जब अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग के लिए सांसदों को दी गई थी भारी रिश्वत, पूर्व PM को सुनाई गई थी 3 साल की जेल
नरसिम्हा राव की सरकार चूंकि अल्पमत में थी, इसलिए उनकी सरकार ने पांच साल के कार्यकाल में कुल तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया था। उनके खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव जसवन्त सिंह ने पेश किया था।

बात 1993 की है। पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे। दो साल पहले ही 1991 के आम चुनावों में 244 सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। चुनावों के दौरान ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो चुकी थी, इसलिए पार्टी किसी एक व्यक्ति की पीएम उम्मीदवारी पर सहमत नहीं थी। उस वक्त कांग्रेस में पीएम पद के कई दावेदार थे। मसलन, एनडी तिवारी, अर्जुन सिंह, शरद पवार के नाम सबसे आगे थे लेकिन राव ने बाजी मार ली थी। इसमें तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण की बड़ी भूमिका मानी जाती है।
आर वेंकटरमण ने कैसे बनाने दी थी राव को सरकार?
वेंकटरमण ने तब बहुमत की संख्या के पुख्ता सबूत के बिना ही सबसे बड़े दल के नेता को सरकार बनाने का निमंत्रण देने की एक अनोखी परिपाटी शुरू की थी। चूंकि, नरसिम्हा राव उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष थे और कांग्रेस संसदीय दल के नेता भी थे, इसलिए उन्हें सरकार बनाने का मौका मिल गया। उन्होंने अल्पमत में रहते हुए भी सरकार बना ली। उस वक्त देश कई संकटों से घिरा हुआ था। सबसे बड़ा संकट आर्थिक मोर्चे पर था। इससे निपटने के लिए उन्होंने रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे मनमोहन सिंह को अपना वित्त मंत्री बनाया था।
नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ तीन अविश्वास प्रस्ताव
नरसिम्हा राव की सरकार चूंकि अल्पमत में थी, इसलिए उनकी सरकार ने पांच साल के कार्यकाल में कुल तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया था। उनके खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव बीजेपी के जसवन्त सिंह ने पेश किया था, जिसे उन्होंने 46 वोटों के अंतर से हरा दिया था। दूसरा प्रस्ताव बीजेपी के ही अटल बिहारी वाजपेयी ने लाया था। उसे भी राव को हराने में कोई परेशानी नहीं हुई। राव ने दूसरे अविश्वास प्रस्ताव को 14 वोटों के अंतर से हरा दिया था। 1993 में सत्ता के तीसरे साल में राव को तीसरा अविश्वास प्रस्ताव झेलना पड़ा। यह विवादों से घिरा हुआ है।
क्या है 1993 का सांसद रिश्वत कांड
जुलाई 1993 में संसद के मानसून सत्र में सीपीआई(एम) के सांसद अजय मुखोपाध्याय ने राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था। उस वक्त लोकसभा सांसदों की संख्या 528 थी। दावा किया गया था कि सरकार के पक्ष में केवल 251 सांसद ही हैं, जो बहुमत के आंकड़े से 14 कम है। कई दिनों की चर्चा के बाद 28 जुलाई, 1993 को जब लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो सरकार के पक्ष में 265 वोट पड़े, जबकि खिलाफ में मात्र 251 वोट ही पड़े।
सीबीआई में शिकायत:
फरवरी 1996 में राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के रविंद्र कुमार ने सीबीआई में शिकायत की कि 1993 में अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ लोकसभा में वोट करने के लिए पीएम राव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के चार सांसदों समेत कुल 12 सासंदों को करोड़ों रुपये की रिश्वत दी थी और आपराधिक साजिश रची थी। इस मामले की सीबीआई ने जांच की थी। सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में इसे सही ठहराया था।
घूसकांड का खुलासा कैसे हुआ?
इस रिश्वतकांड का खुलासा अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद के अंदर किया था, जब वह सदन के सामने शैलेंद्र महतो को लेकर आए, जिन्होंने स्वीकर किया था कि शिबू सोरेन समेत उनकी पार्टी के चार सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट देने और कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार को बचाने के एवज में 50-50 लाख रुपये की रिश्वत ली थी।
रिश्वत कांड में कौन-कौन आरोपी?
सीबीआई ने इस मामले में तीन चार्जशीट कोर्ट में सौंपी थी। पहली चार्जशीट अक्टूबर 1996 में दाखिल की गई थी, इसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा के चार सांसदों (शिबू सोरेन, साइमन मरांडी, शैलेंद्र महतो और सूरज मंडल) के अलावा नरसिम्हा राव, सतीश शर्मा, बूटा सिंह को आरोपी बनाया था। जेएमएम सांसदों पर घूस लेने के आरोप लगाए गए थे। दिसंबर 1996 में दूसरी चार्जशीट में सीबीआई ने घूस की रकम की व्यवस्था करने वालों के नाम शामिल किए थे। इनमें वी राजेश्वर राव,कर्नाटक के तत्कालीन सीएम वीरप्पा मोइली और उनके मंत्री एन एम रेवन्ना समेत शराब कारोबारी रामलिंगा रेड्डी और एम थिमेगोडा को शामिल किया गया था।
जनवरी 1997 में दाखिल तीसरी चार्जशीट में सीबीआई ने जनता दल के सांसदों समेत अन्य (अजीत सिंह, रामलखन सिंह यादव, रामशरण यादव, अभय प्रताप सिंह, भजन लाल, हाजी गुलाम मोहम्मद खान, रौशन लाल, आनंदी चरण दास और जीसी मुंडा को नामित किया था।
मारुति जिप्सी में भरकर लाए गए थे सूटकेस
सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में खुलासा किया था कि करीब दर्जन भर सांसदों को रिश्वत देने के लिए एक जिप्सी कार में नोटों से भरे सूटकेस भरकर लाए गए थे और कांग्रेस नेता सतीश शर्मा के फार्म हाउस पर हुई पार्टी में जेएमएम सासंदों को पैसे दिए गए थे। चार्जशीट में यह भी आरोप है कि बूटा सिंह चारों जेएमएम सांसदों को पीएम नरसिम्हा राव से मिलवाने पीएम आवास 7 रेसकोर्स ले गए थे। इन सांसदों ने पैसे दिल्ली में ही पीएनबी बैंक में जमा किए थे।
ट्रायल कोर्ट ने इन लोगों को दोषी करार दिया था और पूर्व पीएम राव समेत अन्य को तीन साल जेल की सजा भी सुनाई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ये कहते हुए उनकी सजा रद्द कर दी कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत, संसद के किसी भी सदस्य को संसद में दिए गए किसी भी वोट के संबंध में किसी भी अदालत में किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ सभी मामलों को खारिज कर दिया।
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