भारत के लिए क्यों बड़ी बात है टाटा एयरबस C-295 प्रोजेक्ट, विस्तार से समझिए
22 हजार करोड़ का यह प्रोजेक्ट न सिर्फ भारतीय रक्षा मंत्रालय बल्कि पूरे देश के लिए बड़ी बात है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पहली बार है जब सी-295 एयरक्राफ्ट जैसे अत्याधुनिक जहाज का निर्माण यूरोप से बाहर होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 अक्टूबर को गुजरात के वडोदरा में टाटा एयरबस प्रोजेक्ट की नींव रखी थी। 22 हजार करोड़ का यह प्रोजेक्ट न सिर्फ भारतीय रक्षा मंत्रालय बल्कि पूरे देश के लिए बड़ी बात है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पहली बार है जब सी-295 एयरक्राफ्ट जैसे अत्याधुनिक जहाज का निर्माण यूरोप से बाहर होगा। देश के एयरोस्पेस सेक्टर के लिए भी यह बड़ी बात है। सी-295 का इस्तेमाल सेना के साथ-साथ सिविलियन यूज के लिए भी होगा। आत्मनिर्भर भारत की नजर से देखा जाए तो भारत के लिए यह प्रोजेक्ट काफी अहम है। यह अनुभव भविष्य में भारत के काम ही आएगा।
डीआरडीओ से निर्भरता होगी कम
अभी तक भारत किसी भी हार्डवेयर प्लेटफॉर्म के डिजाइन, विकास, परीक्षण और प्रमाणित करने के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) पर निर्भर है। यह पहली बार है जिसमें एक प्राइवेट कंपनी मिलिट्री एयरक्राफ्ट बनाने जा रही है। टाटा-एयरबस की सी-295 परियोजना की आधारशिला के साथ ही भारत इस तरह के विमान बनाने की क्षमता रखने वाले चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो जाएगा। इससे पहले इसमें अमेरिका, रूस और चीन समेत कुछ ही शक्तिशाली देश ही शामिल थे। इस योजना से भारत के मेक इन इंडिया कार्यक्रम को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
40 सी-295 विमान भारत में बनेंगे
मामले के जानकार अधिकारियों का कहना है कि एयरबस डिफेंस और स्पेस की ओर से सितंबर 2023 से अगस्त 2025 के बीच 16 C-295 एयरक्राफ्ट दिए जाएंगे। ये विमान स्पेन में बनेंगे। इसके बाद बाकी बचे 40 एयरक्राफ्ट का निर्माण वड़ोदरा में टाटा-एयरबस के परिसर में होगा। C-295 विमान बनाने के लिए प्रमुख पुर्जे उपलब्ध कराने के लिए गुजरात में विनिर्माण एमएसएमई की घरेलू आपूर्ति श्रृंखला भी बनाई जाएगी। "आत्मनिर्भर भारत" की दिशा में यह पहला महत्वपूर्ण कदम है।
परियोजना में स्वदेशी पर पूरा जोर
ये विमान पुराने पड़ चुके एवरो विमानों की जगह लेंगे। इस प्रोजेक्ट से गुजरात में हज़ारों लोगों को रोज़गार मिलने की उम्मीद है। एयरक्राफ्ट में 96 फ़ीसदी स्वदेशी कलपुर्जे लगाए जाएंगे।
दूसरे देशों पर निर्भरता होगी कम
इंफ्रा-रेड सीकर्स (एंटी टैंक मिसाइलों के लिए आवश्यक), इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (मिसाइलों और लड़ाकू विमानों के लिए) और हॉट इंजन प्रौद्योगिकियों जैसे महत्वपूर्ण भागों का निर्माण करने वाली औद्योगिक इकाइयों के साथ यह परियोजना सुनिश्चित करेगी कि भारत को सैन्य आवश्यकताओं के लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहना पड़े जबकि, भारत इस तरह की स्वदेशी परियोजनाओं के जरिए हथियारों का निर्यात भी कर सकेगा।
उधर, रूस और अमेरिका दोनों शक्तिशाली देशों के पाकिस्तान को हथियार और सैन्य सामग्री बेचने के बीच भारत के पास यह सुनहरा अवसर है। कुल मिलाकर सी-295 परियोजना कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण शुरुआत है।