कहानी DND की; लागत से दोगुना टोल ले चुकी थी कंपनी, 15 साल तक और वसूली का था मंसूबा
नोएडा को दिल्ली से जोड़ने के लिए बनाए गए डीएनडी का निर्माण करने वाली नोएडा टोल ब्रिज कंपनी ने 15 साल में ही लागत से दोगुनी कीमत वसूल ली थी। इसके बाद बाकी बचे करीब 15 साल में कई गुना मुनाफा कमाने की तैयारी थी
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड (एनटीबीसीएल) डीएनडी फ्लाईवे पर टोल नहीं वसूल सकती। इस फैसले से डीएनडी पर वाहन चालकों की राहत बरकरार रहेगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि नोएडा प्राधिकरण ने टोल वसूलने की अपनी शक्ति एनटीबीसीएल को सौंपकर अपने अधिकारों का अतिक्रमण किया और कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाया।
जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली कंपनी की अपील खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने 2016 में एनटीबीसीएल द्वारा डीएनडी पर टोल वसूली पर रोक लगा दी थी। अदालत ने कहा कि एक ऐसी कंपनी को टोल वसूली का जिम्मा दिया, जिसके पास अनुभव नहीं था। पीठ ने कहा कि आम लोगों को कई सौ करोड़ रुपये कंपनी को देने के लिए मजबूर किया गया। कोर्ट ने कहा, कंपनी ने परियोजना और रखरखाव के साथ अपने शुरुआती निवेश पर लाभ कमाया है, ऐसे में डीएनडी पर टोल की वसूली जारी रखने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा।
15 साल में ही वसूला लागत से दोगुना
नोएडा को दिल्ली से जोड़ने के लिए बनाए गए डीएनडी का निर्माण करने वाली नोएडा टोल ब्रिज कंपनी ने 15 साल में ही लागत से दोगुनी कीमत वसूल ली थी। इसके बाद बाकी बचे करीब 15 साल में कई गुना मुनाफा कमाने की तैयारी थी, लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश पर वर्ष 2016 में ही डीएनडी टोल फ्री हो गया था। डीएनडी को बनाने में 408 करोड़ रुपये की लागत आई थी, जबकि कंपनी एक हजार करोड़ रुपये से अधिक तक कमा चुकी थी।
वर्ष 1997 तक नोएडा से सीधे दक्षिणी दिल्ली से जोड़ने के लिए कोई सीधे रास्ता नहीं था। लोग दिल्ली के मयूर विहार के सामने से होते हुए निजामुद्दीन पुल से सराये काले खां होते हुए आश्रम, लाजपत नगर की ओर आते-जाते थे। ऐसे में यमुना पर पुल बनाकर डीएनडी को बनाने की योजना तैयार की गई थी। वर्ष 2001 और इसके शुरुआती पांच-सात साल तक डीएनडी से 20-25 हजार वाहन ही दिल्ली आते-जाते थे। वर्ष 2007-08 के बाद डीएनडी पर वाहनों की संख्या में इजाफा होना शुरू हुआ। वर्ष 2016 में इस पर टोल खत्म होने तक रोजाना यहां से डेढ़ से पौने दो लाख वाहन गुजरते थे।
नियम बनाकर कंपनी को फायदा पहुंचाया
डीएनडी को बनाने के लिए किए गए अनुबंध के दौरान ही इससे काफी कमाई करने का प्लान अफसरों ने तैयार कर लिया था। इसके अनुबंध में मुख्य रूप से एक क्लॉज 20 प्रतिशत घाटे का मूल लागत में समायोजित करते रहने का था, जो कमाई का मुख्य जरिया बनता जा रहा था। इस अनुबंध को तैयार कराने में उन अफसरों की भूमिका महत्वपूर्ण रही जो उस समय नोएडा प्राधिकरण, यूपी सरकार, दिल्ली सरकार आदि जगह कार्यरत थे और सेवानिवृत्त होने के बाद टोल कंपनी में शामिल हो गए या किसी अन्य तरीके से फायदा लिया। इस अनुबंध को रियायती साझा समझौता का नाम दिया गया था।
इस एग्रीमेंट में यह होता है कि परियोजना की लागत हर साल आंतरिक और बाहरी ऑडिटर तय करते हैं। इसके तहत जो घाटा होगा, उस पर परियोजना की लागत पर 20 प्रतिशत रिटर्न दिया जाएगा। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2015 में 100 रुपये कमाए जाने हैं, लेकिन उस साल 90 रुपये ही आय हुई। ऐसे में जो 10 रुपये का जो नुकसान हुआ, वह परियोजना की लागत में जुड़ जाएगा। इससे परियोजना की लागत बढ़ती जा रही थी। हर साल होने वाले घाटा का ऑडिटर सर्टिफिकेट देता था। कंपनी इस सर्टिफिकेट को नोएडा प्राधिकरण में जमा करती थी। इस क्लॉज पर उच्च न्यायालय ने इस नियम पर वर्ष 2016 में सख्त टिप्पणी की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ डीएनडी का संचालन करने वाली कंपनी की अपील को खारिज कर दिया है।
