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पीएम मोदी और शाह के गांव में इस बार खिला कमल, कांग्रेस से सीट छीनने में RSS की बड़ी भूमिका

इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह नगर वडनगर और गृह मंत्री अमित शाह के मनसा में भाजपा जीत करने वाली है। पिछली बार वडनगर और मनसा में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी।

Ankit Ojha लाइव हिंदुस्तान, अहमदाबादThu, 8 Dec 2022 02:29 PM
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प्रधानमंत्री मोदी के गांव वडनगर और गृह मंत्री अमित शाह के गांव मनसा जिस विधानसभा क्षेत्र में आते हैं वहां पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी। हालांकि इस बार खास रणनीति और आरएसएस की भूमिका की वजह से भाजपा प्रत्याशी अपनी जीत सुनिश्चित कर चुके हैं। बता दें कि वडनगर उंझा विधानसभा के अंतरगत आता है। उंझा में उम्मीदवारी को लेकर टकराव नजर आ रहा था लेकिन यहां से आरएसएस प्रमुख मोहन भागव के करीबी माने जाने वाले केशवलाल पटेल को भाजपा ने टिकट दिया। इसके बाद गुटबाजी थम गई और मतभेद भी खत्म होगा। 

आरएसएस ने झोंकी ताकत
उंझा विधानसभा में केशवलाल पटेल के लिए आरएसएस ने भी अपनी ताकत झोंक दी। संघ के स्वयंसेवकों ने जमकर उनका प्रचार किया। इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस की डॉ. आशा पटेल को हार का सामना करना पड़ रहा है। बता दें कि 2017 में यह सीट भाजपा के लल्लूदास से डॉ. आशा पटेल ने छीनी थी। इससे पहले यह सीट भाजपा की ही गढ़ थी। 1995 से लगातार भाजपा इस सीट पर जीत दर्ज कर रही थी। आरएसएस ने इस सीट पर प्रचार का पूरा दारोमदार अपने हाथ में ले लिया था। 

उंझा विधानसभा सीट पर पहले जनता दल के प्रत्याशी जीतते थे। बाद में यहां भाजपा जीत दर्ज करने लगी। इस सी पर पादीदारों कि अच्छी आबादी है और वह कांग्रेस को वोट नहीं करती है। पहले ब्राह्मण, बनिया और प्रजापति कांग्रेस को वोट देते थे लेकिन  इस बार समीकरण बदल गए थे। ये सभी वर्ग भी भाजपा में चले गए थे। 

बात करें मनसा की तो पिछले दो चुनावों से लगातार कांग्रेस यहां जीत दर्ज कर रही थी। हालांकि इस बार गृह मंत्री अमित शाह ने इस सीट के लिए रणनीति खुद तय की और यहां से जयंती पटेल को उतारा। पटेल ने कांग्रेस के मोहन सिंह ठाकोर का पीछे छोड़ दिया है। इस सीट पर भी पाटीदारों की आबादी सबसे ज्यादा है। इशके अलावा राजपूत, चौधरी हैं। यहां ब्राह्मण और बनिया वोट कम हैं। पिछली बार के चुनाव में पाटीदार आंदोलन भी एक बड़ा मुद्दा था। हालांकि इस बार यह मुद्दा ही खत्म हो गया। हार्दिक पटेल खुद भाजपा में आ गए। इसका भी काफी प्रभाव पड़ा और पाटीदार बहुल सीटों पर भाजपा की पकड़ मजबूत हो गई। 

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