Hindi Newsदेश न्यूज़When Chief Minister Karpuri Thakur called officer and sent back government bed from CM House know - interesting story - India Hindi News

जब अफसर बुलवा कर्पूरी ठाकुर ने CM आवास से वापस भिजवा दी थीं सरकारी चौकी और चारपाइयां, जानें- दिलचस्प किस्सा  

Karpoori Thakur: ठाकुर ने तब निजी सचिव को बुलाकर कहा कि आप सरकारी अफसर को बुलवाइए और उनसे कहिए कि हमारे सरकारी आवास पर जितनी भी सरकारी चौकी और चारपाइयां हैं, उन्हें वापस ले जाएं। हम फर्श पर ही सोएंगे।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 24 Jan 2024 08:34 AM
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Bharat Ratna Karpoori Thakur: कर्पूरी ठाकुर पहली बार 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे थे। उनकी सादगी के लोग कायल थे। जमीनी नेता होने की वजह से अकसर लोग उनके घर आते रहते थे। उनके परिजन भी उनके घर आते जाते रहते थे। एक बार उनके पैतृक जिले समस्तीपुर से उनके स्कूल के दिनों के एक गुरुदेव उनसे मिलने पटना आए थे। वह उस दिन कर्पूरी ठाकुर के सरकारी आवास में ही रुके थे।

जब गुरू जी के रात में सोने का प्रबंध करने की बात आई तो कर्पूरी ठाकुर ने अपने एक परिजन से कहा कि आज रात के लिए आप अपनी बिछाबन मास्टर साहब के लिए खाली कर दीजिए। परिजन ने बेड तो खाली कर दिया लेकिन वह झल्ला उठा था। उन्हें अकसर ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता था क्योंकि वे लोग आगंतुकों से परेशान थे। हालांकि, उस परिजन ने बिछावन खाली कर दिया लेकिन दूसरे दिन कर्पूरी ठाकुर को यह बात पता चल गई।

ठाकुर ने तब अपने निजी सचिव को बुलाकर कहा कि आप सरकारी अफसर को बुलवाइए और उनसे कहिए कि हमारे सरकारी आवास पर जितनी भी सरकारी चौकी और चारपाइयां हैं, उन्हें वापस ले जाएं। अब से हम फर्श पर ही बिछावन लगाकर सोएंगे। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर, जो उस वक्त उनके निजी सचिव थे, ने लिखा है कि उनके आदेश के अनुसार अफसर बुलवाए गए और सभी चौकियों और चारपाइयों को वापस भेज दिया गया। उसके बाद से कर्पूरी ठाकुर फर्श पर ही सोते थे।

बकौल सुरेंद्र किशोर, कर्पूरी ठाकुर जब मुख्यमंत्री पद से हट गए तो वह नहीं चाहते थे कि उनके परिजन उनके साथ पटना में रहें। उनकी आय सीमित थी। वह महीने में 20 दिन के करीब पटना से बाहर बिहार के दौरे पर रहते थे। इसलिए उन्होंने अपने निजी सचिव से परिजनों को कहलवाया था कि सभी लोग पैतृक गांव पितौंझिया चले जाएं। ना चाहते हुए भी निजी सचिव को कहना पड़ा। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर के सभी परिजन गांव चले गए थे। गांव में उनका पारिवारिक पेशा नाई का ही था। उनके पिता गोकुल ठाकुर उनके मुख्यमंत्री रहने के बावजूद जातिगत पेशा करते रहे। कर्पूरी ठाकुर ने कभी उन्हें यह काम करने से नहीं रोका बल्कि उसे और बढ़ावा दिया।

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