भारत में इस साल सूखा पड़ेगा या होगी तेज बारिश? जानिए स्काईमेट की मानसून भविष्यवाणी
गुजरात, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में भी सामान्य से कम बारिश होने का अनुमान है। हालांकि, उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश में सामान्य से ज्यादा बारिश होने का अनुमान है।
भारत में इस साल मानसून कैसा रहेगा? क्या बारिश होगी या गर्मी से परेशान होंगे लोग? इन तमाम सवालों का जवाब दिया है एक निजी मौसम पूर्वानुमान कंपनी स्काईमेट वेदर ने। स्काईमेट वेदर ने मंगलवार को कहा कि इस मानसून के मौसम में "सामान्य" वर्षा होगी। इससे पहले 21 फरवरी को स्काईमेट द्वारा जारी मानसून के पूर्वानुमान में भी इस साल मानसून सामान्य रहने की बात कही गई थी।
मौसम कंपनी की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल राजस्थान में कम बारिश होने की संभावना है। गुजरात, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में भी सामान्य से कम बारिश होने का अनुमान है। हालांकि, उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश में सामान्य से ज्यादा बारिश होने का अनुमान है।
इसने कहा है कि बारिश दीर्धावधि औसत (एलपीए) का 98% होगी। जून से सितंबर की अवधि के लिए दीर्धावधि औसत 1961-2010 के बीच के औसत के आधार पर 880.6 मिमी है। सामान्य वर्षा को एलपीए के 96-104% के बीच वर्गीकृत किया गया है। पिछले साल, "सामान्य" श्रेणी में मानसून की वर्षा एलपीए का 99% थी और 2020 में, मानसून "सामान्य से ऊपर" श्रेणी में एलपीए का 109% था।
स्काईमेट वेदर का अनुमान है कि जुलाई-अगस्त में केरल और कर्नाटक के आंतरिक हिस्सों में बारिश में कमी आ सकती है। इस बार के मानसून का पहला आधा हिस्सा दूसरे आधे हिस्से से बेहतर रहने की उम्मीद है।
स्काईमेट ने कहा कि दक्षिण-पश्चिम मानसून 2022 के सामान्य होने की 65 प्रतिशत संभावना है। वहीं 25 प्रतिशत कम बारिश होने की भी संभावना है और 10 प्रतिशत 'सामान्य से ऊपर' बारिश होने की संभावना है। इसने कहा है कि साल 2022 के सूखा वर्ष होने की कोई संभावना नहीं है।
इससे पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भुवनेश्वर के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने अध्ययन में दावा किया था कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पश्चिम एशिया में धूल भरी आंधियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है लेकिन संभव है कि इसके असर से भारत में मानसूनी बारिश में वृद्धि होगी।
इस अध्ययन को हाल में ‘‘क्लाइमेट ऐंड ऐटमॉस्फेरिक साइंस’’ जर्नल में प्रकाशित किया गया है। अध्ययन के मुताबिक, पश्चिम एशिया के रेगिस्तान से उड़ने वाली धूल अरब सागर तक पहुंचती है और इससे दक्षिण एशिया में बारिश बढ़ सकती है, खासतौर पर तब जब भारतीय क्षेत्र में गंभीर सूखे के हालात हों।
इससे पहले हुए अध्ययन के मुताबिक, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के रेगिस्तान से उड़ने वाली धूल से भारत में एक या दो हफ्ते के अल्पकालिक समय में बारिश की दर बढ़ जाती है।
अध्ययन के मुताबिक, यह संभव इसलिए होता है क्योंकि इस धूल की वजह से अरब सागर गर्म होता है जो भारतीय क्षेत्र में नमी वाली हवाओं को गति देने का ऊर्जा स्रोत है।