क्या है हाइपरलूप टेस्ट फैसिलिटी? चीन से भी तेज दौड़ेगी भारत की ट्रेन, कितना आएगा खर्चा
- रिपोर्ट के मुताबिक, आईआईटी मद्रास के परिसर में 422 मीटर लंबा हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक तैयार किया गया है, जो भारत का पहला ऐसा ट्रैक है।
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भारत जल्द ही परिवहन के क्षेत्र में एक नया इतिहास रचने जा रहा है। देश अब दुनिया की सबसे लंबी हाइपरलूप टेस्ट फैसिलिटी बनाने की तैयारी में जुट गया है। यह महत्वाकांक्षी परियोजना भारतीय रेलवे और आईआईटी मद्रास के सहयोग से शुरू की जा रही है, जिसके तहत हाइपरलूप तकनीक को अगले स्तर पर ले जाने की योजना है।
यह हाई-स्पीड इंफ्रास्ट्रक्चर 1,100 किलोमीटर प्रति घंटे तक की स्पीड प्राप्त करने में सक्षम होगा। अधिकारियों के अनुसार, दिसंबर 2024 में 422 मीटर टेस्ट ट्रैक की सफलतापूर्वक स्थापना के बाद अब 40-50 किलोमीटर लंबी हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक बनाने की योजना बनाई जा रही है। इस परियोजना को भारतीय रेलवे का समर्थन प्राप्त होगा।
ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, आईआईटी मद्रास के परिसर में 422 मीटर लंबा हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक तैयार किया गया है, जो भारत का पहला ऐसा ट्रैक है। अब इस सफलता के बाद सरकार और विशेषज्ञ इसे और विस्तार देने की योजना बना रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, प्रस्तावित नई टेस्ट फैसिलिटी मौजूदा ट्रैक से कई गुना लंबी होगी और यह दुनिया में अपनी तरह की सबसे बड़ी फैसिलिटी बन सकती है।
हाइपरलूप: भविष्य की परिवहन प्रणाली
हाइपरलूप एक उभरती हुई हाई-स्पीड सार्वजनिक परिवहन प्रणाली है, जो पारंपरिक रेल मार्गों की तरह कार्य करती है, लेकिन एडवांस तकनीकों के माध्यम से अधिक दक्षता और कम लागत पर केंद्रित है। इस प्रणाली में कम दबाव वाली ट्यूबों के भीतर चलने वाले कैप्सूल का इस्तेमाल किया जाता है, जो एयर-बेयरिंग सतहों द्वारा समर्थित होते हैं।
भारतीय रेलवे, लार्सन एंड टुब्रो (L&T) कंस्ट्रक्शन और आईआईटी मद्रास के सहयोग से 422-मीटर की वैक्यूम ट्यूब परीक्षण सुविधा स्थापित की गई थी। इस परियोजना में अहम भूमिका निभाने वाला TuTr हाइपरलूप, आईआईटी मद्रास द्वारा इनक्यूबेटेड एक डीप-टेक स्टार्टअप है, जिसने हाल ही में भारत की पहली कॉमर्शियल हाइपरलूप पॉड का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस प्रगति पर खुशी जताते हुए कहा, "यह भारत के लिए परिवहन के भविष्य को फिर से परिभाषित करने का मौका है। हाइपरलूप तकनीक से न सिर्फ यात्रा का समय कम होगा, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल होगी।"
भारतीय रेलवे और आईआईटी मद्रास का सहयोग
एक आधिकारिक बयान में बताया गया कि भारतीय रेलवे और आईआईटी मद्रास मिलकर वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग व्हीकल विकसित करने की योजना बना रहे हैं, जिसके लिए रेलवे द्वारा वित्तीय सहायता दी जाएगी। स्विसपॉड टेक्नोलॉजीज के सीईओ और सह-संस्थापक डेनिस टुडोर ने कहा, "भारत में हाइपरलूप तकनीक की अपार संभावनाएं हैं। अनुमान के अनुसार, 40 किलोमीटर लंबा परीक्षण ट्रैक बनाने में 150 से 300 मिलियन डॉलर की लागत आएगी।" मार्च 2022 में स्विसपॉड और TuTr ने एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे स्विस और भारतीय सरकारों का समर्थन प्राप्त है।
हाइपरलूप की वैश्विक स्थिति
हाइपरलूप प्रणाली की शुरुआती अवधारणा 1970 के दशक में स्विस प्रोफेसर मार्सेल जुफर ने दी थी। इसके बाद 1992 में स्विसमेट्रो एसए की स्थापना हुई, लेकिन 2009 में यह कंपनी बंद हो गई। नेवादा में वर्जिन हाइपरलूप अपना परीक्षण कार्यक्रम चला रही है, लेकिन जटिल सर्टिफिकेशन प्रक्रियाओं के कारण अब यह माल परिवहन पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसी बीच, कनाडा की कंपनी ट्रांसपॉड अपनी अलग प्रोपल्शन और लीविटेशन तकनीक के परीक्षण के लिए एक सुविधा विकसित कर रही है। इसके अलावा, चीन भी हाइपरलूप जैसी प्रणाली विकसित कर रहा है, जिसका लक्ष्य हाइपरसोनिक गति प्राप्त करना है।
चीन भी कर रहा टेस्ट
फरवरी 2024 में, चीन ने करीब 2 किलोमीटर के ट्रैक पर शुरुआती टेस्ट किए, जिसमें उसकी ट्रेन 622 किमी प्रति घंटे की रफ्तार तक पहुंची। इस मामले में चीन ने जापान के L0 सीरीज ट्रेन के 600 किमी प्रति घंटे के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। अब भारत 1100 किमी की स्पीड पर फोकस के साथ कदम आगे बढ़ा रहा है। हाइपरलूप एक ऐसी अत्याधुनिक तकनीक है, जिसमें विशेष ट्यूबों के अंदर कम दबाव वाले वातावरण में पॉड्स को तेज गति से चलाया जाता है। इसकी सफलता भारत के बड़े शहरों को जोड़ने और यात्रा को क्रांतिकारी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।