Hindi Newsदेश न्यूज़No need to delete posts from social media even after being found fake by fact check Unit says Bombay High Court - India Hindi News

फैक्ट चेक में 'फर्जी' ठहराए जाने के बाद भी सोशल मीडिया से पोस्ट हटाने की जरूरत नहीं: हाई कोर्ट

केंद्र सरकार ने अदालत को आश्वासन दिया कि नए नियम मुक्त भाषण या सरकार को निशाना बनाने वाले हास्य और व्यंग्य पर अंकुश लगाने के लिए नहीं हैं और किसी को भी प्रधानमंत्री की आलोचना करने से नहीं रोकते।

Pramod Kumar लाइव हिन्दुस्तान, मुंबईWed, 27 Sep 2023 02:08 AM
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी यूजर का सोशल मीडिया पोस्ट फैक्ट चेक में फर्जी या गलत या भ्रामक पाया गया है, तब भी उसे डिलीट करने की जरूरत नहीं है। केंद्र सरकार के कामकाज से जुड़े सोशल मीडिया पर फर्जी, गलत और भ्रामक जानकारी खत्म करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट (FCU) नियमों को सही ठहराने से जुड़ी केंद्र के हलफनामे पर हाई कोर्ट सुनवाई कर रहा था। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से अपने रुख पर सरकारी अधिकारियों से परामर्श करने को कहा है। कोर्ट ने कहा, "आप अपनी स्थिति पर पुनर्विचार कर सकते हैं कि एक मध्यस्थ (सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म) के पास FCU से कोई एक विज्ञप्ति प्राप्त होने पर उस पर कुछ भी कार्रवाई नहीं करने का भी विकल्प होना चाहिए।"

TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने मेहता की दलील पर सुनवाई करते हुए कहा कि  सोशल मीडिया मध्यस्थ को जब FCU द्वारा 'नकली या झूठी सामग्री' की सूचना दी गई, तब भी उस पर पोस्ट को हटाने का कोई दायित्व नहीं बनता है। कोर्ट ने कहा कि यदि मध्यस्थ कार्य नहीं करना चाहता है तो उसे न्यायिक अदालत में ले जाया जा सकता है, जो अंतिम मध्यस्थ होगा कि कौन सही है।

सुनवाई के अंत में खंडपीठ ने केंद्र से इस पर भी विचार करने को कहा कि क्या FCU की कोई जरूरत है, अगर उसके द्वारा चिन्हित सामग्री को हटाने का सोशल मीडिया मध्यस्थ पर कोई दायित्व ही नहीं बनता है। हाई कोर्ट ने पूछा कि जब प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) की तथ्य जांच इकाई झूठी सामग्री को चिह्नित करने के लिए अभी भी मौजूद है, तो फिर आईटी एक्ट में नया संशोधन क्यों किया गया और FCU की स्थापना क्यों की गई?

कोर्ट ने पूछा, " क्या यह किसी को मजबूर करने के लिए" तो नहीं लाया गया है? इस पर केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पीआईबी “दंतहीन” है और वह इस बिंदु पर बुधवार को बहस करेंगे।

जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स और टीवी नेटवर्क द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें केंद्र के उस नियम की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है, जिसके जरिए एफसीयू की स्थापना की गई है और उसे कार्यकारी शक्तियां दी गई हैं। याचिकाकर्ताओं ने नए नियमों को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि उससे नौगरिकों के मौलिक अधिकारों को ठेस पहुंचेगी।

बता दें कि एफसीयू सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के तहत इसी साल अप्रैल में संशोधित मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमों का एक हिस्सा है। इससे पहले, मेहता ने कहा था कि यह नियम इंटरनेट को रेग्युलेट करने के लिए जरूरी है, जहां सूचनाएं नैनोसेकंड में दुनिया भर में फ्लैश की जाती हैं। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर, प्रिंट और टीवी मीडिया नियमों और मानदंडों द्वारा शासित होते हैं। 

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