कौन थे सर सैयद अहमद खान? उनकी बायोपिक को टेलिकास्ट करने से दूरदर्शन का इनकार, AMU से नाता
- AMU ओल्ड बॉयज एसोसिएशन, दिल्ली एनसीआर के अध्यक्ष मुदस्सिर हयात ने कहा कि सर सैयद जैसे महान नेता की जीवनगाथा को देश, खासकर नई पीढ़ी को दिखाया जाना चाहिए।
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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के संस्थापक सर सैयद अहमद खान (1817-1898) पर आधारित पहली बायोपिक "Sir Syed Ahmed Khan: The Messiah" को हाल ही में एक OTT प्लेटफॉर्म पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिलीज किया गया। हालांकि दूरदर्शन ने इसे अपने प्रसार भारती OTT प्लेटफॉर्म पर टेलीकास्ट करने से इनकार कर दिया है। आपको बता दें कि इस फिल्म एएमयू के कुलपति नैमा खातून ने हाल ही में विश्वविद्यालय परिसर में धूमधाम से रिलीज किया था।
यह बायोपिक सर सैयद अहमद खान के जीवन पर आधारित है, जिसमें उनके द्वारा मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल (MAO) कॉलेज की स्थापना की कड़ी मेहनत और मुस्लिम समुदाय में वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहित करने के प्रयासों को दर्शाया गया है। यह कॉलेज बाद में 1920 में एएमयू में बदल गया।
मुंबई स्थित डार्क हॉर्स प्रोडक्शंस को प्रसार भारती के प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव की ओर से भेजे गए एक पत्र में कहा गया है, "आपके द्वारा प्रस्तुत सर सैयद अहमद खान पर आधारित कार्यक्रम को प्रसार भारती OTT के आगामी प्लेटफॉर्म पर टेलीकास्ट के लिए स्वीकार नहीं किया जा सकता।"
इस बायोपिक के निर्माता और प्रमुख अभिनेता शोएब चौधरी इस फैसले से गहरे आहत हैं। उन्होंने कहा, "जो सीरियल मैंने दूरदर्शन के लिए प्रोड्यूस किया था, वह दूरदर्शन के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चला। यह चौंकाने वाली बात है कि सर सैयद पर आधारित इस बायोपिक को दूरदर्शन के OTT प्लेटफॉर्म पर स्ट्रीमिंग के लिए स्वीकार नहीं किया गया। लगता है दूरदर्शन ने यह प्रस्ताव राजनीतिक दबाव के कारण अस्वीकृत कर दिया है।"
सर सैयद के जीवन पर आधारित यह बायोपिक उनकी जीवनी "हयात-ए-जावेद" पर आधारित है। फिल्म में सर सैयद के संघर्षों और उनके प्रयासों को दिखाया गया है। इसके कारण वे भारतीय मुस्लिम समुदाय के लिए शिक्षा और सामाजिक सुधार के प्रेरणा स्रोत बने। 2020 में AMU के शताब्दी उत्सव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एएमयू के परिसर को "मिनी-इंडिया" करार दिया था।
AMU ओल्ड बॉयज एसोसिएशन, दिल्ली एनसीआर के अध्यक्ष मुदस्सिर हयात ने कहा कि सर सैयद जैसे महान नेता की जीवनगाथा को देश, खासकर नई पीढ़ी को दिखाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "यह बायोपिक कई भ्रांतियों को दूर कर सकती है और नई पीढ़ी को प्रेरित कर सकती है कि शिक्षा को प्रगति का उपकरण बनाया जाए।"