अब दानवीरों के नाम से जानी जाएंगी DU की प्रॉपर्टी और स्कॉलरशिप, क्या हैं नियम और शर्तें
Delhi University: अगर आप चाहते हैं कि दिल्ली यूनिवर्सिटी की कोई संपत्ति आपके नाम से जानी जाए तो आपके लिए खुशखबरी है। यूनिवर्सिटी ने दान स्वीकार करने को लेकर अपने दिशानिर्देशों में संशोधन किया है।
Delhi University: अगर आप चाहते हैं कि दिल्ली यूनिवर्सिटी की कोई संपत्ति आपके नाम से जानी जाए तो आपके लिए खुशखबरी है। यूनिवर्सिटी ने दान स्वीकार करने को लेकर अपने दिशानिर्देशों में संशोधन किया है। जिससे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निगम एवं परोपकारी लोग दान के बदले यूनिवर्सिटी की संपत्तियों का नाम अपने नाम पर रखवा सकते हैं। यदि पहले से कोई नाम रखा गया है तो उसे बदलवा भी सकते हैं। इसके अलावा दान देने वाले बदले में अपने नाम पर स्कॉलरशिप और पुरस्कार भी शुरू करवा सकते हैं।
इनके निर्माण को दे सकते हैं दान
यह मंजूरी शुक्रवार को आयोजित बैठक के दौरान डीयू की कार्यकारी परिषद (ईसी) ने दी है, जो अहम निर्णय लेने वाली संस्था है। नए दिशा-निर्देशों के तहत, दानकर्ता किसी नए भवन या किसी मौजूदा स्ट्रक्चर (संरचना) के हिस्से, जैसे कि हॉस्टल, लैब, टीचिंग ब्लॉक, लाइब्रेरी या ऑडिटोरियम के निर्माण में योगदान दे सकते हैं। इस तरह के दान को एक स्मारक पट्टिका (पत्थर से बनी, आकार विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित किया जाएगा) लगाकर स्वीकार किया जाएगा, जिस पर एक प्रशस्ति पत्र और दानकर्ता का लोगो (यदि लागू हो) अंकित होगा।
सीमित अवधि के लिए लगेंगी पट्टिका
हालांकि, यूनिवर्सिटी ने साफ किया है कि दान की राशि के आधार पर पट्टिका भवन या स्ट्रक्चर पर सीमित अवधि के लिए रहेगी। 5 करोड़ रुपये या उससे अधिक के दान पर 33 साल, 2 से 5 करोड़ रुपये के बीच के दान पर 20 साल के लिए और 1 से 2 करोड़ रुपये के बीच के दान पर पट्टिका 10 साल तक लगी रहेगी। पिछले साल आलोचना के बाद चुनाव आयोग ने जिन दिशा-निर्देशों को खारिज कर दिया था, उनमें पूरे ढांचे का नाम दानकर्ता के नाम पर रखने का प्रस्ताव था। अब संशोधित दिशा-निर्देशों में, यूनिवर्सिटी ने सीमित समय अवधि के साथ स्मारक पट्टिकाओं के विकल्प को चुना है।
एक वर्ग ने जताई आपत्ति
शिक्षण कर्मचारियों के एक वर्ग ने दिशा-निर्देशों पर आपत्ति जताई है। ईसी सदस्य अमन कुमार ने कहा, 'हमें निगमों और दानदाताओं के नाम पर संपत्तियों का नाम रखने और उन्हें नाम बदलने की अनुमति देने पर आपत्ति है। अगर वे दान करते हैं, तो वे तय करेंगे कि इसका उपयोग कैसे किया जाना चाहिए और विश्वविद्यालय के मामलों में उनकी भूमिका अधिक होगी।'