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एक झूठी खबर पर भरोसा और बुरी तरह हारा पाकिस्तान, 1971 की जंग का मजेदार वाकया

भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के आधिकारिक रूप से शुरुआत होने के एक सप्ताह बाद यानी 10 दिसंबर को भारती सेना पूर्वी पाकिस्तान, जो कि अब बांग्लादेश है, में प्रवेश कर रही थी।

Himanshu Jha लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली।Fri, 25 Nov 2022 11:51 AM
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भारत के खिलाफ पाकिस्तान जब भी जंग में उतरा है, उसे हार ही मिली है। लेकिन 1971 की जंग उसके लिए सबसे ज्यादा चुभने वाली रही है, जिसका जिक्र तक करने से पाकिस्तान के सियासतदां और सेना बचते हैं। इस बीच पाक के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने उस करारी हार के लिए राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार बताया है। हालांकि इस जंग में पाकिस्तान की सेना भी बुरी तरह हारी थी। खासतौर पर रणनीतिक मोर्चे पर तो उसे भारतीय सेना ने जमकर धूल चटाई। यहां तक प्रोपेगेंडा वॉर में भी पाकिस्तान ऐसा हारा कि आज तक मलाल करता है। वाकया यह है कि बीबीसी में प्रकाशित एक गलत तस्वीर पर भरोसा करना पाकिस्तान को भारी पड़ा था और नतीजा हार के रूप में सामने आया।

भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के आधिकारिक रूप से शुरुआत हो चुकी थी। इसके ठीक एक सप्ताह बाद यानी 10 दिसंबर को भारती सेना पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में प्रवेश कर रही थी। इसकी अगुवाई लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह कर रहे थे। भारतीय सैनिकों ने मेघना नदी को पार कर लिया था। ढाका की तरफ जाने के लिए यह सबसे बड़ी बाधा थी। सैनिकों को नदी पार कराने के लिए भारतीय वायु सेना के एमआई-4 हेलीकाप्टरों का उपयोग किया गया। वहीं, पश्चिम में लेफ्टिनेंट कर्नल कुलवंत सिंह पन्नू की अगुवाई में भारतीय सैनिकों को 11 दिसंबर को जमुना नदी पार कराया गया था। इसमें  भारतीय वायुसेना के के An-12, C-119, कारिबू और डकोटा विमानों का उपयोग किया गया था। उन्हें तंगेल में एयरड्रॉप किया गया था।

सैनिकों को दुश्मन की सीमा से ठीक पहले उतारा गया था। 2 पारा को पाकिस्तान की 93 इन्फैंट्री ब्रिगेड को काटने के लिए जमुना नदी पर पुंगली पुल पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था। सेना ढाका की रक्षा के लिए उत्तर से पीछे हट रही थी और मानिकगंज-ढाका रोड के माध्यम से मराठा लाइट इन्फैंट्री से सैनिकों के साथ ढाका की ओर बढ़ रही थी।

पाकिस्तान के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध
इस बीच भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध की रचना की। 8 और 9 दिसंबर को तंगेल में एयरड्रॉप के कुछ ही दिन पहले भारत ने हजारों की संख्या में पाकिस्तानी ठिकानों पर पर्चे गिराए थे। उन पर्चों में सैनिकों का मनोबल गिराने के लिए भारतीय आक्रमण के प्रति पाकिस्तानी सेना की प्रतिक्रिया की एक गंभीर तस्वीर बनाई गई थी।

तांगैल में भारतीय सैनिकों को एयरड्रॉप करने से एक दिन पहले सैन्य संचालन के निदेशक मेजर जनरल इंदर गिल ने जनसंपर्क निदेशालय के एक अधिकारी आई राममोहन राव से संपर्क साधा। उन्होंने राव को युद्ध के दौरान चल रहे पीएसवाईओपी के हिस्से के रूप में पैराड्रॉप के लिए अच्छा प्रचार सुनिश्चित करने के लिए कहा।

