क्या है 'बांग्लादेशी सेल' जिससे अवैध नागरिकों का पता लगाएगी दिल्ली पुलिस, जानें कैसे करता है काम
दिल्ली में इन दिनों अवैध बांग्लादेशियों के खिलाफ अभियान चल रहा है। पुलिस अवैध रूप से भारत में रह रहे रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को डिपोर्ट कर रही है। राजधानी में दो दशक पहले भी पुलिस ने ऐसा ही अभियान चलाया था।
दिल्ली में इन दिनों अवैध बांग्लादेशियों के खिलाफ अभियान चल रहा है। पुलिस अवैध रूप से भारत में रह रहे रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को डिपोर्ट कर रही है। राजधानी में दो दशक पहले भी पुलिस ने ऐसा ही अभियान चलाया था। तब पुलिस के आला अधिकारियों ने ऐसे पुलिसकर्मियों की तलाश की थी जो बंगाली बोल और समझ सकते थे। इनका काम खास इलाकों के निवासियों से मिलना-जुलना और अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के बारे में खुफिया जानकारी जुटानी थी। ऐसे पुलिसकर्मियों को एक सेल में रखा जाता था।
क्या है बांग्लादेश सेल
उपराज्यपाल के आदेश पर दिल्ली में एक बार फिर अवैध बांग्लादेशियों के खिलाफ अभियान शुरू किया गया है। जिसने पुलिस को अपने 'बांग्लादेश सेल' को फिर से शुरू करने के लिए प्रेरित किया है, जो पिछले एक दशक या उससे भी ज्यादा समय से बंद पड़े हैं। 2000 के दशक की शुरुआत में एक पूर्व पुलिस कमिश्नर द्वारा स्थापित, इस सेल का गठन हर जिले में किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य दिल्ली में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान करना और उनका पता लगाना था। उस समय, इन सेल के जरिए पुलिस ने फॉरेन रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस के जरिए हजारों ऐसे अप्रवासियों का पता लगाया और उन्हें डिपोर्ट (निर्वासित) किया।
बांग्लादेश सेल की वापसी
टीओआई के अनुसार, अब सालों बाद यह एक्सरसाइज फिर शुरू हो गई है। कई जिलों ने अनौपचारिक रूप से 'फॉरनर डिपोर्टेशन सेल' नाम से वैसी ही टीमें बनाई हैं। सूत्रों ने बताया कि कुछ जिलों ने पुरानी यूनिट को फिर से शुरू किया है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘इन सेल्स में आमतौर पर 5-10 पुलिसकर्मी होते हैं, खासतौर से जिन्हें बांग्ला बोलनी आती है। इनका नेतृत्व या तो एक इंस्पेक्टर या एक सब-इंस्पेक्टर करता है। इसके अलावा असमिया-बंगाली पुलिसकर्मियों की मदद ली जा रही है।’
पुलिस अधिकारी ने कहा, 'उच्चारण, शब्दावली और भावों में कुछ उल्लेखनीय अंतर हैं। बांग्लादेश में बोली जाने वाली बंगाली में एक अलग तरह का एक्सेंट (उच्चारण) होता है। इसके अतिरिक्त, मुहावरेदार अभिव्यक्तियां और बोलचाल की भाषा भी अलग होती है। इन्हें पहचानना चुनौती है और जिन पुलिसकर्मियों को भाषा का बुनियादी ज्ञान भी है, वे इसमें आगे हैं।'
ऐसे होती है पहचान
पुलिस सूत्रों ने बताया कि वे झुग्गी-झोपड़ियों, मजदूर शिविरों और अनधिकृत कॉलोनियों का दौरा करते है, जहां अवैध प्रवासियों के मौजूद होने की संभावना होती है। सुबह से शुरू होने वाली यह कवायद देर शाम तक चलती है। उन्होंने कहा, 'भाषा हमें यह समझने में मदद करती है कि वेरिफाइड किया जा रहा व्यक्ति क्या कह रहा है। इससे संवाद स्थापित करने में मदद मिलती है और यह भी सुनिश्चित होता है कि किसी गलत व्यक्ति को डिपोर्ट न किया जाए।'