ओवैसी को रास नहीं आया ज्ञानवापी मस्जिद पर कोर्ट का आदेश, बोले- हिंदुत्व के मुद्दे पर झूठ बोलती ASI
वाराणसी की एक फास्ट ट्रैक अदालत ने काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े मामले में विवादित परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया। इसके बाद सियासत भी तेज हो गई...
वाराणसी की एक फास्ट ट्रैक अदालत ने काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े मामले में विवादित परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया। इसके बाद सियासत भी तेज हो गई है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के मुखिया और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने आदेश की वैधता पर सवाल उठा दिए हैं।
असदुद्दीन ओवैसी ने एक के बाद एक कई ट्वीट किए हैं। उन्होंने कहा, ''इस आदेश की वैधता संदिग्ध है। बाबरी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून में किसी मामले पर पुरातात्विक निष्कर्षों की खोज के आधार पर नहीं निकाला जा सकता है, जिसे एएसआई ने पेश किया है।'' ओवैसी ने ASI पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, ''हिंदुत्व के हर प्रकार के झूठ के लिए एएसआई प्रसव कराने वाली दाई की तरफ काम करती है। कोई भी इससे निष्पक्षता की उम्मीद नहीं करता है।''
The legality of this order is doubtful. In Babri judgement SC said “A finding of title cannot be based in law on the archaeological findings which have been arrived at by ASI..." ASI has acted as a midwife to all kinds of Hindutva lies, no one expects objectivity from it 1/n https://t.co/oEv7RxsD7r
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) April 8, 2021
ओवैसी ने अपने दूसरे ट्वीट में कहा, ''ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मस्जिद कमेटी को इस आदेश पर तुरंत अपील करनी चाहिए। इसे सुधरवाना चाहिए। एएसआई से सिर्फ धोखाधड़ी का पाप करेगी। इतिहास दोहराया जाएगा जैसा कि बाबरी के मामले में किया गया था। किसी भी व्यक्ति को मस्जिद की प्रकृति को बदलने का कोई अधिकार नहीं है।''
उन्होंने यह भी कहा, ''यह स्पष्ट है कि बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने के अहंकारी आपराधिक कृत्य को अंजाम देने वाले लोगों को छोड़ दिया गया है। 1980 के दशक की हिंसा में भारत को वापस ले जाने के लिए किसी भी चीज पर रोक नहीं होगी। काल्पनिक इतिहास को लेकर लगातार अत्याचार किया जाएगा।''
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर आदेश को HC में चुनौती देगा वक्फ बोर्ड
उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड वाराणसी की एक फास्ट ट्रैक अदालत द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े मामले में विवादित परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती देगा। बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी ने लखनऊ में जारी एक बयान में कहा है कि बोर्ड वाराणसी की अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देगा। बोर्ड का स्पष्ट मानना है यह मामला पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम- 1991 के दायरे में आता है। इस कानून को अयोध्या मामले की सुनवाई करने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बहाल रखा था। लिहाजा ज्ञानवापी मस्जिद का दर्जा किसी भी तरह के संदेह से मुक्त है।
फारूकी ने कहा कि वाराणसी की फास्ट ट्रैक अदालत का आदेश सवालों के घेरे में है क्योंकि वादी पक्ष की तरफ से कोई भी तकनीकी सुबूत पेश नहीं किए गए कि ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पहले कभी कोई मंदिर हुआ करता था। यहां तक कि अयोध्या मसले में भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई खुदाई अंततः व्यर्थ साबित हुई। उन्होंने दावा किया कि यह संस्थान ऐसा कोई भी सुबूत नहीं पेश कर सका था कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को ढहाकर किया गया था। फारूकी ने कहा कि खुद उच्चतम न्यायालय ने खासतौर पर इस बात का जिक्र भी किया था, लिहाजा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा मस्जिदों की पड़ताल की प्रथा को बंद कर दिया जाना चाहिए।
क्या है मामला?
वाराणसी की सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक दीवानी अदालत ने बृहस्पतिवार को काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े मामले में विवादित परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया है। अदालत ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को अपने खर्च पर यह सर्वेक्षण कराने का आदेश जारी किया है। मामले के याची वकील विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि इस सर्वेक्षण में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पांच विख्यात पुरातत्व वेत्ताओं को शामिल करने का आदेश दिया गया है जिनमें दो सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय के भी होंगे। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में दीवानी न्यायालय में उन्होंने स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर काशी विश्वनाथ की ओर से वाद मित्र के रूप में आवेदन दिया था। उन्होंने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है। रस्तोगी ने कहा कि अदालत ने उनके अनुरोध पर विचार करते हुए परिसर में पुरातात्विक सर्वेक्षण के आदेश दिए हैं।