कोवैक्सीन लगवाने वाले 30% लोगों को स्वास्थ्य समस्याएं? BHU की रिसर्च पर क्यों भड़का ICMR
ICMR के मुताबिक, इस अध्ययन में निर्धारित प्रक्रियाओं को पालन नहीं किया गया है। यह एक छोटे से समूह पर आधारित है। ये पत्र 18 मई को लिखे गए और इनकी प्रतियां सोमवार को उपलब्ध कराई गईं।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने भारतीय कोविड वैक्सीन कोवैक्सिन पर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के रिसर्च का खंडन किया है। साथ ही, इस पर कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई करने की चेतावनी दी है। आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने कोवैक्सिन पर अध्ययन करने वाले विश्वविद्यालय के संस्थानों और प्रकाशित करने वाली न्यूजीलैंड की पत्रिका को अलग-अलग पत्र भेजा है। इसमें रिसर्च से ICMR का नाम हटाने को कहा है। पत्र में कहा गया कि इस अध्ययन की प्रक्रिया अवैज्ञानिक है और यह पूर्वाग्रह से ग्रसित है। अध्ययन में निर्धारित प्रक्रियाओं को पालन नहीं किया गया है। यह एक छोटे से समूह पर आधारित है। ये पत्र 18 मई को लिखे गए और इनकी प्रतियां सोमवार को उपलब्ध कराई गईं।
डॉ. बहल ने दोंनों पत्रों में स्टडी से आईसीएमआर का नाम अलग करने को कहा है। साथ ही, ऐसा नहीं होने पर कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि इस संबंध दोनों संस्थानों को स्पष्टीकरण या शुद्धिकरण भी प्रकाशित कराना चाहिए। पत्रिका से इस शोध पत्र को वापस लेने को भी कहा गया है। उन्होंने कहा कि ICMR इस अध्ययन से जुड़ा नहीं है और उसने शोध के लिए कोई वित्तीय या तकनीकी सहायता प्रदान नहीं की है। दरअसल, हाल ही में 'किशोरों और वयस्कों में बीबीवीएल-52 कोरोना वायरस वैक्सीन का दीर्घकालिक सुरक्षा विश्लेषण: उत्तर भारत में एक साल का संभावित अध्ययन से निष्कर्ष' नामक शोध पत्र छपा था। इसके प्रकाशन के बाद कोवैक्सिन वैक्सीन की सुरक्षा पर चिंताएं जताई गई हैं।
रिसर्च पर क्यों भड़का है ICMR
राजीव बहल ने कहा कि आईसीएमआर को बिना किसी पूर्व अनुमोदन या आईसीएमआर को सूचित किए बिना अनुसंधान में शामिल किया गया था, जो अनुचित और अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि ICMR को इस असंगत अध्ययन से नहीं जोड़ा जा सकता है। पत्रों के अनुसार, टीकाकरण और गैर-टीकाकरण वाले समूहों के बीच घटनाओं की तुलना करने के लिए अध्ययन में गैर-टीकाकरण वाले व्यक्तियों का कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए, अध्ययन में बताई गई घटनाओं को कोविड वैक्सीनेशन से नहीं जोड़ा जा सकता है। यह अध्ययन टीकाकरण के पूर्व का कोई ब्योरा प्रस्तुत नहीं करता है। वैक्सीनेशन के एक साल बाद अध्ययन में प्रतिभागियों से टेलीफोन पर संपर्क किया गया और उनकी प्रतिक्रियाएं बिना किसी नैदानिक रिकॉर्ड या मेडिकल टेस्ट की पुष्टि के दर्ज की गईं।
30% से अधिक लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
बता दें कि बीएचयू के रिसर्चर्स की टीम ने एक साल के अध्ययन में बड़ा दावा किया था। ऐसा कहा गया कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन लगवाने वाले लगभग एक-तिहाई व्यक्तियों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ा। शोधकर्ताओं ने इन स्वास्थ्य समस्याओं को विशेष रुचि वाली प्रतिकूल घटनाओं या एईएसआई की संज्ञा दी है। अध्ययन में भाग लेने वाले 926 प्रतिभागियों में से लगभग 50 प्रतिशत लोगों ने शिकायत की है कि उन्हे कौवैक्सीन लगवाने के बाद श्वास संबंधी संक्रमण का सामना करना पड़ा है। यह संक्रमण उनके श्वसन तंत्र के ऊपरी हिस्से में हुआ। इसमें दावा किया गया कि कोवैक्सीन लगवाने वाले एक प्रतिशत व्यक्तियों ने AESI की शिकायत की, जिसमें मस्तिष्काघात और गिलियन-बर्र सिंड्रोम से ग्रसित हुए। इस सिंड्रोम में लोगों के पैरों का सुन्न होना शुरू होता है और यह लक्षण शरीर के अन्य अंगों में फैलने लगता है।