Hindi Newsदेश न्यूज़Todays History Third battle of Panipat happens on 14 January 1761 between Afghan Ahmed Shah Abdali and Marathas - India Hindi News

आज ही हुई थी पानीपत की तीसरी जंग, इन दो मुस्लिम शासकों के धोखे से हारी थी मराठा सेना

यह लड़ाई 18वीं सदी की सबसे भयानक लड़ाइयों में एक थी। एक ही दिन में दोनों ताकतवर सेना के बीच भिड़ंत में बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए थे।अफगान लड़ाकों ने मराठा के सामने रोहिल्ला लड़ाकों को खड़ा किया था

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 14 Jan 2023 12:31 PM
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पानीपत की तीसरी लड़ाई अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच 14 जनवरी 1761 को वर्तमान पानीपत के मैदान मे हुआ था, जो मौजूदा समय में हरियाणा में है। पानीपत दिल्ली से लगभग 60 मील (95.5 किमी) उत्तर में अवस्थित है। इस युद्ध में मराठा साम्राज्य का साथ गार्दी सेना के प्रमुख इब्राहिम गार्दी ने दिया था, जबकि अफगान शासक अहमद शाह दुर्रानी उर्फ अहमद शाह अब्दाली का साथ दो भारतीय मुस्लिम शासकों ने दिया था। 

अब्दाली के गठबंधन में दोआब के रोहिल्ला अफगान और अवध के नवाब शुजा-उद-दौला शामिल था। इस लड़ाई में मराठा सेना की हार हुई थी। उसकी सेना के पास फ्रांसीसी तोपखाने और घुड़सवार थे, जबकि अब्दाली की सेना में  भारी घुड़सवार सेना और घुड़सवार तोपखाने (ज़म्बुराक और जिज़ेल) थे, जिसका नेतृत्व खुद अहमद शाह दुर्रानी और नजीब-उद-दौला ने किया था।

यह लड़ाई 18वीं सदी की सबसे भयानक लड़ाइयों में एक थी। एक ही दिन में दोनों ताकतवर सेना के बीच भिड़ंत में बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए थे। अफगान लड़ाकों ने मराठा सैनिकों के सामने रोहिल्ला लड़ाकों और जातीय पश्तूनों को खड़ा कर दिया था, जिसने बड़े पैमाने पर कत्ले आम मचाया था।

युद्ध स्थल को लेकर इतिहासकारों में मतभेद रहा है लेकिन अधिकांश का मानना ​​है कि यह मौजूदा दौर के काला आम और सनौली रोड के आसपास ही हुआ था। पानीपत की तीसरी लड़ाई कई दिनों तक चली थी। इसमें 125,000 से अधिक सैनिक शामिल थे। दोनों पक्षों के बीच लंबी झड़पें हुईं थीं। दोनों तरफ की सेना को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। कई मराठा गुटों को नष्ट करने के बाद युद्ध में अहमद शाह दुर्रानी के नेतृत्व वाली सेना विजयी रही थी। 

दोनों पक्षों के नुकसान का आंकलन भी इतिहासकारों द्वारा विवादित है,लेकिन ऐसा माना जाता है कि लड़ाई में 60,000-70,000 के बीच सैनिक मारे गए थे, जबकि घायलों और कैदियों की संख्या में काफी अंतर था।

शुजा-उद-दौला के दीवान काशी राज द्वारा रचित एकल सर्वश्रेष्ठ चश्मदीद गवाह-बखर के अनुसार, युद्ध के अगले दिन लगभग 40,000 मराठा कैदियों का कत्ले आम कर दिया गया था। शेजवलकर,जिनके मोनोग्राफ 'पानीपत 1761' को इस युद्ध पर सबसे प्रमाणिक स्रोत माना जाता है,का कहना है कि 1,00,000 के करीब मराठा (सैनिक और गैर-लड़ाके) युद्ध के दौरान और बाद में मारे गए थे।

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