अखिलेश यादव ने छुड़ा लिया था पल्ला, फिर भी क्यों सपा को परेशान कर रहा अतीक का अतीत
Who is Atiq Ahmad: अतीक अहमद। यह नाम उस शख्स का है, जिसका जिक्र करके यूपी की सत्ताधारी पार्टी भाजपा अकसर समाजवादी पार्टी को घेरती रही है। अपराधियों के संरक्षण का आरोप लगाती रही है।

अतीक अहमद। यह नाम उस शख्स का है, जिसका जिक्र करके यूपी की सत्ताधारी पार्टी भाजपा अकसर समाजवादी पार्टी को घेरती रही है। अपराधियों के संरक्षण का आरोप लगाती रही है। दिलचस्प बात यह है कि इन आरोपों का जवाब उन्हीं अखिलेश यादव को देना पड़ता है, जिन्होंने अपने दौर में पार्टी की कमान संभाली तो सबसे पहले अतीक से ही पल्ला छुड़ाया था। फिर भी अतीक का अतीत सपा को परेशान करता ही है। भाजपा एक तरफ उन पर अतीक जैसे माफिया को संरक्षण देने का आरोप लगा रही है तो वहीं मायावती ने भी अतीक अहमद को सपा का ही प्रोडक्ट करार दिया। जबकि अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन इन दिनों बसपा की नेता है।
यही नहीं जिन बसपा विधायक राजू पाल की हत्या का आरोप अतीक अहमद पर लगा था, उनकी पत्नी पूजा पाल अब समाजवादी पार्टी में हैं। अतीक अहमद का बुरा वक्त यूं तो 2008 से ही शुरू हो गया था, लेकिन 2017 में योगी सरकार आने के बाद से वह टारगेट पर है और उसकी संपत्तियों तक को ध्वस्त किया गया है। दरअसल अतीक अहमद ने मायावती सरकार के दौरान 2008 में सरेंडर किया था और फिर 2012 में वह रिहा हुआ था। इसके बाद उसने 2014 में सपा के टिकट पर ही लोकसभा का चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में वह बुरी तरह हारा था।
अखिलेश को मिली कमान तो बिगड़े अतीक से रिश्ते
इसके बाद अतीक अहमद और समाजवादी पार्टी के रिश्ते बिगड़ते चले गए। यही नहीं अतीक का क्रिमिनल रिकॉर्ड देखते हुए अखिलेश यादव ने 2017 के चुनाव से पहले उससे पल्ला ही छुड़ा लिया था। इसके अलावा मुख्तार अंसारी जैसे नेताओं से भी उन्होंने दूरी बना ली थी। अतीक अहमद पर 70 से ज्यादा हत्या, हत्या के प्रयास, आपराधिक साजिश और मारपीट के मामले दर्ज हैं। 5 बार यूपी में विधायक और एक बार फूलपुर लोकसभा सीट से सांसद रहा अतीक अहमद कभी मुलायम सिंह यादव के दौर की सपा में प्रमुख नेताओं में शुमार हो गया था। उसने सपा क टिकट पर लगातार चुनाव लड़े, लेकिन अखिलेश यादव की एंट्री के बाद उसका बुरा वक्त शुरू हुआ।
1989 में निर्दलीय चुनाव जीत शुरू किया पॉलिटिकल करियर
फिर भी सपा अतीक के नाम पर घिरती है तो इसकी वजह यही है कि सपा में ही आकर वह बड़ा नेता बना था। आरोप है कि 2005 में उसने बसपा के विधायक राजू पाल की हत्या कराई थी। यह हत्या उसने इसलिए कराई क्योंकि राजू पाल ने उसके भाई अशरफ को चुनाव में हरा दिया था। अतीक अहमद ने पहली बार 1989 में इलाहाबाद पश्चिम सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधायक का चुनाव जीता था। इसके बाद दो औैर चुनाव वह निर्दलीय ही जीता, लेकिन 1996 में वह सपा में शामिल हो गया और चौथी बार विधायक बना।
5 बार की विधायकी के बाद फूलपुर से सांसद बना अतीक
तीन साल बाद अतीक अहमद ने अपना दल का दामन थाम लिया और 2002 के चुनाव में फिर से विधायक चुना गया। हालांकि 2003 में वह फिर सपा में लौट आया और 2004 में फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, जिसमें जीत हासिल की। कभी इस सीट से जवाहर लाल नेहरू सांसद हुआ करते थे। फिर 2005 में राजू पाल की हत्या के मामले में उसका नाम आया। वह अपराध और सियासत के गठजोड़ का पर्याय बन गया। उसी राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल थे, जिनकी बीते सप्ताह प्रयागराज में दिनदहाड़े गोलियां मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्या में भी अतीक अहमद का ही नाम सामने आ रहा है।
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