राहुल गांधी को राहत पर क्या बोले मानहानि का केस करने वाले पूर्णेश मोदी
राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है और उन्हें मोदी सरनेम केस में मिली दो साल की सजा पर रोक लग गई है। शीर्ष अदालत से राहुल गांधी की सजा पर रोक लगने के बाद अब उनकी सांसदी भी बहाल हो जाएगी।

राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है और उन्हें मोदी सरनेम केस में मिली दो साल की सजा पर रोक लग गई है। शीर्ष अदालत से राहुल गांधी की सजा पर रोक लगने के बाद अब उनकी सांसदी भी बहाल हो जाएगी। इस बीच उनके खिलाफ मानहानि केस करने वाले पूर्णेश मोदी का बयान भी आया है। भाजपा के पूर्व विधायक ने कहा कि हमारी लड़ाई जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि निचली अदालत ने राहुल गांधी को दोषी मानते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। इसके बाद गुजरात हाई कोर्ट ने भी हमारी तरफ फैसला देते हुए सजा पर रोक नहीं लगाई।
राहुल को SC से राहत के साथ नसीहत भी- एक नेता को समझदारी दिखानी चाहिए
पूर्णेश मोदी ने कहा, 'अब सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाई गई है। इस कानूनी प्रक्रिया में हम अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं। अब यह केस सेशन कोर्ट में चलेगा। अब हमारी लड़ाई वहीं पर लड़ी जाएगी।' इस दौरान पूर्णेश मोदी के वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि निचली अदालत ने अधिकतम सजा के लिए कारण नहीं बताया। मोदी ने कहा कि निचली अदालत में हमारी तरफ से और समाज की ओर से कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी। हम सभी बातें अब अपील की अर्जी पर रखेंगे। अभी अपील की अर्जी पर फैसला होना बाकी है।
बता दें कि शीर्ष अदालत ने राहुल गांधी को मिली 2 साल की सजा पर रोक हटाते हुए कहा था कि यह अहम सवाल है कि अधिकतम सजा ही क्यों दी गई। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था, 'हम यह जानना चाहते हैं कि अधिकतम सजा ही क्यों दी गई। यदि जज ने 1 साल और 11 महीने की भी सजा दी होती तो वह अयोग्य घोषित न होते।' इस पर पूर्णेश मोदी के वकील ने कहा कि ऐसी सजा शायद इसलिए दी गई क्योंकि राहुल गांधी को पहले ही हिदायत दी गई थी, लेकिन उनके बर्ताव में कोई बदलाव नहीं आया था।
'राहुल गांधी का सार्वजनिक जीवन का अधिकार प्रभावित हुआ'
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश के प्रभाव व्यापक हैं। इससे न केवल राहुल गांधी का सार्वजनिक जीवन में बने रहने का अधिकार प्रभावित हुआ, बल्कि उन्हें चुनने वाले मतदाताओं का अधिकार भी प्रभावित हुआ। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि निचली अदालत के न्यायाधीश द्वारा अधिकतम सजा देने का कोई कारण नहीं बताया गया है, अंतिम फैसला आने तक दोषसिद्धि के आदेश पर रोक लगाने की जरूरत है। यही नहीं शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में हाई कोर्ट का फैसला भी दिलचस्प है।