रक्षा बंधन विशेष: सब्जी बेचकर भाई को काबिल बनाया, खुद भी बनी थानेदार
धनबाद में महिला थाना के थानेदार रही सरिता कच्छप ने अपने भाई और परिवार की खातिर बहनों के साथ सब्जी बेची, सभी को पढ़ाया और खुद भी काबिल बन थानेदार बनी। रांची के कडरू पुल टोली में एक साधारण परिवार में...
धनबाद में महिला थाना के थानेदार रही सरिता कच्छप ने अपने भाई और परिवार की खातिर बहनों के साथ सब्जी बेची, सभी को पढ़ाया और खुद भी काबिल बन थानेदार बनी। रांची के कडरू पुल टोली में एक साधारण परिवार में जन्मी सरिता कच्छप बताती हैं कि पिता फॉरेस्ट विभाग में थे। कच्चे मकान में रहते थे। अपनी छह बहनों, एक भाई और मां की जिम्मेदारी थी। जीविकोपार्जन के लिए घर के बाहरी हिस्से में राशन की दुकान खोली। सभी बहनें मिलकर राशन दुकान चलाती थीं। वहीं लॉ कॉलेज था। मुझे कॉलेज में दाखिला मिला गया। कॉलेज करने के बाद वापस लौटते समय अपर बाजार से दुकान के लिए राशन ले आती थी। घर से कूछ दूरी पर नदी के पास हमारी जमीन थी। वहां हमने सब्जी उगाकर रेलवे स्टेशन और कोर्ट के पास बेचना शुरू किया। इन संघर्षों के दौर में हमने पढ़ाई नहीं छोड़ी। संघर्ष का नतीजा है कि 2012 में दारोगा बनी।
आगे वह कहती हैं कि धनबाद महिला थाने में थानेदार की पहली पोस्टिंग मिली। छोटे भाई शंभू कच्छप को जी-जान से पढ़ाया। वह इंजीनियर बना और आज दिल्ली में मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत है। एक छोटी बहन साइंटिस्ट और टैक्शेसन एडवोकेट है। हाल में तबादले के बाद सरिता कच्छप गढ़वा महिला थाने की थानेदार हैं।
सब इंस्पेक्टर सरिता कच्छप का कहना कि हमारे समाज में लड़कियों को लेकर आज भी नजरिया अच्छा नहीं है। मुहल्ले में मेरे पिता ने कितने ताने सुने कि बेटियों को पढ़ाकर क्या होगा, उन्हें बाहर न भेजो। वो दौर गुजर गया। आज भी जब पीछे मुड़कर अपने मुहल्ले को देखती हूं तो वही स्थिति आज भी दिखती है। लोगों की सोच आज भी नहीं बदली।