100 से ज्यादा देशों में साम्राज्य, लेकिन अरबपतियों की सूची में क्यों नहीं था रतन टाटा का नाम?
- 86 साल की उम्र में दुनिया से रुखसत हुए रतन टाटा ने भारत में शुरू हुए टाटा समूह को वैश्विक रूप दिया। अपनी सादगी भरी जीवनशैली और परोपकार के लिए मशहूर रतन टाटा ने 21 साल तक कंपनी का नेतृत्व किया। हालांकि अरबपतियों की सूची से उनका नाम नदारद रहा।
दिग्गज उद्योगपति और टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का निधन हो गया है। उन्होंने 86 साल की उम्र मुंबई के अस्पताल में आखिरी सांस ली। अपनी सादगी के लिए मशहूर रतन टाटा दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे। दुनिया के छह महाद्वीपों पर 100 से ज्यादा देशों में 30 कंपनियों पर रतन टाटा का नियंत्रण था। हालांकि आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उनका नाम कभी भी अरबपतियों की किसी सूची में नजर नहीं आया। यह उम्मीद करना तर्कसंगत हो सकता है कि एक व्यक्ति जिसने लगभग छह दशकों तक भारत में सबसे बड़े बिजनेस साम्राज्य का संचालन किया हो और कंपनियों पर बड़ा प्रभाव रखता हो वह शीर्ष 10 या 20 सबसे अमीर भारतीयों में से एक होगा। लेकिन ऐसा नहीं है। इसका मुख्य कारण टाटा ट्रस्ट के माध्यम से टाटा द्वारा किए जाने वाले बड़े पैमाने पर परोपकारी कार्य है।
1.2 बिलियन डॉलर का दान
रतन टाटा के पास अपनी कंपनी के बहुत ज़्यादा शेयर नहीं थे। समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा ने खुद ही नियम बनाया था कि टाटा संस में वे जो भी कमाते थे उसका ज़्यादातर हिस्सा टाटा ट्रस्ट को दान कर दिया जाता था। बिल गेट्स जैसे लोगों के आने से बहुत पहले से ही टाटा सबसे बड़े परोपकारी रहे हैं। टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस की लगभग 66% इक्विटी पूंजी ट्रस्टों के पास है। रतन टाटा का ध्यान हमेशा व्यक्तिगत धन अर्जन के बजाय सामाजिक परोपकार पर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक रतन टाटा लगभग 9 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा दान कर चुके थे। रतन टाटा ने स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, ग्रामीण विकास और सामाजिक कल्याण पहलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए 1.2 बिलियन डॉलर से अधिक दान किया है।
विश्व स्तर पर पहुंचाने का श्रेय
उद्योगपति रतन टाटा को भारत के टाटा समूह को सॉफ्टवेयर से लेकर स्पोर्ट्स कार तक के पोर्टफोलियो के साथ एक विश्व स्तर पर प्रसिद्ध समूह में बदलने का श्रेय दिया जाता है। उनके 21 सालों के कार्यकाल में नमक से लेकर स्टील तक के समूह ने जगुआर और लैंड रोवर जैसे ब्रिटिश लक्जरी ब्रांडों को शामिल करते हुए अपनी वैश्विक उपस्थिति का विस्तार किया। 1937 में जन्में एक बेहद शर्मीले छात्र रतन टाटा ने एक आर्किटेक्ट बनने का सोचा था और अमेरिका में काम कर रहे थे। इसके बाद उनकी दादी, जिन्होंने उन्हें पाला था, ने उन्हें घर लौटने और पारिवारिक व्यवसाय में शामिल होने के लिए कहा। उन्होंने 1962 में प्रशिक्षुओं के लिए एक हॉस्टल में रहकर और ब्लास्ट फर्नेस के पास दुकान के फर्श पर काम करके शुरुआत की थी।