बचपन में क्या अच्छे स्टूडेंट थे पीएम मोदी? पॉडकास्ट में दिया जवाब; बताया किससे भागते थे दूर
- पीएम मोदी ने कहा कि मेरा ऐसा रहता था कि परीक्षा पास कर लो, निकाल लो, बस ऐसा ही रहता था। लेकिन और एक्टिविटी मैं बहुत करता था। कुछ भी नई एक्टिविटी है, उसे पकड़ लेना, ऐसा मेरा नेचर था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पॉडकास्ट इंटरव्यू में बताया कि वह बचपन में एक सामान्य छात्र थे। किसी भी तरह से कोई उन्हें नोटिस करे, ऐसा नहीं था। लेकिन टीचर उनसे बहुत प्यार करते थे। निखिल कामत को दिए इंटरव्यू में पीएम मोदी ने वह बात भी बताई, जिससे वह दूर भागते थे। उन्होंने कहा कि अगर ज्यादा पढ़ना है और उसमें कॉप्टिशन ऐलिमेंट है तो मैं उससे दूर भागता था। पीएम मोदी ने यह सब उस सवाल के जवाब में कहा, जिसमें पूछा गया था कि क्या वे बचपन में अच्छे स्टूडेंट थे? उन्होंने खुद को सामान्य स्टूडेंट ही बताया।
पीएम मोदी ने कहा, ''एक टीचर थे वे एक दिन पिता जी से मिलने गए। उन्होंने पिता जी से कहा कि इसके अंदर एक टैलेंट है, लेकिन यह कोई ध्यान केंद्रित नहीं करता है। हर चीज बहुत जल्दी ग्रैस्प करता है, लेकिन फिर अपनी दुनिया में खो जाता है। टीचर की बहुत अपेक्षा भी थी।'' पीएम मोदी ने कहा, ''मेरे टीचरों का मुझपर बहुत प्यार रहता था। लेकिन ज्यादा पढ़ना है और उसमें कॉम्प्टिशन का ऐलिमेंट है तो उससे मैं दूर भागता था। मेरा ऐसा रहता था कि परीक्षा पास कर लो, निकाल लो, बस ऐसा ही रहता था। लेकिन और एक्टिविटी मैं बहुत करता था। कुछ भी नई एक्टिविटी है, उसे पकड़ लेना, ऐसा मेरा नेचर था।
बचपन के दोस्तों पर पूछे गए सवाल पर पीएम मोदी ने जवाब दिया कि मैंने बचपन में बहुत कम उम्र में घर छोड़ दिया और सबकुछ छोड़ दिया। किसी से कोई संपर्क नहीं था न कोई लेना-देना था। लेकिन जब मैं सीएम बना तो मेरे मन में कुछ इच्छाएं जगीं कि क्लास के जितने भी दोस्त हैं, सबको मैं सीएम हाउस में बुलाऊंगा। इसके पीछे मैं सोचता था कि मैं नहीं चाहता था कि किसी को ऐसे लगे कि सीएम बनने पर बहुत तीस मारखां बन गया। मैं वो ही हूं जो सालों पहले गांव छोड़कर गया था। उस पल को मैं जीना चाहता था।
उन्होंने आगे कहा, ''मैंने सबको बुलाया और रात में खाना वगैरह खाया और गपशप मारे। पुरानी बातें याद कीं, लेकिन मुझे बहुत आनंद नहीं आया, क्योंकि मैं दोस्त खोज रहा था, लेकिन उनको मुख्यमंत्री नजर आता था। खाई मिटी नहीं और मेरे जीवन में तू कहने वाला कोई बचा ही नहीं। अभी भी सबसे संपर्क है, लेकिन वे बहुत सम्मान से मुझे देखते हैं। एक टीचर थे रासबिहारी मणियाल, वे मुझे चिट्ठी लिखते थे, जिसमें मुझे तू कहते थे।''