‘हिम्मत कैसे हुई, ये तो भाषाई अत्याचार...’; अब LIC की वेबसाइट पर CM स्टालिन ने छेड़ी नई रार
मुख्यमंत्री स्टालिन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एलआईसी के हिंदी वेबपेज का ‘स्क्रीनशॉट’ साझा करते हुए अपनी शिकायत में लिखा है कि एलआईसी की वेबसाइट हिंदी थोपने का प्रचार साधन में बदल गई है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एमके स्टालिन ने मंगलवार को सरकारी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) की वेबसाइट पर हुए भाषाई बदलाव पर नाराजगी जताई है और इसे 'हिंदी थोपने का प्रचार साधन' करार दिया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने सरकारी क्षेत्र की कंपनी LIC से इसे तुरंत वापस लेने को कहा है। उन्होंने इसे 'भाषाई अत्याचार' भी कहा है।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एलआईसी के हिंदी वेबपेज का ‘स्क्रीनशॉट’ साझा करते हुए अपनी शिकायत में लिखा है, "एलआईसी की वेबसाइट हिंदी थोपने का प्रचार साधन में बदल गई है। यहां तक कि अंग्रेजी चुनने का विकल्प भी हिंदी में प्रदर्शित हो रहा है।" उन्होंने आगे लिखा है, "यह और कुछ नहीं बल्कि सांस्कृतिक और भाषाई अत्याचार थोपना है, जो भारत की विविधता को कुचल रहा है। एलआईसी सभी भारतीयों के संरक्षण से विकसित हुआ है। इसने अपने अधिकांश योगदानकर्ताओं को धोखा देने की हिम्मत कैसे की? हम इस भाषाई अत्याचार को तत्काल वापस लेने की मांग करते हैं।" स्टालिन ने यह पोस्ट ‘हैशटैग हिंदी थोपना बंद करो’ के साथ लिखा है।
स्टालिन के अलावा पट्टाली मक्कल कच्ची (पीएमके) के संस्थापक डॉ. एस रामदास ने भी LIC के इस कदम का विरोध किया है और एलआईसी वेबसाइट के होम पेज को तुरंत अंग्रेजी में बदलने की मांग की है। उन्होंने कहा, "चाहे केंद्र सरकार हो या एलआईसी, उन्हें यह समझना चाहिए कि वे सभी लोगों के हैं, न कि केवल हिंदी भाषी लोगों के।"
रामदास ने आगे कहा, "अचानक हिंदी को प्राथमिकता देना स्वीकार्य नहीं है, जबकि भारत में सभी भाषा बोलने वाले लोग एलआईसी के ग्राहक हैं। यहां तक कि 10 रुपये मूल्य की उपभोक्ता वस्तुएं भी बिक्री के लिए तमिलनाडु भेजी जाती हैं, तो उसका नाम तमिल या अंग्रेजी में छपा होता है लेकिन एलआईसी, जिसका तमिलनाडु में बहुत बड़ा ग्राहक आधार है, ने अपनी वेबसाइट का मुख्य पृष्ठ केवल हिंदी में रखा है और ऐसा माहौल बनाया है, जहां उन्हें अंग्रेजी भाषा में सेवाओं को खोजने ले लिए जूझना पड़ रहा है। यह तमिलनाडु के ग्राहकों का अपमान है।"
इस बीच एलआईसी ने इसे तकनीकी दिक्कत करार दिया है। वेबसाइट का होम पेज हिंदी में बदलने पर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की तीखी प्रतिक्रिया के जवाब में एलआईसी ने कहा, “हमारी कॉर्पोरेट वेबसाइट कुछ तकनीकी समस्या के कारण भाषा पृष्ठ को शफ़ल नहीं कर रही थी। समस्या अब हल हो गई है, और वेबसाइट अंग्रेजी/हिंदी भाषा में उपलब्ध है। इससे हुई असुविधा के लिए हमें गहरा खेद है।”
हाल ही में, अक्टूबर में, मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने एक कार्यक्रम में तमिलनाडु के राज्य गान के गायन के दौरान गायब एक पंक्ति के बारे में राज्यपाल आरएन रवि से कई सवाल पूछे थे। स्टालिन ने राज्यपाल की आलोचना करते हुए कहा था कि वे द्रविड़ जाति को बदनाम कर रहे हैं और हर जगह हिंदी थोपने की कोशिश कर रहे हैं।
बता दें कि तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन का लंबा इतिहास रहा है, जो 1930 के दशक से चला आ रहा है। 1960 के दशक में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों ने स्टालिन की पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) को सत्ता में पहुंचा दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आश्वासन दिया था कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य हिंदी को स्वीकार नहीं कर लेते हैं, तब तक अंग्रेजी को संपर्क भाषा के रूप में जारी रखा जाएगा। राज्य नई शिक्षा नीति के तहत तीन-भाषा फॉर्मूले का भी पुरजोर विरोध कर रहा है, जिसके तहत छात्रों को तीसरी भाषा के रूप में हिंदी सीखना अनिवार्य किया गया है।