जब 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने टेके घुटने, हुआ था इतिहास का सबसे बड़ा सरेंडर; क्या है बांग्लादेश के जन्म की कहानी
- 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के आगे घुटने टेक दिए। यह सरेंडर न केवल भारत की विजय थी, बल्कि बांग्लादेश के जन्म की कहानी भी बयान करता है।
कैलेंडर में दर्ज 16 दिसंबर 1971 का दिन भारत के लिए सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक गौरवशाली गाथा है। यह वह दिन था जब भारतीय सेना ने अपनी वीरता और रणनीति से इतिहास का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण दर्ज करवाया। पाकिस्तानी सेना के 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के आगे घुटने टेक दिए। यह न केवल भारत की विजय थी, बल्कि बांग्लादेश के जन्म की भी घोषणा थी।
युद्ध की कहानी तब शुरू हुई, जब पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के अत्याचार चरम पर थे। लाखों निर्दोष लोगों की चीखें गूंज रही थीं। भारत ने अपनी सीमाओं पर शरणार्थियों की बाढ़ देखी, और तभी तय हो गया था कि यह अन्याय अब और नहीं चलेगा।
13 दिन का वो तूफान
भारतीय सेना ने तीन दिशाओं से अपने कदम बढ़ाए। पश्चिमी सीमा पर नौसैनिक घेराबंदी और पूर्वी पाकिस्तान में नो-फ्लाई जोन ने पाकिस्तान को जकड़ लिया। आईएनएस विक्रांत, भारतीय नौसेना का गौरव, समुद्र में दुश्मन के रास्ते बंद कर रहा था। भारतीय वायुसेना ने आसमान में अपना परचम लहराया और तीन दिनों के भीतर पूर्वी पाकिस्तान में वायु श्रेष्ठता स्थापित कर दी। जमीन पर भारतीय सैनिक किलेबंद शहरों की ओर बढ़ रहे थे। सिलहट, टंगाइल, चटगांव, एक-एक कर शहर गिरते गए। टंगाइल में 5,000 पैराट्रूपर्स की वीरतापूर्ण जंप ने दुश्मन के मनोबल को चकनाचूर कर दिया और फिर ढाका का रास्ता साफ हो गया।
ढाका की ओर कूच
पाकिस्तानी जनरल एएके नियाजी को लगता था कि भारत सीमाई इलाकों पर ही फंसा रहेगा। लेकिन जब भारतीय सैनिकों ने ढाका को घेर लिया, तो उन्हें अपनी भूल समझ आई। 8 दिसंबर को भारतीय सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ ने नियाजी को स्पष्ट संदेश दिया कि आत्मसमर्पण करने में ही उनकी भलाई है।
14 दिसंबर को भारतीय वायुसेना ने ढाका के गवर्नर हाउस पर बम गिराए। पूरा प्रशासन हिल गया। नियाजी ने तब अपने आकाओं से मदद मांगी लेकिन जवाब आया कि उन्हें आखिरी सांस तक लड़ना होगा। थके-हारे नियाजी ने हथियार डालने का फैसला किया और 16 दिसंबर को वह क्षण आया, जब 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया।
ऐसे बना बांग्लादेश
इस युद्ध ने न केवल पाकिस्तान को विभाजित किया, बल्कि दुनिया को बांग्लादेश के रूप में एक नया राष्ट्र भी दिया। विजय दिवस सिर्फ युद्ध की जीत का दिन नहीं, बल्कि उस संकल्प का प्रतीक है, जिसने अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई। हर साल 16 दिसंबर हमें याद दिलाता है कि जब सही रणनीति, नेतृत्व और वीरता साथ हों, तो इतिहास बदला जा सकता है और यही उस सुबह की सच्ची कहानी है।