दिल्ली का बजट 75 हजार करोड़, मुफ्त योजनाओं पर खर्च होंगे 35-40 हजार; एक्सपर्ट ने बताया क्यों 'रेवड़ियां' हैं खतरनाक
Delhi Election: दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले सभी प्रमुख दलों ने महिलाओं को नकद राशि, मुफ्त सफर और सस्ते भोजन सहित कई घोषणाएं की हैं। दिल्ली का कुल बजट लगभग 75 हजार करोड़ का है।
Delhi Election: दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले सभी प्रमुख दलों ने महिलाओं को नकद राशि, मुफ्त सफर और सस्ते भोजन सहित कई घोषणाएं की हैं। दिल्ली का कुल बजट लगभग 75 हजार करोड़ का है। अगर सत्ता में आने वाला कोई भी दल अपनी सभी घोषणाओं को पूरा करेगा तो इसके लिए करीब 35 से 40 हजार करोड़ रुपये की जरूरत होगी। इससे साफ है कि ऐसी घोषणाएं किसी भी राज्य के भविष्य के लिए खतरनाक साबित होंगी।
राजधानी में लगभग 60 लाख से अधिक महिलाएं हैं। सत्ता में आने वाला कोई भी दल यदि प्रति महिला 2000 रुपये महीना भी देता है तो इसके लिए करीब 10 हजार करोड़ रुपये लगेंगे। बतौर अर्थशास्त्री मैं इसे ठीक नहीं मानता हूं। कोई भी सरकार अगर अधिकांश राशि अपने घोषणा पत्र के अनुसार जनता में बांट देगी तो वह विकास के कार्य कैसे करेगी? अस्पताल, सड़क, स्कूल, स्टेडियम कैसे बनेंगे? यही नहीं, जो पहले से बना है, उसकी मरम्मत और पेंशन-वेतन आदि दे पाना भी चुनौतीपूर्ण होगा।
किसे देंगे और किसको छोड़ेंगे, तय नहीं
सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है कि वह कितने लोगों को यह राशि देगी, जो जरूरतमंद हैं उनको देगी या सबको देगी। जैसा कि झुग्गी की महिला और एक कामकाजी महिला की जरूरत में अंतर है। हालांकि, राजनीतिक दलों के वादे जनता को तुरंत आकर्षित करते हैं और लोग इन वादों में आकर मतदान भी करते हैं, लेकिन आर्थिक स्तर पर यह ठीक नहीं है।
सीधे पैसा देना सही नहीं
स्कूल, कॉलेज, उद्योग खोलना और रोजगार पैदा करना लोक कल्याणकारी राज्य का दायित्व है। एक तरह से देखा जाए तो जनता को सीधे धन ट्रांसफर कर सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच रही है। हमेशा लघु अवधि और दीर्घ अवधि के कार्य किए जाते हैं।
जनता को पैसा देना और लोकलुभावन वादे कर चुनाव जीतना लघु अवधि के कार्य हैं, जबकि आईआईटी, आईआईएम खोलना, उद्योग स्थापित करना, रोजगार देना यह दीर्घ अवधि तक नागरिक को सक्षम बनाने वाले कार्य हैं।