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Hindi Newsदेश न्यूज़What is Hindutva growth rate and Hindu rate of Growth why in discussion relation with Hindus Who coined this word - India Hindi News

क्या होता है हिन्दुत्व ग्रोथ रेट, चर्चा में क्यों? हिन्दुओं से क्या लेना-देना; किसने गढ़ा था ये शब्द 

Hindutva Growth rate of GDP: जिस 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' का उपहास सुधांशु त्रिवेदी ने उड़ाया, उसका इस्तेमाल पहली बार इमरजेंसी के बाद 1978 में अर्थशास्त्री प्रोफेसर राज कृष्णा ने किया था।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 15 Dec 2023 05:10 AM
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पिछले सप्ताह संसद के उच्च सदन राज्यसभा में देश की अर्थव्यवस्था पर एक छोटी सी चर्चा के दौरान सत्तारूढ़ बीजेपी के सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि देश की जीडीपी हिन्दू रेट से आगे निकलकर 8 फीसदी के हिन्दुत्व ग्रोथ रेट पर आगे बढ़ रही है। उन्होंने अपने छोटे से बयान में अर्थव्यस्था के संदर्भ में कही जाने वाली पुरानी कहावत हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ की जगह नई शब्दावली- हिन्दुत्व ग्रोथ रेट गढ़ा और दावा किया कि नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भारत नई आर्थिक उंचाइयों पर पहुंच गया है।

सुधांशु त्रिवेदी ने दावा किया कि 7.8 फीसदी के साथ भारत की जीडीपी बढ़ रही है, जो दुनिया की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। उन्होंने कांग्रेस के शासनकाल के जीडीपी ग्रोथ रेट का मजाक उड़ाते हुए तंज कसा, "अब, यह 'हिंदू विकास दर' नहीं रही बल्कि 'हिंदुत्व विकास दर' में बदल चुकी है क्योंकि अब, लोगों (जो सत्ता में हैं) को हिंदुत्व में विश्वास है।"

क्या होती है जीडीपी?
जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) किसी भी देश की आर्थिक स्थिति और आय का पता लगाने का एक माध्यम होता है। जब जीडीपी बढ़ रही होती है तो समझा जाता है कि उस देश की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है लेकिन जब जीडीपी गिरती है, तब समझा जाता है कि अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है और वह खतरे में है। इसके तहत किसी निश्चित समय अंतराल में देश के अंदर सरकारों, कंपनियों और निजी स्तर पर उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य को शामिल किया जाता है। जीडीपी के आधार पर ही सरकारें टैक्स का निर्धारण करती हैं और योजनाएं बनाती हैं।

क्या है हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ?
जिस 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' का उपहास सुधांशु त्रिवेदी ने उड़ाया, उसका इस्तेमाल पहली बार इमरजेंसी के बाद 1978 में अर्थशास्त्री प्रोफेसर राज कृष्णा ने किया था। हालांकि, इसका हिन्दुओं से कोई लेना-देना नहीं है। जब भारत आजाद हुआ था, तब भारत की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल थी। देश में भुखमरी और गरीबी का साम्राज्य था। ढांचागत विकास और सुविधाओं का अभाव था और अधिकांश लोग आजीविका के लिए खेती पर ही निर्भर थे। इस वजह से 1970-80 के दशक तक भारत की आर्थिक गति सुस्त रही। उस वक्त जीडीपी ग्रोथ 3.5 फीसदी हुआ करता था। 1950 से 1970 तक देश की सुस्त आर्थिक रफ्तार को ही अर्थशास्त्री राज कृष्णा ने 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' कहा था।

कैसे और कब बढ़ी जीडीपी की दर?
1991 में जब पीवी नरसिम्हा राव की सरकार बनी और मनमोहन सिंह ने देश के वित्त मंत्रालय की कमान संभाली, तब उन्होंने कई बदलाव किए। इससे देश की आर्थिक रफ्तार में तेजी आई। राव-मनमोहन की जोड़ी ने आर्थिक सुधारों के क्रम में देश में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) शुरू की। इससे देश को 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' से छुटकारा मिल गया और देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर 5.8 फीसदी पर पहुंच गई थी। 

हालांकि, आर्थिक सुधारों की शुरुआत 1991 से पहले ही हो चुकी थी। 1990 के दशक में देश में आर्थिक मोर्चे पर कई बदलाव हुए। वैश्विकरण की वजह से ना सिर्फ निवेश को बढ़ावा मिला बल्कि देश में उद्योग कारखाने बढ़े। निवेश के लिए इंश्योरेंस समेत कई सेक्टर खोले गए। इन फैसलों से 2004 से 2009 के बीच देश की आर्थिक विकास दर सालाना 9 फीसदी तक पहुंच गई।

अभी क्या स्थिति?
कोविड की वजह से 2020-21 में देश की जीडीपी में 6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। हालांकि, निम्न आधार की वजह से 2021-22 में जीडीपी ग्रोथ रेट 9 फीसदी तक दिखाई दी, जबकि वास्तविकता इससे अलग रही। कोविड से पहले की तुलना में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट करीब 4 फीसदी है जो हिन्दू ग्रोथ रेट के बराबर ही दिखती है।

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