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भारत नाम रखने से गरिमा लौट आएगी, हजार साल की गुलामी में पहचान ही मिट गई; संविधान सभा में बोले थे कांग्रेसी

भारत और INDIA को लेकर छिड़ी बहस में दो खेमे बंटते दिख रहे हैं। एक वर्ग देश का नाम भारत ही रखे जाने को गर्व से जोड़कर देख रहा है तो वहीं आलोचकों का कहना है कि इस तरह इतिहास को किनारे नहीं किया जा सकता।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 6 Sep 2023 01:12 PM
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भारत और INDIA को लेकर छिड़ी बहस में दो खेमे बंटते दिख रहे हैं। एक वर्ग देश का नाम भारत ही रखे जाने को गर्व से जोड़कर देख रहा है तो वहीं आलोचकों का कहना है कि इस तरह इतिहास को किनारे नहीं किया जा सकता। इस बीच संविधान सभा में भारत और इंडिया को लेकर हुई बहस को भी लोग याद कर रहे हैं। दरअसल संविधान सभा में इसको लेकर लंबी बहस हुई थी और उसके बाद ही 'INDIA, दैट इज भारत' लिखा गया था। इस बहस में कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने भारत को देश की पहचान से जोड़ा था और उनका तो यहां तक कहना था कि इंडिया दैट इज भारत न लिखा जाए। इसके स्थान पर भारत दैट इज इंडिया लिखना ठीक रहेगा। 

इस डिबेट में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे कमलापति त्रिपाठी ने कहा था, 'यदि आप लोगों को लगता है कि संविधान में दैट इज लिखना जरूरी ही है तो भारत दैट इज इंडिया लिखना चाहिए।' उन्होंने देश का नाम भारत रखने को गौरव, स्वाभिमान और स्वदेशी प्रतीक से जोड़ा था। त्रिपाठी ने कहा था, 'जब कोई देश दूसरे के दिए नाम और प्रतीकों का इस्तेमाल करता है तो उसकी आत्मा मर जाती है। भारत ने एक हजार साल की गुलामी में सब कुछ खो दिया है। हमने अपनी संस्कृति, इतिहास, सम्मान, मानवता, आत्मसम्मान और यहां तक कि आत्मा तक को खो दिया है।' 

भारत नाम रखने से पुराना गौरव वापस लौटेगा का तर्क देते हुए त्रिपाठी ने कहा था कि हजार साल की गुलामी से निकलकर हम अपनी पहचान हासिल करेंगे। उन्होंने कहा था कि भारत नाम से ही हम दुनिया में अपने गौरव को पा सकेंगे। यह हमारी संस्कृति का परिचय कराता है। सैकड़ों सालों की गुलामी के बाद भी हमारी पहचान भारत के तौर पर ही है तो इसकी वजहें हैं। उन्होंने कहा था कि वैदिक काल से ही साहित्य में देश का नाम भारत ही रहा है। इसके अलावा पुराणों, वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों में भी भारत का ही वर्णन हुआ है। 

जब हिन्दुस्तान नाम पर भी हुआ ऐतराज, हिंदी को भी 'भारती' कहने की उठी मांग

बता दें कि संविधान के पहले ड्राफ्ट में सिर्फ इंडिया ही लिखा गया था। इसे लेकर संविधान सभा के कई सदस्यों ने आपत्ति जताई थी और भारत लिखने की मांग की थी। इन लोगों में गोविंद वल्लभ पंत, कमलापति त्रिपाठी जैसे नेता प्रमुख थे। इन नेताओं का कहना था कि भारत ही पहले आना चाहिए। एक नेता ने तो तर्क दिया था कि हमें तो हिंदुस्तान से भी परहेज करना चाहिए क्योंकि यह नाम सिंधु नदी से बना था और अब वह पाकिस्तान में चली गई है। ऐसे में देश के लिए भारत और हिंदी भाषा के लिए भारती शब्द का इस्तेमाल होना चाहिए।

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