Hindi Newsदेश न्यूज़When President KR Narayanan signed to ban on Bal Thackeray for contesting elections and removed name from voter list - India Hindi News

जब राष्ट्रपति के दस्तखत से इस नेता पर गिरी थी गाज, चुनाव लड़ने पर बैन के साथ वोटर लिस्ट से भी कट गया था नाम

Election Commission RPA Act 1951: चुनाव आयोग ने आदर्श आचारसंहिता उल्लंघन के मामले में सीधे पीएम मोदी और राहुल गांधी को नोटिस नहीं भेजकर उनके पार्टी अध्यक्षों को नोटिस भेजा है। इसलिए आयोग चर्चा में है।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 26 April 2024 06:02 PM
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बात 1999 की है। के आर नारायणन तब देश के राष्ट्रपति थे। जुलाई 1999 में उनके दस्तखत से एक अधिसूचना गजट में प्रकाशित की गई थी, जिसमें तत्कालीन शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे पर छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इतना ही नहीं वोटर लिस्ट से भी उनका नाम काट दिया गया था। राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग की सिफारिश पर ऐसा आदेश दिया था।

दरअसल, बाल ठाकरे पर आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप था। यह मामला 1987 के महाराष्ट्र विधानसभा के उप चुनावों से जुड़ा था। राज्य की विले पार्ले सीट से बाल ठाकरे की पार्टी शिव सेना की तरफ से यशवंत रमेश प्रभु उम्मीदवार थे। ठाकरे ने उनका चुनाव प्रचार करते हुए भड़काऊ भाषण दिया था। उन पर धर्म के नाम पर चुनाव में वोट मांगने के आरोप लगे थे। जनप्रतिनिधित्व कानून का धारा 123 (3) के तहत धर्म, जाति, नस्ल, भाषा के आधार पर वोट मांगना वर्जित और दंडनीय माना गया है।

ठाकरे ने तब मुस्लिम नामों का इस्तेमाल करते हुए हिंदू मतदाताओं से हिंदू साथी को वोट देने की अपील की थी। उन्होंने कहा था, "चुनाव में जीत मेरी या शिवसेना या  रमेश प्रभु की नहीं होगी। यह हिंदू धर्म की जीत होगी और इस जीत में आप महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे और आपको निभाना भी चाहिए। आपको अपनी जाति, धर्म, भगवान और हिंदू धर्म के सामने आने वाली परेशानियों से छुटकारा पाने का अधिकार है। जो भी मस्जिदें हैं, अगर उन्हें खोदना शुरू किया जाए तो वहां हिंदू मंदिर मिलेंगे। इसलिए जिस व्यक्ति के नाम में ही प्रभु लगा है, उसे धर्म के नाम पर चुनाव लड़ने के लिए विधानसभा में भेजा जाना चाहिए।"

ठाकरे के इस भाषण के बाद प्रभु के खिलाफ चुनाव लड़ रहे कुंते नाम के कांग्रेस उम्मीदवार ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 123 (3) के तहत बाल ठाकरे और रमेश प्रभु के खिलाफ आदर्श चुनाव आचारसंहिता के उल्लंघन का मामला दर्ज करवाया। हाई कोर्ट ने अप्रैल 1989 में उस याचिका को बरकरार रखते हुए शिव सेना उम्मीदवार प्रभु की चुनावी जीत को जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 123 (3) के उल्लंघन में रद्द करने के लिए नोटिस जारी किया।

हाई कोर्ट ने 1991 में इस मामले में फैसला सुनाया और यशवंत प्रभु की जीत का रद्द करते हुए उन पर छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया। प्रभु ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को कबरकरार रखा और बाल ठाकरे को भी भड़काऊ भाषण के मामले में दोषी ठहराया। चूंकि ठाकरे किसी सार्वजनिक पद पर नहीं थे, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा पर फैसला लेने का अधिकार चुनाव आयोग को दे दिया।

उस वक्त एम एस गिल मुख्य चुनाव आयुक्त थे। बाल ठाकरे के खिलाफ सजा तय करने के लिए एक कमेटी बनी। समिति ने 1998 में तत्कालीन राष्ट्रपति से बाल ठाकरे को मतदान के अधिकार से वंचित करने की सिफारिश की। आयोग की सिफारिश पर जुलाई 1999 में राष्ट्रपति के आर नारायणन ने मुहर लगा दी और उनके दस्तखत से एक गजट अधिसूचना प्रकाशित की गई, जिसमें इस बात का उल्लेख था कि शिव सेना संस्थापक बाल ठाकरे को छह साल के लिए चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाता है। साथ ही उनका नाम भी वोटर लिस्ट से काटा जाता है।

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