूरी भी नहीं मिली है और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उस जमीन पर स्टे लगा दिया है। इसके बाद निवेशकों ने केस दर्ज कराया। हालांकि, 2020 में ट्रायल कोर्ट ने तीन व्यक्तियों और दो कंपनियों के खिलाफ प्रथम दृष्टया सूबत पाया। अदालत ने गंभीर समेत अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था। घर खरीदारों ने तब रिवीजन पीटीशन दायर किया था।

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