सही तस्वीर की व्यवस्था नहीं कर पाए अधिकारी
राव उस समय सेना प्रमुख सैम मानेकशॉ के कार्यालय से जुड़े थे। उन्होंने पूर्वी कमान के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी कर्नल बी पी रिखे से अनुरोध किया कि वह यह सुनिश्चित करें कि तंगेल एयरड्रॉप को अधिकतम प्रेस कवरेज मिले। कर्नल रिखे हालांकि ऑपरेशन की तस्वीरों की व्यवस्था नहीं कर सके।

राव ने 2013 में लिखा था, "12 दिसंबर की सुबह मुझे निराशा हुई, जब कर्नल रिखे ने मुझे बताया कि वह चित्रों की व्यवस्था नहीं कर सकते क्योंकि पैराड्रॉप एक ऐसी जगह हुआ है जहां उनकी पहुंच नहीं है।" उन्होंने कहा, "उस ऑपरेशन के लिए पैराड्रॉप का प्रचार महत्वपूर्ण था।

युद्धाभ्यास की तस्वीर का किया इस्तेमाल
इसके बाद राव फोटो सेक्शन विंग पहुंचे और पैरा ब्रिगेड की एक अभ्यास की तस्वीर निकाली। यह अभ्यास सैनिकों ने कुछ समय पहले आगरा में किया था। सेना के अभ्यास के दौरान ली गई यह तस्वीर अगले दिन यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका के अखबारों के पहले पन्ने पर थी। इसके साथ ही राव का काम हो गया।

राव कहते हैं, "तस्वीर को एक कैप्शन के साथ जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि भारतीय पैरा ब्रिगेड के सैनिकों को 12 दिसंबर को पूर्वी पाकिस्तान के ऊपर उतारा गया।"

प्रचार के लिए उनके द्वारा इस्तेमाल की गई तस्वीर के बार में राव लिखते हैं, "तस्वीर से ऐसा प्रतीत होता है कि एक पूरी पैरा ब्रिगेड को एयरड्रॉप कर दिया गया था। हालांकि तंगेल में केवल एक बटालियन यानी 1000 से सैनिकों को एयरड्रॉप किया गया था।'' 

बीबीसी की रिपोर्ट भी थी गलत
1971 के युद्ध के भारत के आधिकारिक इतिहास में कहा गया है कि इसी अवधि के दौरान बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत ने तंगेल में लगभग 5,000 सैनिकों को एयरड्रॉप किया है। यह सैनिकों के वास्तविक आकार से पांच गुना बड़ा था।

1971 के युद्ध के दौरान 5 गोरखा राइफल्स में एक युवा मेजर जनरल इयान कार्डोजो कहते हैं कि बीबीसी ने भी गलत तरीके से रिपोर्ट किया कि एक भारतीय ब्रिगेड सिलहट में उतरी थी। 

झूठी खबर से डर गई पाकिस्तान की सेना
तस्वीर और बीबीसी की रिपोर्ट पढ़कर पाकिस्तान की सेना डर गई। इसका उनके आत्मसमर्पण के निर्णय पर काफी प्रभाव पड़ा। राव ने कहा कि पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाज़ी से जब पूछा गया कि उन्होंने भारत के सामने आत्मसमर्पण करने का फैसला क्यों किया, तो उन्होंने 'द टाइम्स' की एक कॉपी की तरफ इशारा किया, जिसमें सैनिकों के एयरड्रॉप की तस्वीर छपी थी।

पाकिस्तान के आत्मसमर्पण के कुछ समय बाद राव को इस तस्वीर को लेकर स्पष्टीकरण भी देना पड़ गया। उनसे पूछा गया कि उन्होंने यह क्यों नहीं बताया कि उन्होंने जो तस्वीर प्रेस को जारी की थी वह वास्तविक ऑपरेशन के दौरान नहीं ली गई थी। राव ने कहा, "मेरे बॉस ने मुझसे स्पष्टीकरण मांगा। लेकिन दूसरे कार्यालय के दूसरे कमरे में आर एन काओ मुस्कुराए और मेरे काम की सराहना की।” आपको बता दें कि काओ भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी R&AW के प्रमुख थे।

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