क्या थी बाघ से लड़ जाने वाले दलित की वह कहानी, जिसने आंबेडकर को अंदर तक झकझोर दिया
- आंबेडकर मानते थे कि जाति व्यवस्था को खत्म किए बिना अस्पृश्यता जैसी अमानवीय चीज खत्म नहीं हो सकती। वहीं महात्मा गांधी के विचार थे कि वर्ण व्यवस्था को समाप्त किए बिना भी इससे मुक्त पाई जा सकती है। भीमराव आंबेडकर ने अस्पृश्यता के नाम जो अमानवीय घटनाएं हुईं, उनका खूब वर्णन किया था।

बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर ने अपना जीवन अस्पृश्यता उन्मूलन एवं वंचितों को अधिकार दिलाने के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने अस्पृश्यता को हिंदू धर्म की सबसे खतरनाक बुराई माना था और वह मानते थे कि इसके चलते समाज के तौर पर हम कमजोर हुए हैं। उन्होंने इसके खिलाफ खूब लिखा और आंदोलन भी किए। यहां तक कि महात्मा गांधी जैसे कई नेताओं के साथ उनके मतभेद भी रहे। इसकी वजह थी कि आंबेडकर मानते थे कि जाति व्यवस्था को खत्म किए बिना अस्पृश्यता जैसी अमानवीय चीज खत्म नहीं हो सकती। वहीं महात्मा गांधी के विचार थे कि वर्ण व्यवस्था को समाप्त किए बिना भी इससे मुक्त पाई जा सकती है। भीमराव आंबेडकर ने अस्पृश्यता के नाम जो अमानवीय घटनाएं हुईं, उनका खूब वर्णन किया था। उनके अपने बचपन के कई ऐसे वाकये थे तो उन्होंने समाज में हुई अन्य घटनाओं को भी रिपोर्ट किया।
ऐसी ही एक घटना का जिक्र उन्होंने 2 अक्टूबर, 1925 में 'मिलाप' अखबार में प्रकाशित एक खबर के माध्यम से भी किया था। यह वाकया था, जिसमें एक हरिजन को धर्मशाला के अंदर नहीं जाने दिया गया और वन क्षेत्र में उसे बाहर रहना पड़ा। इसके कारण उस पर बाघ ने हमला किया और अंत में वह बुरी तरह जख्मी हुआ। इस वाकये समेत कई और घटनाओं का जिक्र करते हुए भीमराव आंबेडकर ने अपनी पुस्तक 'अस्पृश्यता' में लिखा है, 'इन उदाहरणों में व्यक्त हृदयहीनता से पता चलता है कि हिंदुओं को अस्पृश्यों के साथ व्यवहार करते समय उचित-अनुचित का कोई ध्यान नहीं रहता और वह उनकी बिलकुल भी परवाह नहीं करता।'
भीमराव आंबेडकर ने बाघ और दलित वाले उस वाकये को अखबार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कुछ यूं लिखा था-
‘रुद्रप्रयाग से समाचार मिला है कि सितंबर के पहले सप्ताह की एक शाम को एक हरिजन रुद्रप्रयाग की एक धर्मशाला में आया। जब उसे पता चला कि वहां रोजाना एक बाघ आता है तो उसने धर्मशाला के प्रबंधक से कहा कि बाघ से बचने के लिए वह उसे रात भर धर्मशाला के किसी कोने में पड़ा रहने दे। पर उस जालिम प्रबंधक ने एक न सुनी और धर्मशाला का दरवाजा बंद कर दिया। अभागा हरिजन धर्मशाला के बाहर एक कोने में पड़ा रहा। रात भर उसे बाघ का डर सताता रहा। जब रात ढल रही थी तो बाघ आया और हरिजन पर टूट पड़ा। वह आदमी काफी तगड़ा था। मौत को सामने देख वह निडर हो गया। उसने बाघ को गर्दन से पकड़ लिया और चिल्लाया- मैं बाघ को पकड़ लिया है। आओ और इसका काम तमाम कर दो। पर ऊंची जाति के प्रबंधक ने न तो फाटक ही खोला और न ही किसी अन्य तरीके से उसकी मदद की। इधर हरिजन की पकड़ ढीली पड़ गई और बाघ जान बचाकर भाग गया। फिलहाल वह व्यक्ति गढ़वाल के श्रीनगर में एक अस्पताल में घायल अवस्था पड़ा है, जहां उसने अपने को खुद दाखिल करवाया। उसकी हालत नाजुक बताई जाती है।’