चीन को किनारे करने की तैयारी? भारत, अमेरिका, सऊदी और यूरोप मिलकर बनाएंगे रेल और जहाज कॉरिडोर
शनिवार सुबह पत्रकारों से बात करते हुए फाइनर ने कहा कि यह परियोजना एक प्रमुख बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा करेगी। साथ ही उन्होंने इसे उच्च मानक, पारदर्शी और टिकाऊ करार दिया है।
भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यूरोप मिलकर एक रेल और जाहज कॉरिडोर बनाने की तैयारी में है। ये देश शनिवार को जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान वाणिज्य, ऊर्जा और डिजिटल कनेक्टिविटी को भी बढ़ाने पर चर्चा करेगी। अमेरिका के उपराष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन फाइनर ने इसकी जानकारी दी है। इस कदम से इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि चीन को किनारे लगाने की तैयारी की जा रही है। इसे मिडिल ईस्ट कॉरिडोर का नाम भी दिया जा सकता है।
शनिवार सुबह पत्रकारों से बात करते हुए फाइनर ने कहा कि यह परियोजना एक प्रमुख बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा करेगी। साथ ही उन्होंने इसे उच्च मानक, पारदर्शी और टिकाऊ करार दिया है। इसके चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के खिलाफ एक अप्रत्यक्ष और तीव्र विरोधाभास के तौर पर देखा जा रहा है। फाइनर ने कहा कि यह पहल पश्चिम एशिया में जो बाइडेन प्रशासन की बड़ी रणनीति का हिस्सा है।
बुनियादी ढांचे के अंतर को भर देगा
उन्होंने कहा कि दुनिया के तीन क्षेत्रों को जोड़ने वाले कॉरिडोर से समृद्धि बढ़ेगी। यह कम और मध्यम आय वाले देशों के बीच व्यापक बुनियादी ढांचे के अंतर को भर देगा। अमेरिका ने इस अंतर को भरने के लिए वह सब किया जो वह कर सकता है।
इजराइल की क्या होगी भागेदारी?
परियोजना को I2U2 के तहत लागू नहीं किया गया है। इसमें भारत, इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका शामिल हैं। इजराइल और सऊदी के बीच रिश्ते सामान्य होने के प्रयास अभी भी किए जा रहे हैं। अधिकारियों का मानना है कि इसमें इजराइल एक स्पष्ट भागीदार होगा। इजराइल की भागीदारी पर एक सवाल पर फाइनर ने कहा कि वह देशों को अपने लिए बोलने देंगे।
फाइनर ने कहा, ''हमारा दृष्टिकोण तनाव को कम करने, संघर्षों को कम करने और क्षेत्र में स्थिरता लाने का है। हम कनेक्टिविटी को प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे हैं। रेलवे और शिपिंग परियोजना पूरी तरह से उसी के अनुरूप है।''
चीन का विरोध?
चीन के बीआरआई के साथ विरोधाभास के बारे में पूछे जाने पर फाइनर ने इसे सकारात्मक एजेंडा करार दिया। उन्होंने कहा, ''यह शून्य राशि नहीं है। हम देशों से शून्य राशि विकल्प चुनने के लिए नहीं कह रहे हैं। यह एक उच्च मूल्य वाला प्रस्ताव है। हम सदस्य देशों के ऊपर इसे थोप नहीं रह रहे हैं।''