OT बंद, दवाओं व नर्सिंग स्टाफ की कमी, CAG रिपोर्ट से दिल्ली के सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा उजागर
दिल्ली मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने शुक्रवार को पूर्ववर्ती अरविंद केजरीवाल सरकार की स्वास्थ्य पर कैग रिपोर्ट विधानसभा में पेश की। इस रिपोर्ट में अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी, ऑपरेशन थियेटर बंद होने और दवाओं की किल्लत का खुलासा किया गया है।

दिल्ली में पूर्ववर्ती अरविंद केजरीवाल सरकार की शराब नीति के बाद शुक्रवार को स्वास्थ्य पर कैग रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गई। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने यह रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी। इस रिपोर्ट में अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी, ऑपरेशन थियेटर बंद होने और दवाओं की किल्लत का खुलासा किया गया है।
कैग रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में कर्मचारियों और बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी से मरीजों को इलाज मे दिक्कत हुई। मार्च 2022 तक पैरामेडिकल स्टाफ की 36 फीसदी और नर्सों की 21 फीसदी कमी थी, जबकि अस्पतालों में टीचिंग विशेषज्ञ डॉक्टरों के 30 फीसदी पद खाली थे। इससे मरीजों को डॉक्टर से औसतन पांच मिनट से भी कम समय का परामर्श मिल रहा था। ऑपरेशन थियेटर बंद पड़े थे और दवाओं की भारी किल्लत थी। सरकार द्वारा जारी बजट का भी समुचित उपयोग नहीं किया गया, जिससे अस्पतालों के निर्माण कार्य अधूरे रह गए। मार्च 2022 तक दिल्ली सरकार के अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी क्रमश 21 फीसदी और 38 फीसदी थी। दिल्ली के 28 अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में टीचिंग विशेषज्ञ डॉक्टरों की 30 फीसदी कमी थी।
प्रतिबंधित फर्मों से भी दवाएं खरीदी गईं
कैग रिपोर्ट के मुताबिक, अस्पतालों में आवश्यक दवाओं की सूची हर साल तैयार होनी चाहिए, लेकिन इसे बीते 10 वर्षों में यह सूची केवल तीन बार बनाई गई। कुछ दवाएं ब्लैकलिस्टेड और प्रतिबंधित कंपनियों से खरीदी गईं। दवाएं खरीदने के लिए बनी सेंट्रल प्रोक्योरमेंट एजेंसी विफल रही। 2016-17 से 2021-22 के दौरान, अस्पतालों को 33 से 48 फीसदी तक आवश्यक दवाएं स्वयं खरीदनी पड़ीं, क्योंकि सीपीए उन्हें आपूर्ति नहीं कर सका। सीपीए द्वारा 86 निविदाओं में से केवल 28 फीसदी ही अंतिम रूप से स्वीकृत हुईं।
फंड होने के बावजूद अस्पतालों का निर्माण पूरा नहीं हो सका
सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में स्वास्थ्य बजट का पूरा इस्तेमाल नहीं हो सका। वित्त वर्ष 2016-17 की बजट स्पीच में अस्पतालों में 10 हजार बेड और जोड़े जाने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन 2016-17 से लेकर 2020-21 तक केवल 1,357 नए बेड ही जुड़ सके। स्वास्थ्य विभाग ने जून 2007 से दिसंबर 2025 के बीच नए अस्पताल और डिस्पेंसरी बनाने के लिए 648.05 करोड़ रुपये में 15 प्लॉट हासिल किए थे, लेकिन पजेशन हासिल कर लेने के बाद भी उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सका।
ऑडिट के दौरान निर्माणाधीन 8 नए अस्पतालों में से केवल 3 का ही निर्माण कार्य पूरा हो पाया था, जबकि इन अस्पतालों के निर्माण में पहले ही 6 साल की देरी हो चुकी है। साल 2021-22 में कुल व्यय का 12.51 फीसदी और जीएसडीपी का 0.79 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च हुआ, जो लक्ष्य (2.5 फीसदी जीएसडीपी) से काफी कम था। इसके अलावा दिल्ली राज्य स्वास्थ्य मिशन द्वारा 510.71 करोड़ की राशि इस्तेमाल नहीं की गई।
कैग रिपोर्ट की खास बातें
● स्टाफ की कमी से मरीजों को पांच मिनट भी नहीं देख पा रहे थे डॉक्टर
● आईसीयू/आपातकालीन विभागों में आवश्यक दवाओं और उपकरणों की कमी देखी गई।
● अस्पातलों में रजिस्ट्रेशन काउंटरों पर अधिक भीड़ और कम स्टाफ होने के कारण मरीजों को औसतन पांच मिनट से भी कम का परामर्श मिला
● ब्लड बैंक की सुविधा वाले चार अस्पतालों में से केवल लोकनायक में ही ब्लड कंपोनेंट अलग करने की सुविधा थी। इससे परेशानी होती है।
● फार्मासिस्टों की कमी के कारण लोकनायक में प्रति फार्मासिस्ट अधिक मरीज थे और मरीजों को उसी दिन दवाएं मिलने में दिक्कत रही
● सुष्रुत ट्रॉमा सेंटर में विशेषज्ञ डॉक्टरों की स्थायी नियुक्ति नहीं मिली
● वन स्टॉप सेंटर में बलात्कार पीड़ितों के लिए कोई समर्पित स्टाफ नहीं मिला
● कैट्स एंबुलेंस सेवा में आवश्यक उपकरणों की कमी थी
● आहारविद न होने से खाने की गुणवत्ता की जांच नहीं पाई गई
● लोकनायक अस्पताल में सर्जरी की प्रतीक्षा अवधि 2-3 महीने (सर्जरी विभाग) और 6-8 महीने (प्लास्टिक सर्जरी) रही
● जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल और राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में आहार सेवाएं उपलब्ध नहीं थीं। आहारविद द्वारा निरीक्षण नहीं किया जाता था, जिससे खाद्य गुणवत्ता पर कोई निगरानी नहीं
● राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के 12 में से 6 मॉड्यूलर ऑपरेशन थियेटर और जनकपुरी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के सभी सात ऑपरेशन थियेटर स्टाफ की कमी के कारण निष्क्रिय मिले