इंदिरा की तानाशाही के आगे न्यायपालिका ने टेके घुटने, इमरजेंसी का जिक्र कर बरसे उपराष्ट्रपति धनखड़
- धनखड़ ने कहा कि भारत में सशक्त स्वतंत्र न्यायपालिका है, जो लोकतंत्र की रक्षा करती है। हमें इस पर गर्व है, लेकिन इसके साथ ही एक दर्दनाक अपवाद भी है, जिसे हमें नहीं भूलना चाहिए।
भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर से इमरजेंसी का जिक्र करते हुए देश न्यायपालिका पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमजरेंसी लगाई तो देश की न्यायपालिका ने उनके आगे घुटने टेक दिए। धनखड़ शनिवार को जोधपुर में राजस्थान हाईकोर्ट के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित अमेजिंग इंडिया में न्यायपालिका की भूमिका के विषय पर बोल रहे थे।
अपने संबोधन के दौरान धनखड़ ने कहा कि भारत में सशक्त स्वतंत्र न्यायपालिका है, जो लोकतंत्र की रक्षा करती है। हमें इस पर गर्व है, लेकिन इसके साथ ही एक दर्दनाक अपवाद भी है, जिसे हमें नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा कि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया। यह हमारी स्वतंत्रता के बाद का सबसे काला दौर था।
इमरजेंसी का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, "अगर उच्चतम स्तर पर न्यायपालिका ने इंदिरा गांधी की तानाशाही के आगे घुटने नहीं टेके होते, तो आपातकाल की नौबत ही नहीं आती। हमारा देश बहुत पहले ही बहुत विकास कर चुका होता। हमें दशकों तक इंतजार नहीं करना पड़ता।" उन्होंने कहा कि उस समय नागरिकों के मूल अधिकारों की प्रहरी न्यायपालिका तत्कालीन प्रधानमंत्री की बेशर्म तानाशाही के आगे झुक गई थी। उन्होंने कहा, "हम कल्पना करें कि अगर उच्चतम न्यायालय ने घुटने नहीं टेके होते तो आपातकाल नहीं लगता। हमारा देश बहुत पहले ही तरक्की कर चुका होता।"
इससे पहले जोधपुर में एक राज्य स्तरीय सम्मेलन में न्यायिक अधिकारियों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायिक अधिकारियों से हाल में लागू किए गए तीन नए आपराधिक कानूनों को लेकर ‘मिशन मोड’ में रहने का शुक्रवार को आह्वान किया और इन कानूनों को क्रांतिकारी बताया। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) ने क्रमशः भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह ली है और ये एक जुलाई से प्रभावी हो गए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ये कानून हमें औपनिवेशिक विरासत से मुक्त करने और उसकी मानसिकता से छुटकारा दिलाने के लिए हैं। ये कानून हमारे द्वारा, हमारे लिए हैं...।’’