क्या करेगी PMJAY? कमजोर ही नहीं ले रहे लाभ, झेल रहे आर्थिक दबाव; देखें आंकड़े
गरीबी और बीमारियों के लिहाज से कम परेशान राज्य स्कीम के तहत सेवाओं का लाभ ज्यादा ले रहे हैं। इनमें केरल और हिमाचल प्रदेश का नाम शामिल है। जबकि, बिहार, MP, असम और UP जैसे राज्य इस मामले में पीछे हैं।
Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana (PMJAY): भारत में कमजोर वर्ग को स्वास्थ्य संबंधी खर्चों से बचाने के लिए लाई गई प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) का फायदा कुछ हिस्सों तक ही सिमटता नजर आ रहा है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे कमजोर वर्ग ही इस स्वास्थय योजना का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। शोध के अनुसार, साल 2021 के सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि देश के सबसे गरीब 40 फीसदी आबादी में शामिल परिवारों के बीच जागरूकता और नामांकन की कमी थी।
लेंसेट रीजनल हेल्थ में प्रकाशित स्टडी बताती है कि देश की 28 फीसदी आबादी यानी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बीच निजी अस्पतालों में भर्ती होने की दर कम है। आंकड़े बताते हैं कि योजना की शुरुआत से राष्ट्रीय स्तर पर एससी 5 फीसदी और एसटी 2 फीसदी भर्ती हुए। एसोसिएशन फॉर सोशली एप्लिकेवल रिसर्च (ASAR), ड्यूक यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने यह स्टडी की थी, जिसमें 2018 से 2022 तक का डेटा है।
जरूरतमंद राज्य कम कर रहे हैं इस्तेमाल
एक और खास बात यह है कि गरीबी और बीमारियों के लिहाज से कम परेशान राज्य स्कीम के तहत सेवाओं का लाभ ज्यादा ले रहे हैं। इनमें केरल और हिमाचल प्रदेश का नाम शामिल है। जबकि, बिहार, मध्य प्रदेश, असम और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस मामले में पीछे हैं।
क्या है स्थिति
रिपोर्ट के अनुसार, एससी, अन्य पिछड़ा वर्ग, मुसलमान समुदाय समेत कई वर्गों के बीच कैटेस्ट्रोफिक हेल्थ एक्सपेंडीचर (CHE) ज्यादा है। दरअसल, यह ऐसी स्थिति है, जहां स्वास्थ्य पर खर्च घर की जरूरतों के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा हो जाता है। इसके अलावा स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च ग्रामीण इलाकों और गरीब राज्यों में मुश्किलें बढ़ा रहा है। 2018 में शुरू हुई इस योजना का मकसद इन वर्गों को आर्थिक लिहाज से सुरक्षा देना था।
अब क्यों हैं समस्याएं
जानकार बता रहे हैं कि योजना में शामिल अस्पतालों की कम संख्या, धीमी आपूर्ति, लाभार्थियों की पहचान के लिए लचर व्यवस्था जैसे कारण इस योजना से मिलने वाले फायदे को प्रभावित कर रहे हैं। इसके अलावा कमजोर वर्ग सार्वजनिक अस्पतालों की ओर ज्यादा रुख कर रहे हैं। पोर्टेबिलिटी के मामले में भी लाभार्थी कम रुची दिखा रहे हैं।