भारत सरकार को लगाया करोड़ों का चूना, इस अमेरिकी नागरिक का प्रत्यर्पण क्यों चाहती है CBI?
- सीबीआई की प्रारंभिक जांच में पता चला कि 2007 में एक ग्लोबल टेंडर के माध्यम से एकोन इंक को इन जनरेटरों की आपूर्ति के लिए चुना गया था।
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने एक भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक के खिलाफ प्रत्यर्पण का अनुरोध किया है। यह मामला रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) से जुड़ा है। दरअसल सीबीआई ने 2009 में DRDO यूनिट को 1 मिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के वोल्टेज नियंत्रित ऑसिलेटर्स (वीसीओ) की सप्लाई में अनियमितताओं को लेकर अमेरिकी नागरिक के प्रत्यर्पण की मांग की। सीबीआई ने कैलिफोर्निया स्थित कंपनी एकोन इंक के सीईओ सुर्या सरीन (79) के खिलाफ प्रत्यर्पण की मांग की है। वह अमेरिका के नागरिक हैं। सरीन की कंपनी को 2009 में डीआरडीओ की डिफेंस एवियोनिक्स रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट (DARE) के लिए 35 वीसीओ-आधारित आरएफ जनरेटर की सप्लाई का ऑर्डर मिला था। लेकिन इसमें बड़ी धांधली सामने आई।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) जारी किए थे, जिन्हें लागू नहीं किया जा सका। एफआईआर 2020 में दर्ज की गई और चार्जशीट 2023 में दायर की गई। सीबीआई के अनुसार, सरीन ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में मामले को खत्म करने का आवेदन किया है। एकोन इंक नामक यह कंपनी पिछले 40 वर्षों से विमानन, शिपिंग और स्पेस इंडस्ट्री के लिए प्रोडक्ट्स की सप्लाई करती आ रही है। सीबीआई ने सुर्या सरीन, उनकी कंपनी एकोन इंक और डीआरडीओ के रक्षा एवियोनिक्स अनुसंधान प्रतिष्ठान के पूर्व निदेशक यू.के. रेवणकर और वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रिया सुरेश के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया है। 2020 में, रक्षा मंत्रालय के सतर्कता निदेशक द्वारा भेजे गए एक पत्र के आधार पर सीबीआई ने प्राथमिक जांच शुरू की थी। शिकायत के अनुसार, डीएआरई के एक कर्मचारी ने 2012 में वीसीओ-आधारित आरएफ जनरेटर की खरीद में अनियमितताओं का आरोप लगाया था।
सीबीआई की प्रारंभिक जांच में पता चला कि 2007 में एक ग्लोबल टेंडर के माध्यम से एकोन इंक को इन जनरेटरों की सप्लाई के लिए चुना गया था। ये वीसीओ विभिन्न रडार इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों की लैब टेस्टिंग के लिए थे। जांच में यह सामने आया कि एकोन इंक ने फरवरी 2009 में अधूरे वीसीओ जनरेटर की 35 इकाइयों को तीन खेपों में भेजा था और मार्च 2009 में इसका 90% भुगतान भी प्राप्त कर लिया था।
सीबीआई का आरोप है कि डीएआरई के अधिकारियों ने जानते हुए भी इन अधूरी इकाइयों को स्वीकार किया और फर्जी रिपोर्ट दी कि "इकाइयां संतोषजनक रूप से काम कर रही हैं।" इससे अमेरिकी कंपनी को अंतिम भुगतान करने में सुविधा हुई। सीबीआई ने आरोप लगाया कि 23 अधूरी वीसीओ इकाइयों को वापस एकोन इंक को भेजा गया, लेकिन अधिकारियों ने भुगतान को मंजूरी देने के लिए एक झूठी रिपोर्ट दी।
सीबीआई द्वारा 2020 में दर्ज एफआईआर में यह भी उल्लेख किया गया कि जब ये इकाइयां वापस आईं, तो इनमें से कोई भी काम नहीं कर रही थी और न ही डीएआरई द्वारा जारी किए गए क्रय आदेश की विशिष्टताओं को पूरा कर सकीं। सीबीआई ने आरोप लगाया कि डीएआरई के वरिष्ठ अधिकारियों ने एकोन इंक के साथ मिलकर भारत सरकार को धोखा देने की साजिश रची। सीबीआई ने इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत आपराधिक षड्यंत्र, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप पत्र दाखिल किया है।