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रामचरितमानस विवाद के बीच स्वामी प्रसाद मौर्य का प्रमोशन, अखिलेश ने बदली रणनीति; बीजेपी को दिया मैसेज

Swami Prasad Maurya News: सपा में स्वामी प्रसाद मौर्य का कद बढ़ाए जाने से क्लियर हो गया है कि अखिलेश यादव 2024 लोकसभा चुनाव के लिए पिछड़ों-दलितों और मुस्लिम की राजनीति पर फोकस करने वाले हैं।

Madan Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, लखनऊSun, 29 Jan 2023 11:21 PM
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रामचरितमानस विवाद के बीच स्वामी प्रसाद मौर्य का प्रमोशन, अखिलेश ने बदली रणनीति; बीजेपी को दिया मैसेज

समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान कर दिया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल और रामचरितमानस विवाद में बीजेपी के निशाने पर आए स्वामी प्रसाद मौर्य को प्रमोशन दिया है। दोनों को पार्टी का महासचिव बनाया गया है। डिंपल यादव के मैनपुरी में शानदार जीत दर्ज करने के बाद से तय माना जा रहा था कि शिवपाल यादव को पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य का कद बढ़ाकर अखिलेश ने भविष्य की रणनीति साफ करते हुए बीजेपी को भी मैसेज दे दिया है। पिछले दिनों बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा रामचरितमानस विवाद को जन्म देने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी बयान दिया था और धार्मिक किताब को बैन करने तक की मांग कर दी थी। इसके बाद अखिलेश यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य की बैठक भी हुई, लेकिन पूर्व मंत्री अपने बयान पर अड़े रहे। अब सपा में कद बढ़ाए जाने से क्लियर हो गया है कि अखिलेश यादव 2024 लोकसभा चुनाव के लिए पिछड़ों-दलितों और मुस्लिम की राजनीति पर फोकस करने वाले हैं। 

सपा कार्यकारिणी में पिछड़ों-दलितों का दबदबा, बीजेपी को भी मैसेज
सपा कार्यकारिणी में पिछड़ों और दलितों को काफी अहमियत दी गई है। आजम खां के रूप में मुस्लिम चेहरे को भी जगह मिली है। उपाध्यक्ष पद पर किरणमय नंदा और प्रमुख महासचिव पद पर प्रोफेसर रामगोपाल यादव बने हुए हैं, जबकि अन्य महासचिव की सूची में शिवपाल, स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर, अवधेश प्रसाद, इंद्रजीत वर्मा जैसे नेताओं को जगह मिली है। ज्यादातर नेता पिछड़ी जाति के ही हैं। वहीं, बसपा और बीजेपी से आए बड़े नेताओं को अखिलेश ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह दी है। साल 2022 के चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी छोड़कर सपा में शामिल होने वाले पूर्व मंत्री लालजी वर्मा और राम अचल राजभर को राष्‍ट्रीय महासचिव बनाया गया है। उधर, ब्राह्रण चेहरे की बात करें तो पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्रा और पवन पांडे जैसे चंद नेताओं को ही कार्यकारिणी में शामिल किया गया है। वहीं, अखिलेश यादव ने बीजेपी के दबाव के बाद भी स्वामी प्रसाद मौर्य पर कार्रवाई नहीं करते हुए उन्हें आगे बढ़ाया, जिसके जरिए मैसेज दिया कि वे भगवा दल के दबाव में कोई फैसला नहीं लेने वाले हैं। उन्हें जिससे सियासी फायदा मिलेगा, उसके साथ खड़े रहेंगे। 

मायावती के वोटबैंक को झटकने की कोशिश
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले तक यूपी की राजनीति में मायावती का दलित वोटबैंक पर काफी प्रभाव था। दलितों, मुस्लिमों और ब्राह्रणों के वोट के सहारे ही मायावती 2007 में मुख्यमंत्री पद की कुर्सी तक भी पहुंचीं। लेकिन दलित वोटबैंक में 2014 के बाद बीजेपी ने सेंध लगाने की कोशिश की, जिसमें काफी हदतक सफल भी हुई। 2014, 2019 लोकसभा चुनाव और 2017 व 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग के सहारे यूपी में बसपा, सपा समेत अन्य दलों को पटखनी दी। इन चुनावों में बीजेपी को दलितों के भी काफी वोट मिले। अब अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पिछड़ों, दलितों के नेताओं को जगह देकर बसपा से भाजपा में जा चुके वोटबैंक को अपनी ओर खींचने की कोशिश की है। यही वजह है कि साधु-संतों में स्वामी प्रसाद मौर्य के रामचरितमानस को लेकर दिए गए बयान को लेकर गुस्से के बाद भी अखिलेश ने उन्हें महासचिव बना दिया। 

भाजपा को जाता रहा है अपर कास्ट वोट; इसलिए बदली रणनीति!
समाजवादी पार्टी सालों से एमवाई (मुस्लिम और यादव) समीकरण पर फोकस करती रही है। अतीत में चुनाव नजदीक आते ही कई बार उसका फोकस अपर कास्ट वोट्स को भी हासिल करने का रहा है। लेकिन हाल के चुनावों में उच्च जातियों का बड़ा वोट प्रतिशत भाजपा को जाता रहा है। साल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से जुड़े लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में 89% ब्राह्मणों ने भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को वोट दिया। वहीं, राजपूतों का यह आंकड़ा 87% था, जबकि बनियों के लिए यह 83% था। इसी वजह से माना जा रहा है कि अखिलेश यादव ने ब्राह्मण-ठाकुर पर फोकस करने के बजाए पिछड़ों-दलित और मुस्लिमों की राजनीति करने का फैसला लिया है। 2022 चुनाव में मुस्लिमों के एकतरफा वोट हासिल करने वाले अखिलेश को उम्मीद है कि वे मायावती के दलित वोटबैंक को भी प्राप्त करने में सफल होंगे। 

बीजेपी हमें शुद्र मानती है... अखिलेश ने दे दिया संकेत
रामचरितमानस विवाद के बाद कई सपा विधायकों ने स्वामी प्रसाद मौर्य का खुलकर विरोध जताया था। सूत्रों के अनुसार, कई विधायकों ने अखिलेश यादव को फोन करके अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। ऐसे में माना जा रहा था कि स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। हालांकि, उनका कद बढ़ाकर अखिलेश ने कार्रवाई की अटकलों को खत्म कर दिया। स्वामी प्रसाद मौर्य पर कोई भी ऐक्शन नहीं लिए जाने के संकेत कुछ दिन पहले ही मिलने लगे थे, जब अखिलेश यादव ने कहा था कि बीजेपी उन्हें शुद्र मानती है और इसी वजह से मंदिर जाने से रोकती है। शनिवार को मां पीताम्बरा देवी के कार्यक्रम में पहुंचे अखिलेश यादव को काले झंडे दिखाए गए थे। अखिलेश यादव मुर्दाबाद और अखिलेश यादव वापिस जाओ के नारे भी लगे। इससे गुस्साए अखिलेश ने कहा था कि मुझे रोकने के लिए बीजेपी ने गुंडे भेजे हैं। अखिलेश ने कहा था कि बीजेपी के लोग हम सबको शुद्र मानते हैं। पिछड़ों और दलितों को बीजेपी के लोग शुद्र मानते हैं। हम उनकी नजर में शुद्र से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं। इसी बयान के जरिए अखिलेश ने संकेत दे दिया था कि आने वाले समय में पिछड़ों और दलितों की राजनीति पर ही ज्यादा फोकस करेंगे। 

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