राहुल गांधी को याद आ रही होगी 10 साल पहले की गलती, ना करते तो बच जाती सांसदी
हर कोई राहुल गांधी की उस 'गलती' का जिक्र कर रहा है, जो उन्होंने 2013 में मनमोहन सरकार के अध्यादेश की कॉपी को फाड़कर की थी। यदि आज वह नियम लागू होता तो राहुल गांधी की सदस्यता बची रहती।
राहुल गांधी के लिए कांग्रेस को जिस बात का डर था, वही हो गई। मोदी सरनेम पर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर मानहानि केस में उन्हें गुरुवार को दो साल की सजा हुई थी और अब उनकी लोकसभा की सदस्यता भी चली गई है। शुक्रवार को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इस बारे में फैसला लिया। इस बीच हर कोई राहुल गांधी की उस 'गलती' का जिक्र कर रहा है, जो उन्होंने 2013 में मनमोहन सरकार के अध्यादेश की कॉपी को फाड़कर की थी। दरअसल मनमोहन सिंह सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक अध्यादेश लाई थी, जिसमें 2 साल या उससे अधिक की सजा के तुरंत बाद किसी विधायक या सांसद की सदस्यता ना छीने जाने का प्रावधान था।
राहुल गांधी को बड़ा झटका, संसद की सदस्यता खत्म, दो साल की हुई थी सजा
राहुल गांधी ने उस अध्यादेश को फाड़ दिया था। तब भी राहुल गांधी पर यह कहते हुए उन पर निशाना साधा गया था कि उन्होंने चुनी हुई सरकार की कैबिनेट से पारित अध्यादेश को फाड़कर गलती की है। यह पूरा मामला जुलाई 2013 में लिली थॉमस बनाम भारत केस में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शुरू हुआ था। इस मामले में कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून के सेक्शन 8 (4) को खारिज कर दिया था, जिसमें किसी विधायक एवं सांसद को सजा मिलने के बाद तीन महीने का वक्त अपील के लिए मिलता था। इसके बाद भी अपील पर फैसला होने तक उनकी सदस्यता बनी रहने का प्रावधान था।
राहुल गांधी ने अध्यादेश को बताया था 'कंप्लीट नॉनसेंस'
कोर्ट के इस फैसले को पलटने के लिए ही मनमोहन सिंह सरकार अध्यादेश लेकर आई थी, जिसे राहुल गांधी ने फाड़ दिया था। माना जा रहा है कि यदि वह उस अध्यादेश को नहीं फाड़ते तो फिर आज राहुल गांधी खुद उसके ही प्रावधानों के जरिए बच जाते। राहुल गांधी ने मनमोहन सरकार के प्रस्तावित अध्यादेश की कॉपी को 'कंप्लीट नॉनसेंस' करार करते हुए फाड़ दिया था। इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी उक्त अध्यादेश पर एतराज जताया था और उस समय के केंद्रीय कानून मंत्री को अपने पास बुलाकर इस पर स्पष्टीकरण मांगा था।
कैसे राहुल गांधी की सदस्यता बच सकती है, एक ही उम्मीद
फिलहाल राहुल गांधी के पास यही रास्ता है कि ट्रायल कोर्ट खुद ही उनकी सजा को खत्म करे या फिर कम कर दे। इसके अलावा वे हाई कोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट तक जाकर इस मामले में राहत की अपील कर सकते हैं। यदि ऊपरी अदालत से उनकी सजा कम होती है तो फिर उनकी सांसदी बहाल हो सकती है। गौरतलब है कि जनवरी में लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता भी हत्या के प्रयास के मामले में सजा के बाद चली गई थी। यहां तक कि उनकी सीट पर चुनाव आयोग ने इलेक्शन का नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया था। लेकिन हाई कोर्ट ने सजा पर रोक लगा दी थी और उसके बाद उनकी सदस्यता फिर से बहाल हो गई थी।