स्ट्रक्चर हटने पर जाम से राहत मिलेगी
उच्चतम न्यायालय के टोल फ्री करने के आदेश के बाद उम्मीद है कि यहां लगा टोल वसूलने का स्ट्रक्चर हट जाएगा। इससे जाम में कमी आएगी और वाहन चालकों को राहत मिलगी । अनुमान के तौर पर डीएनडी से रोजाना ढाई से तीन लाख वाहन गुजरते हैं। डीएनडी के जरिए लोग आसानी से नोएडा से दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में पहुंच जाते हैं। अभी टोल प्लाजा के पास ही टोल ब्रिज कंपनी का दफ्तर है। इसमें भूतल, प्रथम और द्वितीय तल बने हुए हैं। नोएडा टोल ब्रिज कंपनी यहां पर लगे विज्ञापन के जरिए कमाई करती है। विज्ञापन से होने वाली आय के जरिए सड़क की मरम्मत करती है। पिछले साल के अंत में यहां सड़क की मरम्मत कराई गई थी हालांकि अभी कुछ जगह सड़क की हालत ठीक नहीं है। डीएनडी को वर्ष 2001 में बनाते समय करीब 408 करोड़ रुपये की लागत आई थी। इसके बाद कुछ साल बाद मयूर विहार लिंक बनाया गया। ऐसे में कुल मिलाकर करीब 461 करोड़ रुपये का खर्चा आया था। इस मामले में प्राधिकरण अधिकारियों का कहना है कि अभी उच्चतम न्यायालय का आदेश नहीं मिला है। आदेश की कॉपी मिलने के बाद आगे की प्रक्रिया की जाएगी।
डीएनडी से जुड़े तथ्य एक नजर में
● 12 नवंबर 1997 को नोएडा प्राधिकरण, इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज-आईएल एंड एफएस-और नोएडा टोल ब्रिज कंपनी के बीच 30 साल के लिए अनुबंध हुआ। इसके तहत नोएडा जमीन देगा जबकि संचालन और रखरखाव कंपनी को करना होगा। वर्ष 1998 से इसका निर्माण शुरू हुआ
● डीएनडी को बनाने के लिए 454 एकड़ जमीन दी गई
● 7 फरवरी 2001 को डीएनडी पर वाहनों का आवागमन शुरू हुआ
● डीएनडी पर टोल टैक्स समाप्त करने के लिए फोनरवा ने वर्ष 2012 में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया
● 26 अक्तूबर 2016 को उच्च न्यायालय ने टोल फ्री करने का आदेश दिया
● नवंबर 2016 में नोएडा टोल ब्रिज कंपनी ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की
● 11 नवंबर 2016 को उच्चतम न्यायालय ने डीएनडी से हो रही आय के कैग से ऑडिट कराने के आदेश दिए
● 30 लाख रुपये करीब रोजाना वसूल जाता था वर्ष 2016 तक टोल टैक्स
● 1 लाख 30 हजार से ज्यादा रोजाना डीएनडी से निकलते थे वाहन
● 31 लेन हैं नोएडा टोल प्लाजा पर,11 लेन हैं मयूर विहार टोल प्लाजा पर
● 9.2 किलोमीटर लंबा है डीएनडी-मयूर विहार प्लाजा व इंटरचेंज को मिलाकर
इस तरह बढ़ा कंपनी की कमाई का ग्राफ (रुपये में)
वर्ष 2012
कुल कमाई : 99 करोड़ 16 लाख
शुद्ध मुनाफा: 45 करोड़ 32 लाख
वर्ष 2013
कुल कमाई: 113 करोड़ 4 लाख
शुद्ध मुनाफा: 42 करोड़ 11 लाख
वर्ष 2014
कुल कमाई: 124 करोड़ 37 लाख
शुद्ध मुनाफा: 54 करोड़ 75 लाख
वर्ष 2015
कुल कमाई: 130 करोड़ 49 लाख
शुद्ध मुनाफा: 80 करोड़ 82 लाख
वर्ष 2016
कुल कमाई: 131 करोड़ 77 लाख
शुद्ध मुनाफा: 82 करोड़ 39 लाख
5500 करोड़ बकाया था प्राधिकरण पर
वर्ष 2016 में डीएनडी टोल फ्री गया था। उस समय टोल ब्रिज कंपनी के अनुबंध की शर्तों के तहत नोएडा प्राधिकरण पर करीब 5500 करोड़ रुपये बकाया थे।
‘हिन्दुस्तान’ ने सबसे लंबा अभियान चलाया
डीएनडी को टोल फ्री कराने के लिए आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान’ ने सबसे लंबा अभियान चलाया था। वर्ष 2015-16 में लगातार 108 दिन तक खबरें प्रकाशित कीं। इसके जरिए हर बिंदु पर लोगों की आवाज उठाई गई।
मार्च 2016 तक वसूला जा रहा था वाहनों से टोल शुल्क
दो पहिया- 12 रुपए
चार पहिया- 28 रुपए
हल्के कॉमर्शियल वाहन- 70 रुपए
दो एक्सेल कॉमर्शियल वाहन- 85 रुपए
तीन एक्सेल कॉमर्शियल वाहन- 120 रुपए
चार एक्सेल कॉमर्शियल वाहन- 155 रुपए