OROP: 'नहीं चाहते कि कोई हम पर तरस खाए'- मेजर जनरल सतबीर
15 जून 2015 से शुरू हुआ वन रैंक वन पेंशन आंदोलन आज भी वैसे ही चल रहा है। आंदोलनकारियों में वयोवृद्ध पूर्व सैनिकों से लेकर हर आयुवर्ग के लोग हैं। इस आंदोलन ने दो वर्ष में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय...
15 जून 2015 से शुरू हुआ वन रैंक वन पेंशन आंदोलन आज भी वैसे ही चल रहा है। आंदोलनकारियों में वयोवृद्ध पूर्व सैनिकों से लेकर हर आयुवर्ग के लोग हैं। इस आंदोलन ने दो वर्ष में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सुर्खियां भी बटोरीं। इसे लेकर केंद्र सरकार का आदेश भी आया, लेकिन उनकी मांगें जस की तस हैं। इनका कहना है कि सरकार के फैसले में हमें वन रैंक वन पेंशन के नाम पर सिर्फ वन टाइम इनक्रीज पेंशन मिली है। हमारी मांग आज भी वही है।
14 अगस्त को पहली बार सुर्खियों में आया आंदोलन : 15 जून को शुरू हुआ आंदोलन पहली बार 14 अगस्त 2015 को सुर्खियों में आया। उस दिन दिल्ली पुलिस ने स्वतंत्रता दिवस की सुरक्षा के मद्देनजर सभी धरना प्रदर्शनों की तरह पूर्व सैनिकों का पंडाल भी हटाने की कोशिश की। मगर, पूर्व सैनिकों ने इसका विरोध किया। जानकारी के मुताबिक, उस दिन पुलिस ने बल प्रयोग के साथ उनका पंडाल हटा दिया। पुलिस के इस रवैये के बाद पूरा देश आंदोलनकारियों के साथ जुड़ने लगा। आंदोलन के सूत्रधार सेवानिवृत्त मेजर जनरल सतबीर का कहना है कि यह अनोखा वाकया था जब किसान, जवान, और इंसान सभी सैनिकों के पक्ष में सड़क पर उतर आएं। पूरे देश ने हमारा साथ दिया था। हमें हर वर्ग के लोगों ने सहयोग दिया।
कामकाज छोड़ आंदोलन में आईं सैनिकों की पत्नियां : पूर्व विंग कमांडर विनोद नेब को दो सेना मेडल मिल चुके हैं। उन्होंने दो बार लड़ाई में पाकिस्तान के जहाज गिराए थे। आंदोलन के पहले दिन से जुड़े विनोद नेब की पत्नी दीपा भी उनके साथ यहां आ रही हैं। वह बताती हैं कि पहले मैं हिन्दुस्तान लिवर में नौकरी कर रही थी। मगर यहां आकर मुझे लगा कि यह पूर्व सैनिकों की पेंशन की लड़ाई नहीं बल्कि उनके स्वाभिमान की लड़ाई है। मैं यहां अकेली नहीं बल्कि मेरी जैसी सैकड़ों की सैनिक पत्नियां हैं जो देश के सैनिकों की हक की लड़ाई के लिए जंतर-मंतर पर हैं। वहीं, सुदेश गोयत के पति मेजर अजमेर सिंह ने वर्ष 2010 में आर्मी मेडिकल कोर से रिटायरमेंट लिया था। वह बताती हैं कि पहले मैंने अपने पति से कहा कि किस बात की मांग कर रहे हो आप लोग। आप मेजर की पेंशन ले रहे हैं, बड़ी बेटी कमाती है। आप भी दूसरी जॉब कर रहे हैं। मगर जब पहली बार जंतर-मंतर आकर सैनिक की विधवाओं से मिली तो पता चला कि किस तरह 6500 रुपये में बच्चे, माता-पिता और पत्नी का पूरा परिवार पल रहा है। बस उसी दिन से मैंने इसे अपना ध्येय बना लिया। तीनों बेटियां पढ़ाई और घर देखती हैं और मैं आंदोलन में पति के साथ हर दिन जंतर-मंतर आती हूं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर उनसे अपनी मांग रखना ही हमारा ध्येय है। दो वर्ष में एक बार भी हमारी प्रधानमंत्री की मुलाकात नहीं हो सकी। मुझे यकीन है कि एक बार वो मिलकर हमारी गाथा सुनेंगे तो रो पड़ेंगे। पूर्व सैनिकों के परिवारों का हाल बेहाल है। शहीद पूर्व सैनिकों के परिजनों का तो परिवार चलाना मुश्किल हो गया। हमें दो वर्ष में क्या मुश्किलें हुईं, यह भी हम किसी से साझा नहीं करना चाहेंगे। मैं कभी नहीं चाहता कि कोई हम बहादुर सैनिकों पर तरस खाए।