जब ढह रही थी बाबरी मस्जिद, गृह मंत्री से क्यों लड़ रहे थे CM कल्याण सिंह; जानें- 31 साल पुराना किस्सा
Kalyan Singh: उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह की आज 92वीं जयंती है। वह बाद में हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के राज्यपाल भी रहे। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में ही बाबरी विध्वंस हुआ था।
बात 1992 की है। 6 दिसंबर को विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं और कार सेवकों द्वारा विवादित रामजन्मभूमि पर पूजा होनी थी। उस वक्त बड़ी संख्या में देशभर से कार सेवक अयोध्या पहुंचे हुए थे। उस दिन सुबह-सुबह लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी विनय कटियार के घर पर मिले थे और कारसेवा के लिए पूजा की वेदी पर पहुंचने वाले थे, जहां कार सेवा होनी थी। इसी बीच दोपहर में एक युवक कथित बाबरी मस्जिद की गुंबद पर जा चढ़ा और उसने उसे तोड़ना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे कई लोगों ने उस गुंबद की छत को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया।
इस घटना से देश और दुनिया में हड़कंप मचा गया। उस वक्त कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, जबकि पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे। बाबरी मस्जिद ढाहे जाने के बाद नई दिल्ली से लेकर लखनऊ और अयोध्या तक फोन की घंटियां बजने लगीं। प्रधानमंत्री कार्यालय ने सीधे हस्तक्षेप करते हुए अयोध्या के वरिष्ठ अधिकारियों से विवादित स्थल पर अर्धसैनिक बलों का इस्तेमाल करने का आदेश दिया।
उधर, मुख्यमंत्री कल्याण सिंह उस दिन, उस वक्त दोपहर में कालीदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास में धूप सेंक रहे थे। जब उन्हें इस घटना की सूचना दी गई तो उन्होंने तत्काल फाइल मंगवाकर कार सेवकों पर गोली नहीं चलाने का लिखित आदेश डीजीपी को दिया था। हेमंत शर्मा की पुस्तक 'अयोध्या का चश्मदीद' में इस बात का उल्लेख है। किताब में लिखा गया है कि कल्याण सिंह ने 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में घटी घटना की जिम्मेदारी खुद अपने ऊपर ली थी।
जब लेखक ने कल्याण सिंह से इस बाबत पूछा था तो कल्याण सिंह का जवाब था, "इसकी जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर ओढ़ता हूं। अगर ढांचे पर से कारसेवकों को हटाने के लिए गोली नहीं चली तो इसके लिए कोई अफसर जिम्मेदार नहीं है। फाइलों पर मेरे लिखित आदेश मौजूद हैं कि किसी भी कीमत पर गोली न चलाई जाए।" उस दिन अयोध्या जिला प्रशासन को दोपहर दो बजे मुख्यमंत्री कार्यालय से लिखित आदेश मिला था कि किसी भी स्थिति में गोली न चलाई जाए। इसके बाद केंद्रीय बलों ने विवादित स्थल पर जाने का इरादा छोड़ दिया था, जबकि केंद्र सरकार केंद्रीय बलों को वहां बल प्रयोग करने का निर्देश दे रही थी।
किताब में कल्याण सिंह के हवाले से लिखा गया है कि बल प्रयोग के मुद्दे पर कल्याण सिंह की तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री शंकरराव चव्हाण से भी फोन पर तीखी झड़प हुई थी। तब सिंह ने चव्हाण को दोपहर में साफ-साफ कह दिया था कि कार सेवकों पर किसी भी सूरत में गोली नहीं चलाई जाएगा। कल्याण सिंह ने लेखक को बताया था और कहा था, 6 दिसंबर को जब कार सेवक बेकाबू थे तो केंद्रीय गृह मंत्री चव्हाण को मैंने दोपहर 2 बजे ही साफ-साफ बता दिया था कि अयोध्या की मौजूदा हालत में गोली चलाना बुद्धिमतापूर्ण नहीं है क्योंकि ऐसा करने से जनाक्रोश और भड़क सकता था।"
कल्याण सिंह ने बाद में भी कई मौकों पर इसकी जिम्मेदारी खुद ली थी। उन्होंने उसी दिन शाम में एक लाइन की चिट्ठी लिखकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, उन्होंने विधानसभा भंग करने की सिफारिश नहीं की थी। उसी शाम केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। बाद में इस मामले की जांच करने वाले लिब्राहन आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में बाबरी विध्वंस के लिए 68 लोगों को दोषी ठहराया था।